Sunday, 27 September 2015

कृषि क्रांति और औद्योगिक क्रांति

कृषि के क्षेत्र में अलग-अलग युगों में और अलग-अलग देशों में क्रान्तियाँ हुईं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
  • नवपाषाण कृषि क्रांति (लगभग 10,000 ईसापूर्व) - प्रथम कृषि क्रान्ति
  • अरब कृषि क्रान्ति (8वीं–13वीं शताब्दी)
  • ब्रिटिश कृषि क्रान्ति (1750–19वीं शताब्दी) - इससे औद्योगिक क्रान्ति का जन्म हुआ।
  • स्कॉटलैण्ड की कृषि क्रान्ति (18वीं–19वीं शताब्दी)
  • हरित क्रांति (1943 – 1970 के दशक का उत्तरार्ध)

    हरित क्रांति:

    सन् १९४०-६० के मध्य कृषि क्षेत्र में हुए शोध विकास, तकनीकि परिवर्तन एवं अन्य कदमों की श्रृंखला को संदर्भित करता है जिसके परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इसने हरित क्रांति के पिता कहे जाने वाले नौरमन बोरलोग के नेतृत्व में संपूर्ण विश्व तथा खासकर विकासशील देशों को खादान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। उच्च उत्पादक क्षमता वाले प्रसंसाधित बीजों का प्रयोग, आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल, सिंचाई की व्यवस्था, कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग आदि के कारण संभव हुई इस क्रांति को लाखों लोगों की भुखमरी से रक्षा करने का श्रेय दिया जाता है। हरित क्रांति का पारिभाषिक शब्द के रूप में सर्वप्रथम प्रयोग १९६८ ई. में पूर्व संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के निदेशक विलियम गौड द्वारा किया गया जिन्होंने इस नई तकनीक के प्रभाव को चिन्हित किया

    उर्वरक:

    कृषि में उपज बढ़ाने के लिए प्रयुक्त रसायन हैं जो पेड-पौधों की वृद्धि में सहायता के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। पानी में शीघ्र घुलने वाले ये रसायन मिट्टी में या पत्तियों पर छिड़काव करके प्रयुक्त किये जाते हैं। पौधे मिट्टी से जड़ों द्वारा एवं ऊपरी छिड़काव करने पर पत्तियों द्वारा उर्वरकों को अवशोषित कर लेते हैं। उर्वरक, पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की तत्काल पूर्ति के साधन हैं लेकिन इनके प्रयोग के कुछ दुष्परिणाम भी हैं। ये लंबे समय तक मिट्टी में बने नहीं रहते हैं। सिंचाई के बाद जल के साथ ये रसायन जमीन के नीचे भौम जलस्तर तक पहुँचकर उसे दूषित करते हैं। मिट्टी में उपस्थित जीवाणुओं और सुक्ष्मजीवों के लिए भी ये घातक साबित होते हैं। इसलिए उर्वरक के विकल्प के रूप में जैविक खाद का प्रयोग तेजी से लोकप्रीय हो रहा है। भारत में रासायनिक खाद का सर्वाधिक प्रयोग पंजाब में होता है।

    औद्योगिक क्रांति

    मुख्य तत्व

    1.नाइट्रोजन 

     एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक N है। इसका परमाणु क्रमांक 7 है। सामान्य ताप और दाब पर यह गैस है तथा पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 78% नाइट्रोजन ही है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और प्रायः अक्रिय गैस है। इसकी खोज 1772 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञनिक डेनियल रदरफोर्ड ने की थी।
    आवर्त सारणी के पंचम समूह का प्रथम तत्व है। नाइट्रोजन का रसायन अत्यंत मनोरंजक विषय है, क्योंकि समस्त जैव पदार्थों में इस तत्व का आवश्यक स्थान है। इसके दो स्थायी समस्थानिक, द्रव्यमान संख्या 14, 15 ज्ञात हैं तथा तीन अस्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 13, 16, 17) भी बनाए गए हैं।
    नाइट्रोजन तत्व की पहचान सर्वप्रथम 1772 ई. में रदरफोर्ड और शेले ने स्वतंत्र रूप से की। शेले ने उसी वर्ष यह स्थापित किया कि वायु में मुख्यत: दो गैसें उपस्थित हैं, जिसमें एक सक्रिय तथा दूसरी निष्क्रिय है। तभी प्रसिद्ध फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाव्वाज़्ये ने नाइट्रोजन गैस को ऑक्सीजन (सक्रिय अंश) से अलग कर इसका नाम 'ऐजोट' रखा। 1790 में शाप्टाल (Chaptal) ने इसे नाइट्रोजन नाम दिया।

    भास्वर (फ़ॉस्फ़ोरस)

     एक रासायनिक तत्व है जिसका संकेत या P है तथा परमाणु संख्या 15। यह शब्द ग्रीक (यूनानी) भाषा के फॉस (प्रकाश) तथा फोरस (धारक) से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ प्रकाश का धारक। ये फॉस्फेट चट्टानों में पाया जाता है। इसकी संयोजकता 1, 3 और 5 होती है। तत्वों की आवर्त सारणी में ये भूयाति के समूह में आता है।
    ‎फ़ॉस्फ़ोरस एक अभिक्रियाशील तत्व है इसकारण ये मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता है। कुछ खनिजों में धातुओं के फॉस्फेट मिलते हैं। पशुओं की हड्डियों में 56% कैल्शियम फॉस्फेट पाया जाता है। जन्तुओं तथा पौधों के लिए यह एक अनिवार्य तत्व है। इसका अस्तित्व कई जैव अवयवों में मिलता है।

    पोटैशियम (Potassium) 

    एक रासायनिक तत्व है। इसका प्रतीक 'K' है। यह आर्वत सारणी के प्रथम मुख्य समूह का तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३९ और ४१) ज्ञात हैं। एक अस्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ४०) प्रकृति में न्यून मात्रा में पाया जाता है। इनके अतिरिक्त तीन अन्य समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३८, ४२ और ४३) कृत्रिम रूप से निर्मित हुए हैं।

    द्वितीयक पोषक तत्व

    कैल्शियम 

    एक भौतिक तत्त्व है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारिणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘सीए’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्शियम क्लोराइड से अलग किया था। कैल्शियम चूना पत्थर का एक बड़ी मात्र है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है।[1]
    अपने शुद्ध रूप में कैल्शियम चमकीले रंग का होता है। यह अपने अन्य साथी तत्वों के बजाय कम क्रियाशील होता है। जलाने पर इसमें से पीला और लाल धुआं उठता है। इसे आज भी कैल्शियम क्लोराइड से उसी प्रक्रिया से अलग किया जाता है जो सर हम्फ्री डैवी ने 1808 में इस्तेमाल की थी। कैल्शियम से जुड़े ही एक अन्य यौगिक, कैल्शियम काबरेनोट को कंक्रीट, सीमेंट, चूना इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य कैल्शियम कंपाउंड अयस्कों, कीटनाशक, दुर्गन्धहर, खाद, कपड़ा उत्पादन, कॉस्मेटिक्स, लाइटिंग इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है। जीवित प्राणियों में कैल्शियम हड्डियों, दांतों और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। यह रक्त में भी होता है और शरीर की अंदरूनी देखभाल में इसकी विशेष भूमिका होती है।

    गंधक

    बहुत प्राचीन काल से यह ज्ञात है। तब औषधों और युद्धों में यह प्रयुक्त होता था। मध्ययुग के कोमियागरों को भी गंधक मालूम था और अनेक रासायनिक प्रक्रियाओं में प्रयुक्त होता था। वे गंधक को जलनीय वायु का सार समझते थे। फ्लाजिस्टन सिद्धांत से इसका घनिष्ठ संबंध रहा। लावाजिए ने पहले-पहल इसको रासायनिक तत्व की संज्ञा दी थी। गे लूसाक (Gay Lussac) और लुई थेनार्ड (Louis Thenard) ने 1809 ई. में इसकी पुष्टि की।

     मैग्नेशियम 

     एक रासायनिक तत्त्व है, जिसका चिह्न है Mg, परमाणु संख्या १२ एवं सामान्य ऑक्सीडेशन संख्या +२ है। है। यह कैल्शियम और बेरियम की तरह एक एल्केलाइन अर्थ धातु है एवं पृथ्वी पर आठवाँ बहुल उपलब्ध तत्त्व है तथा भार के अनुपात में २% है, और पूरे ब्रह्माण्ड में नौंवा बहुल तत्त्व है। इसके बाहुल्य का संबंध ये तथ्य है, कि ये सुपरनोवा तारों में तीन हीलियम नाभिकों के कार्बन में शृंखलागत तरीके से जुड़ने पर मैग्नेशियम का निर्माण होता है। मैग्नेशियम आयन की जल में उच्च घुलनशीलता इसे सागर के जल में तीसरा बहुल घुला तत्त्व बनाती है। मैग्नीशियम सभी जीव जंतुओं के साथ मनुष्य के लिए भी उपयोगी तत्त्व है। यह प्रकाश का स्नोत है और जलने पर श्वेत प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह मानव शरीर में पाए जाने वाले पांच प्रमुख रासायनिक तत्वों में से एक है। मानव शरीर में उपस्थित ५०% मैग्नीशियम अस्थियों और हड्डियों में होता है जबकि शेष भाग शरीर में हाने वाली जैविक कियाओं में सहयोगी रहता है।
    मैग्नेशियम का अग्नि-उत्पादन में प्रयोग
    एक स्वस्थ आहार में इसकी पर्याप्त मात्रा होनी चाहिये। इसकी अधिकता से अतिसार और न्यूनता से न्यूरोमस्कुलर समस्याएं हो सकती है। मैग्नीशियम हरी पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है। इसकी खोज सर हंफ्री डेवी ने १८०८ में की थी। असल में डेवी ने वास्तव में धातु के एक ऑक्साइड को खोजा था, जो बाद में एक तत्व निकला। एक अन्य मान्यता अनुसार कि मैग्नीशियम की खोज १८वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। वैसे इसके एक यौगिक एप्सम लवण की खोज १७वीं शताब्दी में हो चुकी थी और वह आज भी प्रयोग में आता है। इसका एक अन्य यौगिक मिल्क ऑफ मैग्नीशिया कहलाता है। मैग्नीशियम अन्य तत्वों के साथ सरलता से अभिक्रिया कर यौगिक बना लेता है, जिस कारण यह प्रकृति में सदा यौगिकों के रूप में उपस्थित होता है। सागर का जल मैग्नीशियम का एक बड़ा स्रोत है, अतः कई धातु-शोधक कंपनियां इसे सागर से शोधित कर इसका औद्योगिक प्रयोग करती हैं। विलयन पर यह चांदी जैसा सफेद और भार में अपेक्षाकृत हल्का हो जाता है। धातु रूप में यह विषैला (टॉक्सिक) नहीं होता, किन्तु जलाने पर यह विषैला प्रभाव छोड़ता है। इसीलिए गर्म मैग्नीशियम का प्रयोग करते समय नाक को सावधानी से बचाकर काम करना चाहिए। मैग्नीशियम हल्का तत्व होने पर भी काफी मजबूत होता है। इस कारण ही इसे मिश्र धातुओं और अंतरिक्ष उद्योग के लिए उपयोगी माना जाता है। कुछ उच्च क्षमता वाले स्वचालित यंत्रों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

    प्रमुख रासायनिक उर्वरक

    यूरिया

    पहचान विधि :
  • सफेद चमकदार, लगभग समान आकार के गोल दाने।
  • पानी में पूर्णतया घुल जाना तथा घोल छूने पर शीतल अनुभूति।
  • गर्म तवे पर रखने से पिघल जाता है और आंच तेज करने पर कोई अवशेष नही बचता।

डाई अमोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.)

पहचान विधि :
  • सख्त, दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग नाखूनों से आसानी से नहीं छूटता।
  • डी.ए.पी. के कुछ दानों को लेकर तम्बाकू की तरह उसमें चूना मिलाकर मलने पर तीक्ष्ण गन्ध निकलती है, जिसे सूंघना असह्य हो जाता है।
  • तवे पर धीमी आंच में गर्म करने पर दाने फूल जाते है।

सुपर फास्फेट

पहचान विधि :
  • यह सख्त दानेदार, भूरा काला बादामी रंगों से युक्त तथा नाखूनों से आसानी से न टूटने वाला उर्वरक है। यह चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध होता है। इस दानेदार उर्वरक की मिलावट बहुधा डी.ए.पी. व एन.पी.के. मिक्चर उर्वरकों के साथ की जाने की सम्भावना बनी रहती है।

जिंक सल्फेट

पहचान विधि :
  • जिंक सल्फेट में मैंग्नीशिम सल्फेट प्रमुख मिलावटी रसायन है। भौतिक रूप से समानता के कारण नकली असली की पहचान कठिन होती है।
  • डी.ए.पी. के घोल में जिंक सल्फेट के घोल को मिलाने पर थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है। मैग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता।
  • जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक का घोल मिलाने पर सफेद, मटमैला मांड़ जैसा अवक्षेप बनता है, जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूर्णतया घुल जाता है। यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैंग्नीशिम सल्फेट है तो अवक्षेप नहीं घुलेगा।

पोटाश खाद

पहचान विधि :
  • सफेद कणाकार, पिसे नमक तथा लाल मिर्च जैसा मिश्रण।
  • ये कण नम करने पर आपस में चिपकते नहीं।
  • पानी में घोलने पर खाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरता है।

    खाद डालने की मुख्य विधियाँ

  • (१) तौलिए या थाला में डालना : तौलिए में छोटे पौधों में आधा व बड़े पौधों में एक फुट की तने से दूरी रखते हुये खादें डाल दी जाती है। खादें पौधों की टहनियों के फैलाव के नीचे बिखेर कर डालने के बाद मिट्टी में मिला दी जातीहै। मिट्टी में खादें मिलाना अति आवश्यक होता है। जब बहुत ज्यादा नमी हो या बहुत ज्यादा सूखा पड़ रहा हो तो खादें न डालें।
  • (२) पट्टी में खाद डालना : टहनियों के फैलाव के बाहरी घेरे में 20-25 सेंटीमीटर पट्टी में खादें डाल दी जाती है और ऊपर से ढक दिया जाता है। ऐसे विधि वहीं प्रयोग में लाई जाती है जहां ज्यादा बरसात होती है।
  • (३) छिड़काव विधि : पत्तों के ऊपर छिड़काव किया जाता है। ज्यादात्तर यूरियाखाद को पानी में घोल कर उसे छिड़काव द्वारा पत्तों पर डाला जाता है।
  • (४) बिखेर कर डालना : पौधों की दो पंक्तियों के बीच में पौधों से उचितदूरी बनाते हुये खेत में बिखेर कर खादें डाल दी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में इस विधि को कम ही प्रयोग किया जाता है और उन सेब के बागीचों में प्रयोग किया जाता है जहां तौलिए के बदले पूरा खेत ही साफ रखा हो।

औद्योगिक क्रांति

अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बडा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया।
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरजस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी।
अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं।
अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी।

इतिहास

सन् १८६८ में जर्मनी  कारखाने का मशीन-हाल
16वीं तथा 17वीं शताब्दियों में यूरोप के कुछ देशों ने अपनी नौ-शक्ति के आधार पर दूसरे महाद्वीपों में आधिपत्य जमा लिया। उन्होंने वहाँ पर धर्म तथा व्यापार का प्रसार किया। उस युग में मशीनों का आविष्कार बहुत कम हुआ था। जहाज लकड़ी के ही बनते थे। जिन वस्तुओं का भार कम परंतु मूल्य अधिक होता उनकी बिक्री सात समुद्र पार भी हो सकती थी। उस युग में नए व्यापार से धनोपार्जन का एक नया प्रबल साधन प्राप्त किया और कृषि का महत्व कम होने लगा। व्यक्तियों में किसी सामंत की प्रजा के रूप में रहने की भावना का अंत होने लगा। अमरीका के स्वाधीन होने तथा फ्रांस में "भ्रातृत्व, समानता और स्वतंत्रता" के आधार पर होनेवाली क्रांति ने नए विचारों का सूत्रपात किया। प्राचीन शृंखलाओं को तोड़कर नई स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होने की भावना का आर्थिक क्षेत्र में यह प्रभाव हुआ कि गाँव के किसानों में अपना भाग्य स्वयं निर्माण करने की तत्परता जाग्रत हुई। वे कृषि का व्यवसाय त्याग कर नए अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। यह विचारधारा 18वीं शताब्दी के अंत में समस्त यूरोप में व्याप्त हो गई। इंग्लैंड में उन दिनों कुछ नए यांत्रिक आविष्कार हुए। जेम्स के फ़्लाइंग शटल (1733), हारग्रीव्ज़ की स्पिनिंग जेनी (1770), आर्कराइट के वाटर पावर स्पिनिंग फ़्रेम (1769), क्रांपटन के म्यूल (1779) और कार्टराइट के पावर लूम (1785) से वस्त्रोत्पादन में पर्याप्त गति आई। जेम्स वाट के भाप के इंजन (1789) का उपयोग गहरी खानों से पानी को बाहर फेंकने के लिए किया गया। जल और वाष्प शक्ति का धीरे-धीरे उपयोग बढ़ा और एक नए युग का सूत्रपात हुआ। भाप के इंजन में सर्दी, गर्मी, वर्षा सहने की शक्ति थी, उससे कहीं भी 24 घंटे काम लिया जा सकता था। इस नई शक्ति का उपयोग यातायात के साधनों में करने से भौगोलिक दूरियाँ कम होने लगीं। लोहे और कोयले की खानों का विशेष महत्व प्रकट हुआ और वस्त्रों के उत्पादन में मशीनों का काम स्पष्ट झलक उठा।
इंग्लैंड में नए स्थानों पर जंगलों में खनिज क्षेत्रों के निकट नगर बसे; नहरों तथा अच्छी सड़कों का निर्माण हुआ और ग्रामीण जनसंख्या अपने नए स्वतंत्र विचारों को क्रियान्वित करने के अवसर का लाभ उठाने लगी। देश में व्यापारिक पूँजी, साहस तथा अनुभव को नयाक्षेत्र मिला। व्यापार विश्वव्यापी हो सका। देश की मिलों को चलाने के लिए कच्चे माल की आवश्यकता हुई, उसे अमरीका तथा एशिया के देशों से प्राप्त करने के उद्देश्य से उपनिवेशों की स्थापना की गई। कच्चा माल प्राप्त करने और तैयार माल बेचने के साधन भी वे ही उपनिवेश हुए। नई व्यापारिक संस्थाओं, बैकों और कमीशन एजेंटों का प्रादुर्भाव हुआ। एक विशेष व्यापक अर्थ में दुनिया के विभिन्न हिस्से एक दूसरे से संबद्ध होने लगे। 18वीं सदी के अंतिम 20 वर्षों में आरंभ होकर 19वीं के मध्य तक चलती रहनेवाली इंग्लैंड की इस क्रांति का अनुसरण यूरोप के अन्य देशों ने भी किया। हॉलैंड तथा फ्रांस में शीघ्र ही, तथा जर्मनी, इटली आदि राष्ट्रों में बाद में, यह प्रभाव पहुँचा। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में व्यापारियों ने अपने-अपने राज्यों में धन की वृद्धि की और बदले में सरकारों से सैन्य सुविधाएँ तथा विशषाधिकार माँगे। इस प्रकार आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्यापार तथा सेना का यह सहयोग उपनिवेशवाद की नींव को सुदृढ़ करने में सहायक हुआ। राज्यों के बीच, अपने देशों की व्यापारनीति को प्रोत्साहन देने के प्रयास में, उपनिवेशों के लिए युद्ध भी हुए। उपनिवेशों का आर्थिक जीवन "मूल राष्ट्र" की औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति करनेवाला बन गया। स्वतंत्र अस्तित्व के स्थान पर परावलंबन उनकी विशेषता बन गई। जिन देशों में औद्योगिक परिवर्तन हुए वहाँ मानव बंधनों से मुक्त हुआ, नए स्थानों पर नए व्यवसायों की खोज में वह जा सका, धन का वह अधिक उत्पादन कर सका। किंतु इस विकसित संपत्ति का श्रेय किसी हो और उसक प्रतिफल कौन प्राप्त करे, ये प्रश्न उठने लगे। 24 घंटे चलनेवाली मशीनों को सँभालनेवाले मजदूर भी कितना काम करें, कब और किस वेतन पर करें, इन प्रश्नों पर मानवता की दृष्टि से विचार किया जाने लगा। मालिक-मजदूर-संबंधों को सहानुभूतिपूर्ण बनाने की चेष्टाएँ होने लगीं। मानव मुक्त तो हुआ, पर वह मुक्त हुआ धनी या निर्धन होने के लिए, भरपेट भोजन पाने या भूखा रहने के लिए, वस्त्रों का उत्पादन कर स्वयं वस्त्रविहीन रहने के लिए। अतएव दूसरे पहलू पर ध्यान देने के लिए शासन की ओर से नए नियमों की आवश्यकता पड़ी, जिनकी दिशा सदा मजदूरों की कठिनाइयाँ कम करने, उनका वेतन तथा सुविधाएँ बढ़ाने तथा उन्हें उत्पादन में भागीदार बनाने की ओर रही।
इस प्रकार 18वीं शताब्दी के अंतिम 20 वर्षों में फ्रांस की राज्यक्रांति से प्रेरणा प्राप्त कर इंग्लैंड में 19वीं शताब्दी में विकसित मशीनों का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। उत्पादन की नई विधियों और पैमानों का जन्म हुआ। यातायात के नए साधनों द्वारा विश्वव्यापी बाजार का जन्म हुआ। इन्ही सबसे संबंधित आर्थिक एवं सामाजिक परिणामों का 50 वर्षों तक व्याप्त रहना क्रांति की संज्ञा इसलिए पा सका कि परिवर्तनों की वह मिश्रित श्रृंखला आर्थिक-सामाजिक-व्यवस्था में आधारभूत परिवर्तन की जन्मदायिनी थी।
संसार के दूसरे देशों तथा उपनिवेशों के स्वतंत्र होकर आगे बढने से इस क्रांति के प्रभाव धीरे-धीरे दृष्टिगत होने लगे। उनके समक्ष 20वीं शताब्दी में कृषि के स्थान पर उद्योगों को विकसित करने का प्रश्न है; किंतु उनके पास न तो गत दो शताब्दियों के व्यापार की एमत्रित पूँजी तथा अनुभव है और न उनमें यातायात तथा मूल उद्योगों का विकास ही हुआ है। ये राष्ट्र स्वाधीन होने के पश्चात् अन्य संपन्न राष्ट्रों से सीमित रूप में पूँजी तथा यांत्रिक सहायता प्राप्त करने की चेष्टाओं में लगे हैं, किंतु इस प्रकार की सहायता के बदले में वे किसी राजनीतिक बंधन में नहीं पड़ना चाहते। इन राष्ट्रों का मूलभूत उद्देश्य अपने यहाँ उसी प्रकार के परिवर्तन करना है जैसे परिवर्तन औद्योगिक क्रांति के साथ यूरोप में हुए। पर यह स्पष्ट है कि मूलत: इन नए राष्ट्रों को अपने लिए कच्चा माल प्राप्त करने तथा पक्के माल का विक्रय करने के साधन अपनी सीमाओं के अनुसार ही विकसित करना है। इसके लिए चार्लिन चेल्प्लिन की फिल्म "मोदेर्ण टाइम" एक अच्छा उदाहरण है जो सन 1936 में पहली बार दिखाई गयी वैसे तो ये गूंगी फिल्म है लेकिन इसमें औद्योगिक क्रांति, मशीन और इंसान का सम्बन्ध बताया गया है

 

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