गुलाब एक
बहुवर्षीय, झाड़ीदार, कंटीला,
पुष्पीय पौधा है जिसमें बहुत सुंदर सुगंधित फूल लगते हैं। इसकी १०० से अधिक जातियां हैं जिनमें से अधिकांश
एशियाई मूल की हैं। जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश
यूरोप,
उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी
अफ्रीका भी है।
भारत सरकार ने
१२ फरवरी
को 'गुलाब-दिवस' घोषित किया है। गुलाब का फूल कोमलता और सुंदरता के लिये
प्रसिद्ध है, इसी से लोग छोटे बच्चों की उपमा गुलाब के फूल से देते हैं।
परिचय
गुलाब प्रायः सर्वत्र १९ से लेकर ७० अक्षांश तक भूगोल के उत्तरार्ध में
होता है। भारतवर्ष में यह पौधा बहुत दिनों से लगाया जाता है और कई स्थानों
में जंगली भी पाया जाता है।
कश्मीर और
भूटान
में पीले फूल के जंगली गुलाब बहुत मिलते हैं। वन्य अवस्था में गुलाब में
चार-पाँच छितराई हुई पंखड़ियों की एक हरी पंक्ति होती है पर बगीचों में
सेवा और यत्नपूर्वक लगाए जाने से पंखड़ियों की संख्या में बृद्धि होती है
पर केसरों की संख्या घट जाती हैं। कलम पैबंद आदि के द्बारा सैकड़ों प्रकार
के फूलवाले गुलाब भिन्न-भिन्न जातियों के मेल से उत्पन्न किए जाते हैं।
गुलाब की कलम ही लगाई जाती है। इसके फूल कई रंगों के होते हैं, लाल (कई मेल
के हलके गहरे) पीले, सफेद इत्यादि। सफेद फूल के गुलाब को सेवती कहते हैं।
कहीं कहीं हरे और काले रंग के भी फूल होते हैं। लता की तरह चढ़नेवाले गुलाब
के झड़ भी होते हैं जो बगीचों में टट्टियों पर चढ़ाए जाते हैं। ऋतु के
अनुसार गुलाब के दो भेद भारतबर्ष में माने जाने हैं सदागुलाब और चैती।
सदागुलाब प्रत्येक ऋतु में फूलता और चैती गुलाब केवल बसंत ऋतु में। चैती
गुलाब में विशेष सुगंध होती है और वही इत्र और दवा के काम का समझ जाता है।
भारतवर्ष में जो चैती गुलाब होते है वे प्रायः बसरा या दमिश्क जाति के हैं। ऐसे गुलाब की खेती
गाजीपुर में
इत्र
और गुलाबजल के लिये बहुत होती है। एक बीघे में प्रायः हजार पौधे आते हैं
जो चैत में फूलते है। बड़े तड़के उनके फूल तोड़ लिए जाते हैं और अत्तारों
के पास भेज दिए जाते हैं। वे देग और भभके से उनका जल खींचते हैं। देग से एक
पतली बाँस की नली एक दूसरे बर्तन में गई होती है जिसे भभका कहते हैं और जो
पानी से भरी नाँद में रक्खा रहता है। अत्तार पानी के साथ फूलों को देग में
रख देते है जिसमें में सुगंधित भाप उठकर भभके के बर्तन में सरदी से द्रव
होकर टपकती है। यही टपकी हुई भाप गुलाबजल है।
गुलाब का इत्र बनाने की सीधी युक्ति यह है कि गुलाबजल को एक छिछले बरतन
में रखकर बरतन को गोली जमीन में कुछ गाड़कर रात भर खुले मैदान में पडा़
रहने दे। सुबह सर्दी से गुलाबजल के ऊपर इत्र की बहुत पतली मलाई सी पड़ी
मिलेगी जिसे हाथ से काँछ ले। ऐसा कहा जाता है कि गुलाब का इत्र नूरजहाँ ने
१६१२ ईसवी में अपने विवाह के अवसर पर निकाला था।
भारतवर्ष
में गुलाब जंगली रूप में उगता है पर बगीचों में दह कितने दिनों से लगाया
जाता है। इसका ठीक पता नहीं लगता। कुछ लोग 'शतपत्री', 'पाटलि' आदि शब्दों
को गुलाब का पर्याय मानते है। रशीउद्दीन नामक एक मुसलमान लेखक ने लिखा है
कि चौदहवीं शताब्दी में गुजरात में सत्तर प्रकार के गुलाब लगाए जाते थे।
बाबर ने भी गुलाब लगाने की बात लिखी है।
जहाँगीर ने तो लिखा है कि
हिंदुस्तान में सब प्रकार के गुलाब होते है।
साहित्य में
भारतीय साहित्य में- गुलाब के अनेक
संस्कृत
पर्याय है। अपनी रंगीन पंखुड़ियों के कारण गुलाब पाटल है, सदैव तरूण होने
के कारण तरूणी, शत पत्रों के घिरे होने पर ‘शतपत्री’, कानों की आकृति से
‘कार्णिका’, सुन्दर केशर से युक्त होने ‘चारुकेशर’, लालिमा रंग के कारण
‘लाक्षा’ और गन्ध पूर्ण होने से गन्धाढ्य कहलाता है। फारसी में गुलाब कहा
जाता है और अंगरेज़ी में रोज, बंगला में गोलाप, तामिल में इराशा और तेलुगु
में गुलाबि है। अरबी में गुलाब ‘वर्दे’ अहमर है। सभी भाषाओं में यह लावण्य
और रसात्मक है। शिव पुराण में गुलाब को देव पुष्प कहा गया है। ये रंग
बिरंगे नाम गुलाब के वैविध्य गुणों के कारण इंगित करते हैं।
विश्व साहित्य- गुलाब ने अपनी गन्ध और रंग से विश्व काव्य को
अपना माधुर्य और सौन्दर्य प्रदान किया है। रोम के प्राचीन कवि वर्जिल ने
अपनी कविता में वसन्त में खिलने वाले
सीरिया
देश के गुलाब की चर्चा की है। अंगरेज़ी साहित्य के कवि टामस हूड ने गुलाब
को समय के प्रतिमान के रुप में प्रस्तुत किया है। कवि मैथ्यू आरनाल्ड ने
गुलाब को प्रकृति का अनोखा वरदान कहा है। टेनिसन ने अपनी कविता में नारी को
गुलाब से उपमित किया है। हिन्दी के श्रृंगारी कवि ने गुलाब को रसिक पुष्प
के रुप में चित्रित किया है ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। कवि देव ने
अपनी कविता में बालक बसन्त का स्वागत गुलाब द्वारा किए जाने का चित्रण किया
है। कवि श्री निराला ने गुलाब को पूंजीवादी और शोषक के रुप में अंकित किया
है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसे संस्कृति का प्रतीक कहा है।
[1]
इतिहास में
इतिहास में वर्णन मिलता है कि असीरिया की शाहजादी पीले गुलाब से प्रेम
करती थी और मुगल बेगम नूरजहाँ को लाल गुलाब अधिक प्रिय था। मुगलानी
जेबुन्निसा अपनी फारसी शायरी में कहती है ‘मैं इतनी सुन्दर हूँ कि मेरे
सौन्दर्य को देखकर गुवाब के रंग फीके पड़ जाते हैं।‘ रजवाडे़ गुलाब के
बागीचे लगवाते थे। सीरिया के बाशाद गुलाबों का बाग स्थापित करते थे। पं॰
जवाहर लाल नेहरू गुलाब के प्रतीक माने जाते हैं। यूरोप के दो देशों का
राष्ट्रीय पुष्प सफेद गुलाब और दूसरे देश का राष्ट्रीय पुष्प लाल गुलाब थे।
दोनों देशों के बीच गुलाब युद्ध छिड़ गया था। इसके बावजूद यूरोप के कुछ
देशों ने गुलाब को अपना राष्ट्रीय पुष्प घोषित किया है। राजस्थान की
राजधानी जयपुर को गुलाबी नगर कहा जाता है। गुलाब के इत्र का आविष्कार
नूरजहाँ ने किया था।
खेती
ग्रामीण किसान गुलाब की खेती कर अपनी आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करते है।
[2]
भारत में सुगन्धित उद्योग और गुलाब की खेती पुरानी है परन्तु उत्पादन की
दृष्टि से यह अन्य देशों जैसे कि बुलगारिया, टर्की, रुस, फ्रांस, इटली और
चीन से काफी पिछड़ा हुआ है। भारत में
उत्तर प्रदेश के
हाथरस,
एटा,
बलिया,
कन्नौज,
फर्रुखाबाद,
कानपुर,
गाजीपुर,
राजस्थान के
उदयपुर (हल्दीघाटी),
चित्तौड़,
जम्मू और कश्मीर
में, हिमाचल इत्यादि राज्यों में २ हजार हे० भूमि में दमिश्क प्रजाति के
गुलाब की खेती होती है। यह गुलाब चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई मिट्टी जिसका
पी०एच० मान ७.०-८.५ तक में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। दमिश्क गुलाब
शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों ही प्रकार की जलवायु में अच्छी तरह उगाया जा
सकता है। समशीतोष्ण मैदानी भागों में जहाँ पर शीत काल के दौरान अभिशीतित
तापक्रम (चिल्ड ताप) तापक्रम लगभग १ माह तक हो वहाँ भी सफलतापूर्वक की जा
सकती है।
वर्गीकरण
पौधों की बनावट, ऊँचाई, फूलों के आकार आदि के आधार पर इन्हें निम्नलिखित पाँच वर्गों में बाँटा गया है।
[3]
- हाइब्रिड टी- यह बड़े फूलों वाला महत्वपूर्ण वर्ग है इस वर्ग के
पौधे झाङीनुमा, लम्बे और फैलने वाले होते है इनकी विशेषता यह है कि
प्रत्येक शाखा पर एक फूल निकलता है, जो अत्यन्त सुन्दर होता है हालाँकि कुछ
ऐसी किस्में भी हैं, जिनमें छोटे समूह में भी फूल लगते है अधिक पाला पङने
की स्थिति में कभी-कभी पौधे मर जाते है इस वर्ग की प्रमुख किस्में है
एम्बेसडर, अमेरिकन प्राइड, बरगण्डा, डबल, डिलाइट, फ्रेण्डसिप, सुपरस्टार,
रक्त गंधा, क्रिमसनग्लोरी, अर्जुन, जवाहर, रजनी, रक्तगंधा, सिद्धार्थ,
सुकन्या, फस्टे रेड, रक्तिमा और ग्रांडेमाला आदि
- फ्लोरीबण्डा- इस वर्ग में आने वाली किस्मों के फूल हाइब्रिड टी
किस्मों की तुलना में छोटे होते है और अधिक संख्या में फूल लगते है इस वर्ग
की प्रमुख किस्में है- जम्बरा, अरेबियन नाइटस, रम्बा वर्ग, चरिया,
आइसबर्ग, फर्स्ट एडीसन, लहर, बंजारन, जंतर-मंतर, सदाबहार, प्रेमा और
अरुणिमा आदि
- पॉलिएन्था : इस वर्ग के पौधों को घरेलू बगीचों व गमलों में
लगाने के लिए पसंद किया जाता है। पौधे और फूलों का आकार हाइब्रिड डी एवं
फ्लोरी बंडा वर्ग से छोटा होता है लेकिन गुच्छा आकार में फ्लोरीबंडा वर्ग
से भी बड़ा होता है। एक गुच्छे में कई फूल होते हैं। क्योंकि इनमें मध्यम
आकार के फूल अधिक संख्या में साल में अधिक समय तक आते रहते हैं इसलिए यह
घरों में शोभा बढ़ाने वाले पौधों के रूप में बहुतायत से प्रयोग में लाया
जाता है। इस वर्ग की प्रमुख किस्में स्वाति, इको, अंजनी आदि हैं।
- मिनीएचर : इस वर्ग में आने वाली किस्मों को बेबी गुलाब, मिनी
गुलाब या लघु गुलाब के नाम से जाना जाता है। ये कम लंबाई के छोटे बौने पौधे
होते हैं। इनकी पत्तियों व फूलों का आकार छोटा होने के कारण इन्हें बेबी
गुलाब भी कहते हैं। ये छोटे किंतु संख्या में बहुत अधिक लगते हैं। इन्हें
ब़ड़े शहरों में बंगलों, फ्लैटों आदि में छोटे गमलों में लगाया जाना
उपयुक्त रहता है, परंतु धूप की आवश्यकता अन्य गुलाबों के समान छः से आठ
घंटे आवश्यक है। इन्हें गमलों में या खिङकियों के सामने की क्यारियों में
सुगमता से उगाया जा सकता हैइस वर्ग की प्रमुख किस्में ड्वार्फ किंग, बेबी
डार्लिंग, क्रीकी, रोज मेरिन, सिल्वर टिप्स आदि हैं।
- लता गुलाब- इस वर्ग में कुछ हाइब्रिड टी फ्लोरीबण्डा गुलाबोँ की
शाखाएँ लताओं की भाँति बढती है जिसके कारण उन्हें लता गुलाब की संज्ञा दी
जाती है इन लताओं पर लगे फूल अत्यन्त सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करते है।
इन्हें मेहराब या अन्य किसी सहारे के साथ चढ़ाया जा सकता है। इनमें फूल एक
से तीन (क्लाइंबर) व गुच्छों (रेम्बलर) में लगते हैं। लता वर्ग की प्रचलित
किस्में गोल्डन शावर, कॉकटेल, रायल गोल्ड और रेम्बलर वर्ग की एलवटाइन,
एक्सेलसा, डोराथी पार्किंस आदि हैं। कासिनों, प्रोस्पेरीटी, मार्शलनील,
क्लाइबिंग, कोट टेल आदि भी लोकप्रिय हैं।
- नवीनतम किस्में- पूसा गौरव, पूसा बहादुर, पूसा प्रिया, पूसा बारहमासी, पूसा विरांगना, पूसा पिताम्बर, पूसा गरिमा और डा भरत राम
पुष्प
गुलाब के पौधे में पुष्पासन जायांग से होता हुआ लम्बाई में वृद्धि करता
है तथा पत्तियों को धारण करता है। हरे गुलाब के पुष्पत्र पत्ती की तरह
दिखाई देते हैं। पुष्पासन छिछला, चपटा या प्याले का रूप धारण करता है।
जायांग पुष्पासन के बीच में तथा अन्य पुष्पयत्र प्यालानुमा रचना की नेमि या
किनारों पर स्थित होते हैं। इनमें अंडाशय अर्ध-अधोवर्ती तथा अन्य
पुष्पयत्र अधोवर्ती कहलाते है। पांच अखरित या बहुत छोटे नखरवाले दल के
दलफलक बाहर की तरफ फैले होते हैं। पंकेशर लंबाई में असमान होते है अर्थात
हेप्लोस्टीमोनस. बहुअंडपी अंडाशय, अंडप संयोजन नहीं करते हैं तथा एक-दुसरे
से अलग-अलग रहते हैं, इस अंडाशय को वियुक्तांडपी कहते हैं और इसमें एक अंडप
एक अंडाशय का निर्माण करता है।
आर्थिक महत्व
फूल के हाट में गुलाब के गजरे खूब बिकते हैं।
[4]
गुलाब की पंखुडियों और शक्कर से गुलकन्द बनाया जाता है। गुलाब जल और गुलाब
इत्र के कुटीर उद्योग चलते है। उत्तर प्रदेश में कन्नौज, जौनपुर आदि में
गुलाब के उत्पाद की उद्योगशाला चलती है। दक्षिण भारत में भी गुलाब के
उत्पाद के उद्योग चलते हैं। दक्षिण भारत में गुलाब फूलों का खूब व्यापार
होता है। मन्दिरों, मण्डपों, समारोहों, पूजा-स्थलों आदि स्थानों में गुलाब
फूलों की भारी खपत होती है। यह अर्थिक लाभ का साधन है। वहाँ हजारों ग्रामीण
युवा फूलो को अपनी आय का माध्यम बना लेते हैं।