Tuesday, 8 December 2015

खरीफ प्याज उत्पादन तकनीक

परिचय

प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है। इसमें प्रोटीन एवं कुछ विटामिन भी अल्प मात्रा में रहते हैं। प्याज में बहुत से औषधीय गुण पाये जाते हैं। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत के प्याज उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, उ.प्र., उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, म.प्र.,आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्यप्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है। म.प्र. में प्याज की खेती खंण्डवा, शाजापुर, रतलाम छिंन्दवाड़ा, सागर एवं इन्दौर में मुख्य रूप से की जाती है। सामान्य रूप में सभी जिलों में प्याज की खेती की जाती है। भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, यू.ए.ई. कनाडा,जापान,लेबनान एवं कुवैत में निर्यात किया जाता है।

जलवायु

यद्यपि प्याज ठण्डे मौसम की फसल है,लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता है। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 210 से.ग्रे.तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 150 से.ग्रे. से 250 से.ग्रे.का तापक्रम उत्तम रहता है।

मृदा

प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बालुई दोमट भूमि जिसका पी.एच.मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए।

उन्नत किस्में

म.प्र में खरीफ प्याज की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं-
एग्री फाउंड डार्क रेड
यह किस्म भारत में सभी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। यह किस्म खरीफ प्याज(वर्षात की प्याज)उगाने के लिए अनुशंसित है।
एन-53
भारत के सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ प्याज (वर्षातकी प्याज) उगाने हेतु अनुशंसित किस्म हैं।
भीमा सुपर
यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल तक उपज देती है।

एग्री फाउंड डार्क रेड               एन-53 भीमा सुपर

भूमि की तैयारी

प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व है। खेत की प्रथम जुताई मिट्‌टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात्‌ पाटा अवश्य लगाएं जिससे नमी सुरक्षित रहे तथा साथ ही मिट्‌टी भुर-भुरी हो जाए। भूमि को सतह से 15 से.मी.उंचाई पर1.2 मीटर चौड़ी पट्‌टी पर रोपाई की जाती है अतः खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक

प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर देने की अनुसंशा की जाती हैं। इसके अतिरिक्त सल्फर 25 कि.ग्रा. एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं।

पौध तैयार करना

पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात्‌ उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला का आकार 3 मीटर*0.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है, पौध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर लें।
बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात्‌ क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सके। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फब्बारे से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलीटेनल में उगाना उपयुक्त होगा।

बीज की मात्रा

खरीफ मौसम के लिए 15-20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।

पौधशाला शैय्या पर बीज की बुआई एवं रोपाई का समय

खरीफ मौसम हेतु पौधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में बुवाई 1-15 जून तक कर देना चाहिए, जब पौध 45 दिन की हो जाएं तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता है।
पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धति से तैयार खेतों पर करना चाहिए, इसमें 1.2 मीटर चौड़ी शैय्या एवं लगभग 30 से.मी. चौड़ी नाली तैयार की जाती हैं।

खरपतवार नियंत्रण

फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जड़ें भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाना उचित होता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर अथवा ऑक्सीफ्लोरोफेन 600-1000 मिली/हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाया गया है।

सिंचाई एवं जल निकास

खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता है उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिएं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि शल्ककंद निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती है क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती है, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता है। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाएंगे एवं फसल जल्दी आ जाएगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए।
यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाए तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं।

कंदों की खुदाई

खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगें तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।

फसल सुरक्षा

1. थ्रिप्स
ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं।
इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रि कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली./हे. 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
2. माइट
इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05: डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।
यह एक फफूंदी जनित रोग है, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता है पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पौधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. बैंगनी धब्बा(परपल ब्लॉच)

इसके लक्षण दिखाई देने पर मेनकोजेब (2.5 ग्रा./ली. पानी) का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें। इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ जैसे सैन्उो विट, ट्राइटोन या साधारण गोंद अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सके।
खरीफ प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 250-300 क्विंटल तक मिल जाती है।

उपज

खेत की तैयारी

  • जुताई 2 बार,6 घण्टे प्रति जुताई /400/- प्रति घण्टा 
  • कल्टीवेटर एक बार, 6 घण्टे प्रति जूताई / 400/- प्रति घण्टा
  • खेत का समतलीकरण. क्यारियॉ. सिंचाई लालियॉ और मेड बनाना
4800.00
2400.00
2000.00


खाद एवं उर्वरक
  • गोबर की खाद/कम्पोस्ट 20 टन, / 2500/- प्रति टन
  • रासायनिक उर्वरक
  • बीज 15 किग्रा. / 650 प्रति किग्रा.
  • बीज बोना, पौधे तैयार करना, रोपाई 30 मजदूर /200/- प्रति मजदूर
  • खरपतवार नियंत्रण, सिचाई 20 / 200 प्रति मजदूर
  • निराई-गुडाई दो-दो बार, 30 मजदूर प्रति / 200/-मजदूर
  • पौघ संरक्षण उपाय, दवायें एवं मजदूरी
  • कंद छॅटाई, सफाई, भण्डारण, बोरे एवं भराई
  • विक्रय हेतू खेतों से बाजार तक परिवहन लागत
  • अन्य व्यय
50000.00
5200.00
9750.00
6000.00
4000.00
12000.00
5000.00
4000.00
5000.00
4000.00
5000.0
कुल लागत
1,19,150.00
उत्पादन 225 क्विं/हेक्टेयर,विक्रय मूल्य 1600/-प्रति क्विंटल
3,60,000.00
लाभ लागत अनुपात
1:3.02





 

मिट्टी परीक्षण के तरीके सीखे, स्टाल लगाकर किसानों को दी जानकारी किसान मेला



विश्व मृदा दिवस के मौके पर कृषि विभाग ने जिले के 1350 किसानों को हेल्थ स्वाइल कार्ड बांटा। इस दौरान स्टॉल लगाकर कृषि विभाग की योजनाअों के बारे में जानकारी दी गई। यही नहीं किसानों को मिट्टी परीक्षण के तरीके भी बताए गए। मेगा किसान मेले में जिलेभर से लगभग दो हजार किसान शामिल हुए। 

  विश्व मृदा दिवस के माैके पर कृषि विभाग ने ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर छेदीलाल एग्रीकल्चर कॉलेज में मेगा किसान मेले का आयोजन किया था। इस दौरान अतिथियों के हाथों 1350 किसान को स्वाइल हेल्थ कार्ड का वितरण कराया गया। कार्यक्रम के अतिथि बिलासपुर लाेकसभा के सांसद लखन लाल साहू ने कहा कि किसान अपने खेतों का मिट्टी का परीक्षण अवश्य कराएं। मिट्टी परीक्षण के बाद ही पता चलेगा कि उसमें कौन से कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए आवश्यकता अनुसार खाद डाले और अधिक उत्पादन ले
उन्होंने कहा कि मृदा परीक्षण से मिट्टी के तत्वों की कमी या अधिकता की जानकारी मिलती है। इस तरह मिट्टी का स्वास्थ्य परीक्षण होता है। मिट्टी में जिन तत्वों की कमी है उसके अनुसार ही उर्वरक का उपयोग करने से अच्छी फसल होती है। केन्द्र सरकार ने आज के दिन को मृदा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है और इस दिवस पर कृषकों को जागरूक करने यह आयोजन किया गया है। बिल्हा की जनपद अध्यक्ष गीताजंलि कौशिक ने कहा कि जवान और किसान हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है। जवान सीमा में देश को सुरक्षित रखते है और किसान हमारे देश में नागरिकों के अनाज की पूर्ति करते है। उन्होंने किसानों से कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लें। अपने खेतों की मिट्टी परीक्षण अवश्य कराएं। जिला पंचायत सदस्य शुकवारा सालिक राम यादव और कृषक र| राघवेन्द्र चंदेल ने भी मिट्टी परीक्षण पर जोर दिया।

देर से आए अतिथि होता रहा इंतजार

योजनाओं की जानकारी देते रहे कलाकार

17 हजार के मिट्टी परीक्षण का टारगेट


कार्यक्रम सुबह 10 बजे शुरू होना था। समय पर कृषि विभाग के अफसर भी पहुंच गए थे, लेकिन अतिथि विलंब से पहुंचे। नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल, कमिश्नर सोनमणि बोरा, कलेक्टर अन्बलगन पी समेत कई जनप्रतिनिधि और अफसर पहुंचे ही नहीं। पेंड्रा क्षेत्र के किसान राम सहाय, कोटा क्षेत्र के पुनीराम साहू, मस्तूरी के साधे लाल बंजारे समेत अन्य किसान सुबह से ही पहुंच गए थे।

कृषि विभाग की ओर से किसानों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था की गई थी। लोक कलाकार गीत-संगीत से विभागी की योजनाओं के बारे में जानकारी दे रहे थे। दूर-दराज से आए किसान इसका लुत्फ उठाते रहे। लोक कलाकार गीत-संगीत के माध्यम से खेती से लेकर धान की मिंजाई की जानकारी देते रहे।

17 हजार किसानों के मिट्टी परीक्षण का टारगेट है। इसमें 10 हजार कृषकों का मिट्टी परीक्षण के लिए संग्रह किया गया है। विभाग की ओर से किसानों को जानकारी देने एवं जागरूक करने के लिए 28 स्टाल लगाए गए थे। यही नहीं पोषक तत्वों की कमी से फसलों पर पड़ने वाले प्रभावों को ग्राफ के माध्यम से बताया गया। किसानों को जैविक खाद और आधुनिक पद्धति से खेती करने पर जोर दिया गया।

60 हजार किसानों के मिट्टी परीक्षण का लक्ष्य


जिले में 2 लाख 66 हजार 380 कृषक है। जिनमें 3 वर्षों में 60 हजार किसानों का मिट्टी परीक्षण का लक्ष्य रखा गया है। इस वर्ष 17 हजार कृषकों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसान मेले में 1350 किसानों को हेल्थ स्वाइल कार्ड दिया गया।’’ - जेएस काकोरिया, उपसंचालक, कृषि

भोपाल गैस त्रासदी को हुए पूरे तीस


  भोपाल गैस त्रासदी को हुए पूरे तीस साल हो गए हैं लेकिन यह त्रासदी आज भी हर दिन घटित हो रही है. दसियों हजार व्यक्तियों का जीवन इसके कारण नरक बन गया है.
भोपाल त्रासदी से पहले और बाद में मध्य प्रदेश सरकार और भारत सरकार ने जिस तरह से अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्रति उदारता और पीड़ितों के प्रति निर्ममता दिखाई, उस पर यकीन करना मुश्किल है. हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों के कारण उत्पन्न स्थिति के बारे में कहा गया था कि जीवित बचे लोग मरने वालों से ईर्ष्या करेंगे क्योंकि उनका जीवन मौत से भी बदतर होगा. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से हुए जहरीली गैस के रिसाव से 2 दिसंबर, 1984 की रात को हजारों लोगों मारे गए, लेकिन जो जिंदा हैं वे आज भी इस विभीषिका को भुगत रहे हैं. आज भी पैदा होने वाले अनेक शिशु जन्म से ही किसी न किसी गंभीर बीमारी या विकलांगता का शिकार हैं.
1984 में सरकार ने मरने वालों की संख्या 3,787 बताई थी. 2008 में मध्य प्रदेश सरकार की कार्य योजना में यह संख्या लगभग 16,000 दी गई थी. गैस पीड़ितों को मुआवजा देने वाली अदालत ने पीड़ितों की संख्या 5.73 लाख मानी थी. लेकिन गैस पीड़ितों के कल्याण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता कहते हैं कि इस त्रासदी में कम से कम 23,000 व्यक्ति मारे गए हैं और लाखों व्यक्तियों का जीवन इसके कारण नरक बन गया है. उनके लिए यह त्रासदी कभी न खत्म होने वाले दुःस्वप्न की तरह है.
भारतीय राज्य की प्रतिक्रिया सचमुच स्तब्धकारी रही है. यूनियन कार्बाइड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वारेन एंडरसन को गिरफ्तार किया गया, लेकिन रातोंरात उन्हें जमानत दिलवा कर सरकारी सुरक्षा में दिल्ली हवाई अड्डे लाया गया और वे आराम से अमेरिका पहुंच गए जबकि उन पर और उनकी कंपनी पर भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलना चाहिए था. सरकार ने उनके प्रत्यावर्तन की भी कोई कोशिश नहीं की. यूनियन कार्बाइड के कुछ कर्मचारियों और अध्यक्ष केशव महेन्द्रा पर मुकदमा चला और उन्हें दो साल की सजा हुई, लेकिन उन्हें तत्काल जमानत पर रिहा भी कर दिया गया.
कानूनन यूनियन कार्बाइड पर कारखाने के रख-रखाव, बची हुई अनुपयोगी सामग्री को वहां से हटाने और कारखाने की सफाई की पूरी जिम्मेदारी थी. लेकिन स्थिति यह है कि आज भी बंद कारखाने में टनों जहरीले रसायन पड़े हुए हैं और वे भूमिगत पानी के साथ मिलकर आसपास रहने वाले लोगों की खाने-पीने की चीजों में जहर घोल रहे हैं. लेकिन सरकारी एजेंसियों को कोई परवाह नहीं है. तीस साल बाद भी कारखाने की सफाई नहीं की गई है क्योंकि अभी तक यह तय नहीं हो सका है कि यह किसकी जिम्मेदारी है, और इस बारे में मुकदमें आज भी अदालतों में हैं.
1989 में भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड के साथ अदालत के बाहर एक समझौता कर लिया जिसके तहत कंपनी ने 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा देना स्वीकार किया. क्योंकि गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग छह लाख है, इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रति व्यक्ति कितना मुआवजा मिल सका है. इसके अलावा त्रासदी के शिकार लोग आज भी अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं. यूनियन कार्बाइड कारखाने की सफाई न होने के कारण तीस साल बाद भी लगातार फैल रहे प्रदूषण के कारण अचानक होने वाले गर्भपात की तादाद में तीन गुनी बढ़ोतरी हो गई है. कैंसर की बीमारी के भी बढ़ने की खबर है.
क्या इस त्रासदी से किसी ने कोई सबक लिया? सरकार और उसकी एजेंसियों की संवेदनशून्यता और लापरवाही को देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता कि किसी ने भी कोई सबक सीखा है. जब तक कारखाने और उसके आसपास के पूरे इलाके की वैज्ञानिक तरीके से सफाई नहीं की जाती और प्रदूषण को फैलने से रोका नहीं जाता, तब तक असहाय नागरिकों का जीवन उसी तरह बर्बाद होता रहेगा जैसा पिछले तीस सालों में होता आया है.