Monday, 4 May 2015

ट्रैक्टर (कर्षित्र): आधुनिक कृषि के उपयोग में आने वाला प्रमुख उपकरण है।

ट्रैक्टर (कर्षित्र)  आधुनिक कृषि के उपयोग में आने वाला प्रमुख उपकरण है। यह एक ऐसी गाड़ी है जो कम चाल पर अधिक कर्षण बल (ट्रैक्टिव इफर्ट) प्रदान करने के लिये डिजाइन की गयी होती है। यह अपने पीछे जुडी हुई कृषि उपकरण, सामान लदी ट्रैलर, ट्राली आदि खींचने का कार्य भी करता है। इसके उपर कुछ ऐसे कृषि उपकरण भी लगाये जाते हैं जिन्हें ट्रैक्टर से प्राप्त शक्ति से चलाया जाता

परिचय

कर्षित्र (Tractor) वह स्वयंचालित (self-propelled) यंत्र है। इसका व्यवहार मुख्यत:
  • 1. कर्षण (tractive) कार्य, जैसे चल यंत्रों के खींचने और
  • 2. स्थिर कार्य (stationary work), जैसे पट्टक घिरनी आदि उपकरणों की सहायता से स्थिर या चल यंत्रों के यंत्रविन्यास (mechanism) को चलने के लिये होता है।
साधारणत: कर्षण कार्य ये हैं:
(क) जमीन को जोतकर तैयार करना,
(ख) बीज डालना,
(ग) पौध लगाना,
(घ) फसल लगाना,
(ड) फसल काटना, आदि।
स्थिर कार्य ये हैं:
(क) जल को पंप करना,
(ख) गाहना (threshing),
(ग) भरण पेषण (Feed Grinding),
(घ) लकड़ी चीरना, आदि।
विभिन्न प्रकर के कार्यों के लिये पाँच प्रकार मुख्य मूल चालक (prime movers) निम्नलिखित हैं: 1. घरेलू जानवर,
2. वायुचालित यंत्र,
3. जलचालित यंत्र,
4. विद्युच्चालित यंत्र,
5. उष्माइंजन (heat engines)
है। 

लाभ

घरेलू पशुओं की तुलना में ट्रैक्टर के मुख्य लाभ ये हैं:
1. इससे कठिन कार्य लगातार लिया जा सकता है,
2. प्रतिकूल जलवायु का इसपर प्रभाव नहीं पड़ता,
3. यह विभिन्न गतियों

ट्रैक्टर का इतिहास

चित्र:Harrison Machine Works 1882 tractor.JPG
१८८२ में 'हैरिसन मशीन वर्क्स' द्वारा निर्मित वाष्पचालित ट्रैक्टर

१९०३ के आसपास हस्त-निर्मित पेट्रोलचालित ट्रैक्टर

वाष्पचालित 'ब्लैक लेडी' ट्रैक्टर (१९११)
सबसे पहले शक्ति-चालित कृषि उपकरण उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आये। इनमें पहियों पर जड़ा एक वाष्प-इंजिन हुआ करता था। एक बेल्ट की सहायता से यह सम्बन्धित कृषि उपकरण को चलाता था। इन्हीं मशीनों में तकनीकी सुधार और विकास के परिणामस्वरूप सन १८५० के आसपास पहला ट्रैक्टर का अविर्भाव हुआ। इसके बाद इनका कृषि कार्यों में जमकर प्रयोग हुआ। ट्रैक्टरों में वाष्प-चालित इंजन बीसवीं शताब्दी में भी बहुत वर्षों तक आते रहे। जब आन्तरिक ज्वलन इन्जन (इन्टर्नल कम्बश्शन इंजिन) पर्याप्त रूप से विश्वसनीय बनने लगे तब इस नयी प्रौद्योगिकी पर आधारित ट्रैक्टरों ने पुरानी प्रौद्योगिकी का स्थान ले लिया।
सन १८९२ में जान फ्रोलिक ने पहला पेट्रोल चालित ट्रैक्टर बनाया। इसके केवल दो ही ट्रैक्टर बिके। इसके बाद सन १९११ में ट्विन सिटी ट्रैक्टर इंजन कम्पनी ने एक डिजाइन विकसित की जो सफल रही।
भाप इंजन का आविष्कार एवं विकास अंतर्दहन इंजन से एक सौ वर्ष पहले हुआ था। उस समय ट्रैक्टर का व्यवहार केवल गाहने की मशीन (thresher) के चलाने में किया जाता था। भाप ट्रैक्टर में कुछ विकास होने के बाद इसका व्यवहार खेत को तैयार करने, बीज बोने और फसल काटने के लिए किया जाने लगा। कृषि के लिए भाप ट्रैक्टर उपयोगी सिद्ध नहीं हुआ, क्योंकि यह अत्यंत भारी एवं मंदगतिगामी (slow moving) था। इसके अतिरिक्त इसके लिय प्रचुर मात्रा में ईंधन एवं वाष्पित्र जल की अवश्यकता होती थी जिसकी देखभाल के लिए दूसरे आदमी की आवश्यता पड़ती थी।
भाप-ट्रैक्टर की इन त्रुटियों के कारण अन्वेषकों का ध्यान अंतर्दहन इंजन की ओर आकर्षित हुआ। 19वीं शताब्दी के अंत में प्रथम गैस ट्रैक्टर का निर्माण किया गया। 1905 ई. तक गैस ट्रैक्टर का व्यवहार खेतों में होने लगा। इसमें चार पहियों पर स्थित भारी पंजर (frame) पर एक बड़ा सिलिंडर गैस ईजंन लगा हुआ था। भाप ट्रैक्टर की तरह यह भी भारी भरकम था। इसमें ईंधन, जल आदि कम मात्रा में लगता था और एक ही आदमी पूरे यंत्र को नियंत्रित और संचालित कर सकता था। 1910 ईं. के लगभग अभिकल्पियों का ध्यान हल्के गैस ट्रैक्टर के निर्माण की ओर गया। 1913 ई. से दो एवं चार सिलिंडरोंवाले इंजन के हल्के गैस ट्रैक्टरों का निर्माण किया जाने लगा। उसके बाद विभिन्न प्रकर के गैस ट्रैक्टर का निर्माण किया जाने लगा, तब विभिन्न प्रकार के गैस ट्रैक्टर बनाए गए।
प्रथम डीजल इंजन युक्त ट्रैक्टर का निर्माण 1931 ई. में किया गया। यद्यपि इस तरह के ट्रैक्टर का दाम अधिक था। फिर भी अनेक गुणों के कारण इसकी माँग अधिक थी। ट्रैक्टर में निम्नदाब वायवीय टायर का व्यवहार सर्वप्रथम 1932 ई. में हुआ था। आजकल भी ट्रैक्टर के विकास के लिये अन्वेषण कार्य हो रहे हैं।
से कार्य कर सकता है,

ट्रैक्टर के प्रकार

कर्षण एवं स्वयंचालन के तरीकों के अनुसार

कर्षण एवं स्वयंचालन (self-propulsion) के तरीकों के अनुसार ट्रैक्टर के दो भेद हैं:
1. चक्र टैक्टर (Wheel tractor)- यह ट्रैक्टर बड़े महत्व का और कृषि संबंधी कार्यों के लिये अत्यंत उपयोगी है। चक्र ट्रैक्टर या तो तीन पहिएवाला होता है या चार पहिएवाला।
2. लीक प्रकार के ट्रैक्टर (Track-type tractor) ऐसे ट्रैक्टर के कर्षण यंत्र विन्यास में दो भारी पटरियाँ (Tracks) लगी रहती हैं। इसमें लोहे के दो पहियों का व्यवहार होता है जिनमें से एक चालक (driver) का कार्य करता है दूसरा मंदक (idler) की तरह होता है। यह ट्रैक्टर भारी कार्य, जैसे बाँध के निर्माण और अन्य औद्योगिक कार्यों के लिये बड़े पैमाने पर व्यवहृत होता है। कृषि में इसका व्यवहार क

उपयोगिता के अनुसार

उपयोगिता के अनुसार कर्षित्र के निम्नलिखित पाँच भेद हैं:
1. सामान्य कार्य कर्षित्र (General purpose tractor) - ये कर्षित्र मानक अभिकल्प के होते हैं, जैसे चार चक्रवाले या लीक प्रकार के कर्षित्र।
2. सर्वकार्य कर्षित्र (All purpose tractor) - ऐसे कर्षित्र से प्राय: सभी तरह के कर्षित्र कार्य लिए जा सकते हैं।
3. फलोद्यान कर्षित्र (Orchard tractor) - ये छोटे या मध्यम आकारवाले यंत्र हैं। इनकी बनावट ऐसी होती है कि इनसे फलोद्यान में सुचारु रूप से कार्य लिया जा सकत है। इस प्रकार के कर्षित्र बहुत कम ऊँचाई वाले होते हैं एवं इनमें बहुत कम प्रक्षेपी (projecting) पुर्जे होते हैं।
4. औद्यागिक कर्षित्र (Industrial tractor) - इन प्रकार के यंत्र किसी भी आकार या प्रकार के हो सकते हैं। इनका व्यवहार कारखानों और हवाई पत्तन (airports) इत्यादि स्थानों में होता है। ये रबर के पहिए तथा उच्च चाल पारेषण (High speed transmission) उपकरणों से युक्त होते हैं।
5. बाग-कर्षित्र (Garden tractor) - यह बगीचों या छोटे छोटे खेतों में व्यवहार किया जानेवाला सबसे छोटे आकार का ट्रैक्टर होता है। यह तीन आकार का बनाया जाता है: छोटा आकार, मध्यम आकार और बड़ा आकार। छोटे आकारवाले यंत्र से बगीचों में पौधा लगाने का एवं खेती का कार्य लिया जाता है। मध्यम और बड़े आकारवाले बाग कर्षित्र का व्यवहार हल चलाने आदि के कार्य के लिये लिया जाता है। इस यंत्र को चालक चलाता है ओर उत्तोलक (Lever) की सहायता से इसे नियंत्रित करता हैम है।

ट्रैक्टर की बनावट

सभी ट्रैक्टरों में निम्नलिखित तीन भाग होते हैं:
1. इंजन और उसके साधन,
2. शक्ति पारेषण प्रणाली (power transmitting system),
3. चेजिस (chassis)

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