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Wednesday, 30 September 2015
कृषिगत उपायों द्वारा धान में कीट नियंत्रण
कृषिगत उपाय इस तथ्य पर आधारित हैं कि अनेक हानिकारक कीटों की विभिन्न अवस्थायें जमीन के अंदर सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं। खेत की गहरी जुताई के अलावा कुछ इन उपायों को करें। धान की फसल में हरा माहो (जैसिड के नियंत्रण) के लिए कृषिगत खेतों के आस-पास तथा मेड़ों पर उग रही घास, खरपतवार आदि को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। कीट प्रकोप अधिक आद्र्रता वाले क्षेत्रों तथा देरी से पकने वाली धान की जातियों पर अधिक होता है। कीट प्रकोप अधिकतर सितम्बर से जनवरी तक रहता है। 70 से 80 प्रतिशत आर्द्रता और 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान कीट प्रकोप सक्रियता तथा वृद्धि के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। जैसिड प्रतिरोधी जातियों को लगाना चाहिए।
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सफेद पृष्ठ पौध फुदक (व्हाइट बैक्ड प्लांट हापर)
कीट धान की बोनी जातियों पर प्राय: प्रतिवर्ष आक्रमण करता है। इसके नियंत्रण के लिए यदि संभव हो तो पानी खेत से निकाल देना चाहिए तथा एक सप्ताह बाद फिर से पानी भर देना चाहिए।
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गंगई मक्खी (गाल फ्लाई)
कीट धान का विशेषकर छत्तीसगढ़ क्षेत्र का खतरनाक शत्रु है। इसके नियंत्रण के लिए गर्मी में मेड़ों बंधानों पर से घास, खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए। गंगई मक्खी से ग्रसित खेत से पानी निकाल देने से गंगई मक्खी सूखे में जीवित नहीं रह पाती और उसका प्रकोप कम हो जाता है। पोंगों को देखते ही निकाल देना चाहिए। अधिक कीट ग्रसित क्षेत्रों में गंगई प्रतिरोधी जातियाँ जैसे समृद्धि आई.ई.टी. 3232, महामाया, आईआर 36 , आरपी 9-4, आशा अभया, सुलेखा, उषा, फाल्गुनी, बंगोली-5 आदि को लगावें।
गंधी बग कीट धान के फूल आने की अवस्था में अधिक सक्रिय हो जाता है और सितम्बर से दिसम्बर तक हानि पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए धान के खेत और मेड़ बंधान पर उग रही घास, खरपतवार को उखाड़ देना चाहिए। यथा संभव मध्य जुलाई तक धान की रोपाई कर देना चाहिए कपड़े के जाल से कीट को इकठ्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
खेत में पानी देते समय 15 से 20 लीटर क्रूड आइल इमल्सन या मिट्टी का तेल प्रति हैक्टेयर की दर से मिलायें और रस्सी या लम्बे बांस के दोनों सिरों को दो आदमी पकड़ कर फसल पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक घुमा दें। जिससे गंधी बग के शिशु तथा व्यस्क पानी में मर जायेंगे इस उपाय से पत्ती खाने वाली विभिन्न प्रकार की इल्लियों तथा कीड़ों के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
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धान के खेत में तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए फसल कटाई के बाद ठूंठों आदि को एकत्रित कर नष्ट कर दें, जिससे उनके अंदर छिपी इल्ली मर जायेगी। जिन खेतों में पौधों की मध्य कलिकायें सूख रही हों उन्हें इल्लियों सहित उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। नर्सरी से पौधे उखाड़कर रोपा लगाने के पहले पत्तियों के ऊपरी सिरों को काटकर नष्ट कर देना चाहिए इस कीट के अंडे अधिकतर ऊपरी सिरों पर रहते हैं।
धान की पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले पत्ती मोड़क (लीफ रोलर) कीट से नियंत्रण के लिए खेत की मेड़ तथा बंधान में घास खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए। ग्रसित पत्तियों को इल्लियों सहित एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए। प्रकाश प्रपंच लगाकर कीटों के साथ ही इस कीट के व्यस्क पंतंगों को भी आकर्षित कर नष्ट किया जा सकता है।
धान के टिड्डा या फाफा के नियंत्रण के लिए अप्रैल-मई माह में धान के खेतों के आस-पास की पड़त भूमि की जुताई कर देना चाहिए व मेड़ों और बंधानों को खरोच देना चाहिए।
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धान का बंकी (केस वर्म) कीट का प्रकोप देरी से रोपाई गई निचली सतह वाले खेतों में जिनमें पानी अधिक रहता है में होता है। नियंत्रण के लिए खेत तथा उसके आस-पास उग रही घास, खरपतवार को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। खेत में पानी की निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए। कीट ग्रसित खेत में पानी में लगभग 15 लीटर मिट्टी का तेल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलाकर पौधों को रस्सी या बांस द्वारा तेजी से हिला दें ताकि इल्लियां (खोल सहित) पानी में गिरकर मर जाएं। इसके बाद खेत से पानी निकाल दें। लगभग एक सप्ताह बाद दुबारा पानी भर दें। धान के स्किपर कीट की इल्ली अवस्था फसल के लिए हानिकारक होती है। कीट का प्रकोप मुख्य रुप से कंसे निकलने की अवस्था में रहता है। नियंत्रण के लिए कीट ग्रसित पत्तियों को इल्लियों सहित तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
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धान के हिस्पा कीट की शिशु (ग्रब) तथा व्यस्क दोनों अवस्थाओं फसल को हानिकारक होती हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए धान के पौधों को नर्सरी से उखाड़ते समय पत्तियों के ऊपरी सिरों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। ताकि पत्तियों के सिरों के पास दिये गए अण्डे नष्ट हो जायें। खेत के आस-पास मेड़ों, बंधानों पर उग रही घास, खरपतवार को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। जाल से व्यस्क बीटल्स को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए।
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धान का भूरा पौध फुदक (ब्राउन प्लांट हापर) कीट के शिशु व व्यस्क दोनों पौधों का रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। जिसके फलस्वरुप पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और अंत में पौधे कमजोर होकर सूख जाते है। नियंत्रण के लिए खेत में पानी के निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
धान का स्वार्मिंग इल्ली कीट का आक्रमण धान पर छोटी अवस्था से ही प्रारंभ हो जाता है, जबकि पौधे नर्सरी में होते हैं। नियंत्रण के लिए खेत तथा मेड़ के घास तथा खरपतवारों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। इल्लियों को जाल में एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए।
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धान के फौजी कीट (आर्मी वर्म या क्लाइम्बिंग कटवर्म)
की बड़ी विशेषता यह है कि जब फसल पकने को होती है तभी इससे सर्वाधिक हानि होती है। नियंत्रण के लिए फसल कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई कर देना चाहिए ताकि भूमि में स्थित कीट कोष नष्ट हो जायें।
धान की फसल में कीट नियंत्रण हेतु किसान भाई जल प्रबंध पर अवश्य ध्यान दें। यदि फसल पर भूरा माहो, सफेद माहो, चितरी एवं बंकी का प्रकोप अधिक हो तो खेत से पानी निकाल दें तथा 7-8 दिन बाद दुबारा पानी लगायें। ऐसा करने से इन कीटों का प्रकोप कम होता है। इसके विपरीत यदि कटुवा कीट का आक्रमण अधिक हो तो खेत में पानी भर दें, जिससे पौधे के निचले भाग में इनकी शंखियां तथा इस कीट की समूह में आक्रमण करने वाली इल्ली भी नष्ट हो जाती हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक की संतुलित मात्रा को रोपाई के समय दें। नाइट्रोजन की आवश्यकता से अधिक मात्रा उपयोग करने से कीट (पौधे के हरे भाग को क्षति पहुंचाने वाले) का प्रकोप अधिक हो तो नाइट्रोजन का प्रयोग रोक दें। तथा 15-20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से अतिरिक्त रुप में खेत में डालें। ऐसा करने से पौधों में कीट प्रकोप (नुकसान) सहने की क्षमता में वृद्धि होती है।
धान की खेती में जैव उर्वरक और प्रजाति और कितना बीज आदि के ऊपर कुछ सवाल
1- प्रश्न- धान की खेती में कौन से जैव उर्वरक का प्रयोग उपयोगी है।
उत्तर- पी0एस0बी0, नील हरित शैवाल तथा एजोला जैसे जैव उर्वरक अधिक उपयोगी होते है।
2- प्रश्न- जैव उर्वरक के प्रयोग में क्या करें, जिससे अधिक लाभ हो।
उत्तर- रासायनिक उर्वरकों के साथ जैव उर्वरक का प्रयोग न करें तथा प्रयोग की एक्सपायरी तिथि के बाद अधिक लाभ नहीं मिलता है।
3- प्रश्न- धान के बुवाई के लिए एस0आर0आई0 विधि क्या है
उत्तर- अधिक उत्पादन प्राप्त करने की विधि है जिसमें नर्सरी से कम समय (10 दिन में) के पौध की रोपाई 25ग्25 सेमी की दूरी पर एक ही पौधा रोपकर की जाती है।
4- प्रश्न- ऊसर को कैसे सुधारे तथा ऊसरीली जमीन के लिए धान की प्रजाति बतायें।
उत्तर- जिप्सम का प्रयोग सबसे उपयुक्त है। मिट्टी की जॉंच के बाद औसतन 150 से 250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर जिप्सम का प्रयोग उपयोगी है। हरी खाद का प्रयोग भी लाभकारी है।
5- प्रश्न- जिप्सम की उपलब्धता कहॉ होगी तथा क्या इस पर छूट भी मिलती है।
उत्तर- कृषि केन्द्रों, यू0पी0 एग्रो केन्द्र, पी0सी0एफ0 पर जिप्सम उपलब्ध है, उ0प्र0 सरकार द्वारा जिप्सम पर 90 प्रतिशत का अनुदान अनुमन्य है।
6- प्रश्न- संकर धान की प्रजाति के बारे में बताये।
उत्तर- उ0प्र0 के लिए बेहतरीन संकर धान की प्रजाति है, पी0एच0बी0 71, नरेन्द्र संकर धान-2, प्रो एग्रो 6444 तथा पी0आर0एच0 10
7- प्रश्न- संकर धान में वेहन के लिए कितना बीज प्रयोग करें।
उत्तर- 20 किग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाए।
8- प्रश्न- अधिक धान उत्पादन के लिए क्या आवश्यक है।
उत्तर- बीज शोधन, समय से रोपाई तथा सिंचाई। खेत की निगरानी आवश्यक है। जिससे रोग/कीट का पता लगता रहे। आरम्भ में ही रोकथाम आवश्यक है।
9- प्रश्न- धान में जस्ते का प्रयोग कब और कैसे करें।
उत्तर- औसतन 5 किग्रा जिंक सल्फेट 21 फीसदी का 20 किग्रा यूरिया के साथ मिलाकर लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव अधिक लाभदायी है।
10- प्रश्न- उर्वरकों के प्रयोग में क्या सावधानी बरतें।
उत्तर- किसी भी खेत/फसल में जिंक सल्फेट तथा डी0ए0पी0 का प्रयोग एक साथ नहीं करना चाहिए। यूरिया का प्रयोग दो या तीन बार में लाभकारी है।
11- प्रश्न- संकर धान का बीज अगले वर्ष के लिए रख सकते हे।
उत्तर- नहीं, संकर धान का बीज हर साल नया खरीदें। संकर धान का बीज एक बार ही बुवाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
12- प्रश्न- संकर धान के बीज पर क्या कोई छूट अनुमन्य है।
उत्तर- जी हॉं, एन0एफ0एस0एम0 योजना में संकर धान के बीज क्रय पर प्रति किलों रू0 60.00 की छूट अनुमन्य है।
13- प्रश्न- अरहर की कौन सी प्रजाति रोगरोधी है।
उत्तर- बहार, नरेन्द्र अरहर-1, मालवीय चमत्कार उकठा एवं वकां अवरोधी जातियॉं है।
14- प्रश्न- अरहर के बीज का उपचार कैसे करें।
उत्तर- एक किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें अथवा 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा+एक ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें लाभ होगा।
15- प्रश्न- अरहर में जैव उर्वरक का प्रयोग कैसे करें।
उत्तर- एक पैकेट राइजोबियम कल्चर (200 ग्राम) 10 किग्रा बीज के उपचार के लिए प्रयोग करना चाहिए।
16- प्रश्न- अरहर की बुवाई कब करें।
उत्तर- अरहर की प्रजातियॉं अलग-अलग समय पर की जाती है, किन्तु बहार आजाद, मालवीय की बुवाई जुताई के प्रथम सप्ताह में करें।
17- प्रश्न- अरहर में एकीकृत कीट प्रबन्धन कैसे करें।
उत्तर- अरहर में जब शतप्रतिशत फूल बन जाये और फली बनने लगे उस समय मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करें। द्वितीय छिड़काव के बाद निम्बोली का 5 प्रतिशत का घोल छिड़के।
18- प्रश्न- अरहर की फसल में यदि उकठा बार-बार हो रहा है तो क्या करें।
उत्तर- जिस खेत में उकठा रोग का प्रकोप अधिक हो, उस खेत में 3-4 साल तक अरहर की फसल नहीं लेना चाहिए।
19- प्रश्न- अरहर में फलीबेधक से बचाव कैसे करें।
उत्तर- फूल आने के बाद मोनोक्रोटोफास 36 ई0सी0 या डाइमेथियट 30 ई0सी0 का प्रयोग करें
20- प्रश्न- अरहर की अधिक उपज प्राप्त करनें में किस उर्वरक का महत्व है।
उत्तर- अरहर के लिए सल्फर अधिक महत्वपूर्ण है अतः सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग अधिक लाभदायी होता है।
21- प्रश्न- सूत्रकृमि से कैसे बचाव करें। प्रायः पूरी फसल नष्ट हो जा रही है।
उत्तर- जड़ों के पास से फसलें सूखने लगती है समझो सूत्रकृमि का प्रकोप है। इसका उपाय है गर्मी में गहरी जुताई।
22- प्रश्न- अरहर में सिंचाई क्या आवश्यक है।
उत्तर- नमी की स्थिति को देखते हुए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है वैसे फलियॉं बनने के समय अक्टूबर माह में सिंचाई अति आवश्यक है।
23- प्रश्न- नील गाय से अरहर को कैसे बनायें।
उत्तर- गाय के ताजे गोबर मं लहसुन तथा मदार के रस को मिलाकर खेत के किनारे-किनारे छिड़काव कर नीलगाय को भगाया जा सकता है।
24- प्रश्न- मूंग की फसल में पत्तियों पर पीले चकत्ते पड़ जाते है क्या करें।
उत्तर- यह एक रोग है जिसे पीला चित्रवर्ण कहते है तथा सफेद मक्खी से फेलता है। मक्खी को मारने के लिए डायमिथोएट 30 ई0सी0 1 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव प्रभावी होता है।
25- प्रश्न- मूंग की उन्नतशील प्रजाति बताएं।
उत्तर- मालवीय जन प्रिया, पंत मूंग-4, पी0डी0एम0-11, नरेन्द्र मूंग-1 एवं टाइप-44 अच्छी प्रजातियॉं है।
26- प्रश्न- मूंग की फसल में यूरिया का प्रयोग कब करें।
उत्तर- बुवाई के समय उर्वरकों का प्रयोग 15 किग्रा नत्रजन के रूप में करें तथा यूरिया का प्रयोग फली बनने के समय 2 प्रतिशत घोल के रूप में अधिक लाभकारी है।
27- प्रश्न- मूंग की फलीवेधक कीट से कैसे बचें।
उत्तर- इण्डोसल्फॉंन (35 ई0सी0) या क्यूनालफॉंस 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।
28- प्रश्न- उ0प्र0 में मूंगफली का क्या सम्भावना है। क्या मध्य उ0प्रदेश इसके लिए उपयुक्त है।
उत्तर- उ0प्र0 में भरपूर सम्भावनाएं है। मुख्य रूप से सीतापुर, हरदोई, बरेली, एटा, फरूखाबाद, खीरी, उन्नाव, बदायूं, मुरादाबाद में अच्छी खेती की जा सकती है।
29- प्रश्न- कौन सी प्रजाति अधिक उपज होगी।
उत्तर- टाइप-64, टाइप-28, कौशल, चित्रा, अम्बर तथा प्रकाश अच्छी उपज वाली प्रजातियॉं है।
30- प्रश्न- मूंगफली के बीज उपचार हेतु किस रसायन का प्रयाग करें।
उत्तर- बीज (गिरी) को थीरम 2.0 ग्राम और 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलन चूर्ण के मिश्रण से 2 किग्रा बीज शोधन करना चाहिए।
31- प्रश्न- मूंगफली में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है कब करें।
उत्तर- मूंगफली में दो सिंचाई अति आवश्यक है पहली जब पेगिंग हो तथा फली बनते समय।
32- प्रश्न- मूंगफली की खुदाई का बेहतर समय कब होता है।
उत्तर- खुदाई फसल के पूर्ण पकने पर ही करना चाहिए, इससे दाना घटिया श्रेणी का नहीं होता है।
33- प्रश्न- मूंगफली के खेत में दीमक बहुत लगते है क्या उपाय करें।
उत्तर- दीमक सूखे की स्थिति में जड़ों तथा फलियों को काटती है। इसके उपचार हेतु क्लोरोपायरीफॉंस 4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
34- प्रश्न- मूंगफली का टिक रोग अक्सर खेतों में लग रहा है उपाय बतायें।
उत्तर- खड़ी फसल पर जिंक मैंगनीज कार्बानमेट 2 किग्रा या जिनेव 75 प्रतिश्ता घुलनशील चूर्ण का प्रयोग करें। टिक्का रोग जो पत्तियों पर दाग के रूप में आता है। नष्ट हो जायेगा।
35- प्रश्न- मूंगफली का टिक रोग अक्सर खेतों में लग रहा है उपाय बतायें।
उत्तर- खड़ी फसल पर जिंक मैंगनीज कार्बानमेट 2 किग्रा या जिनेव 75 प्रतिश्ता घुलनशील चूर्ण का प्रयोग करें। टिक्का रोग जो पत्तियों पर दाग के रूप में आता है। नष्ट हो जायेगा।
36- प्रश्न- संकर मक्का की खेती के लिए कितना बीज प्रयोग करें।
उत्तर- प्रति हेक्टेयर 18 किग्रा बीज उचित होता है।
37- प्रश्न- गंगा-2 ने अच्छी उपज नहीं दी क्या कारण हो सकते है।
उत्तर- गंगा-2 एक संकर प्रजाति है। जिसकी बुवाई समय से करनी चाहिए तथा मक्का के खेत में जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए यदि पानी ोत में लगा रह जायेगा तो उपज गिर जायेगी। अधिक वृष्टि के कारण तथा जल निकास की अच्छी सुविधा न होने से उपज गिरी होगी।
मृदा
38- प्रश्न- विगत कई वर्षो से धान-गेहूँ की खेती कर रहा हूँ। अनुभव में आ रहा है कि गेहूँ की उपज कम होती जा रही है।
उत्तर- धान गेहूँ का फसल चक्र अधिक पोषक तत्व की मॉंग करता है। जिससे भूमि कमजोर हो जाती है। इसलिए गेहूँ की उपज कम हो रही है। अतः गेहूँ की कटाई के बाद तथा धान की रोपाई के पहले खेतों में हरी खाद का प्रयोग तथा औसतन 10 कुन्तल गोबर की खाद का प्रयोग करें।
39- प्रश्न- खेत बंजर की स्थिति में है कई वर्षो से कुछ भी नहीं होता है क्या करें।
उत्तर- कृषि वानिकी अपनाएं। औषधीय पौधों की खेती कर सकते है। सरकार की तरफ से औषधीय खती पर प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
40- प्रश्न- खेत का रकबा कम है गुजर बसर नहीं हो पाता क्या करें।
उत्तर- कृषि उद्यमिता अपनाएं। वर्मी कम्पोस्ट/नाडेप कम्पोस्ट तैयार कर बिक्री कर सकते है बहुंत मॉंग है। औद्यानिक एक सफल रास्ता है। उसे अपनाएं।
41- प्रश्न- हमारे जिले में आत्मा चल रही है। इससे कैसे लाभ पायें।
उत्तर- अच्छी बात है कि आपको आत्मा की जानकारी है। आत्मा की परियोजनाओं पर जनपद के सभी किसानों का हक है। आप सीधे आत्मा सचिव से मिले तथा इच्छुक परियोजना से लाभ पायें।
42- प्रश्न- खेती एक घाटे का धंधा है, इसे लाभकारी कैसे बनाएं।
उत्तर- सरल और सस्ता उपाय है। विविधीकरण को अपनाएॅं अर्थात अपने खेतों पर उद्यानिकी, मुर्गीपालन, पशुपालन, मधुमक्खीपालन तथा मशरूम की खेती आदि अपनाएं।
43- प्रश्न- खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी कौन सी होती है।
उत्तर- दोमट मिट्टी में सभी प्रकार की फसलें अच्छी उपज देती है।
44- प्रश्न- स्वस्थ मृदा क्या है?
उत्तर- स्वस्थ मृदा का मतलब है कि उसमें फसल उगाने की ताकत के साथ साथ आवश्यक पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा हो और नमी रोकन की क्षमता हो।
45- प्रश्न- मिट्टी में मुख्य पोषक तत्व कौन-कौन से है?
उत्तर- मुख्य तत्व तीन होते है 1. नत्रजन, 2. फास्फोरस, 3. पोटाश। इन्हीं से उत्पादन में वृद्धि होती है।
46- प्रश्न- देशी खाद के प्रयोग से मुख्य लाभ क्या है ?
उत्तर- मृदा स्वस्थ होती है तथा लम्बे समय तक उत्पादन मिलता रहता है।
47- प्रश्न- अच्छी देशी खाद कैसे बनायें ?
उत्तर- नाडेप-विधि द्वारा, कम्पोस्ट के गड्ढे तैयार करके तथा वर्मीकम्पोस्ट तैयार कर देशी खाद उत्तम गुणवत्ता की तैयार कर सकते हैं ?
48- प्रश्न- सूक्ष्म-पोषक तत्व क्या है ?
उत्तर- फसलों को जिन पोषक तत्वों की कम मात्रा (1 पीपीएम) की आवश्यकता होती है उसे सूक्ष्म पोषक तत्व कहते हैं जैसे - जिंक, लोहा, कॉंपर, बोरान एवं मैग्नीज, मालीबिडनम।
49- प्रश्न- क्या देशी खाद में सूक्ष्म पोषक तत्व पाये जाते है ?
उत्तर- हॉं, देशी खाद में मुख्य पोषक तत्व के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते हैं।
50- प्रश्न- जिंक की कमी से क्या उत्पादन घटता है ?
उत्तर- जिंक की कमी से पौधों की पत्तियों पर सफेद एवं भूरी धारियॉं दिखायी देती है। इसकी कमी से सभी फसलों का उत्पादन घट जाता है।
51- प्रश्न- जिंक की कमी को कैसे जाने ?
उत्तर- किसी भी पोषक तत्व की जानकारी के लिए मिट्टी परीक्षण कराना अति आवश्यक है। पुरानी पत्तियों पर पीले-पीले धब्बे जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं।
52- प्रश्न- अपनी मिट्टी पहचानों अभियान' क्या है ?
उत्तर- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाया गया यह कार्यक्रम मिट्टी परीक्षण कराकर अपनी मिट्टी की ताकत जानने का अभियान है ।
53- प्रश्न- मिट्टी की जॉंच कहॉं से और कब करायें ?
उत्तर- प्रदेश के सभी जनपद मुख्यालयों पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित है, जहॉं से जॉंच करायी जा सकती है। फसल बोने के पहले खाली खेत से मिट्टी 6 इंच गहरे (ऊपर से नीचे तक) गडढे से लेकर थैली में भरकर नाम, पता लिखकर मिट्टी परीक्षण केन्द्र पर भेजे। इसके लिए विकास खण्ड पर सम्पर्क करें।
54- प्रश्न- मिट्टी की जॉंच कहॉं से और कब करायें ?
उत्तर- प्रदेश के सभी जनपद मुख्यालयों पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित है, जहॉं से जॉंच करायी जा सकती है। फसल बोने के पहले खाली खेत से मिट्टी 6 इंच गहरे (ऊपर से नीचे तक) गडढे से लेकर थैली में भरकर नाम, पता लिखकर मिट्टी परीक्षण केन्द्र पर भेजे। इसके लिए विकास खण्ड पर सम्पर्क करें।
55- प्रश्न- मिट्टी परीक्षण पर व्यय कितना आता है?
उत्तर- मिट्टी परीक्षण में मुख्य पोषक तत्व जानने की फीस रू0 7.00 (साते रूपये) तथा सूक्ष्म पोषक तत्व सहित रूपये 37.00 (सैंतीस रूपये ) का खर्च आता है तथा यदि कोई सीमान्त किसान अपने खेत की मिट्टी का नमूना प्रयोगशाला स्वयं लेकर जाता है तो उसका परीक्षण प्राथमिकता के आधार पर निःशुल्क करते हुए उर्वरक/खाद प्रयोग करने की संस्तुति प्रदान की जाती है।
56- प्रश्न- मिट्टी परीक्षण में क्या केवल पोषक तत्व की जानकारी ही दी जाती है ?
उत्तर- नहीं, जानकारी के साथ-साथ फसलवार उर्वरकों की संस्तुति भी की जाती है। काम एक और लाभ अनेक।
बीज एवं प्रक्षेत्र
57- प्रश्न- उत्तम कोटि का बीज क्या है।
उत्तर- अनुवॉंशिक रूप से शतप्रतिशत शुद्ध बीज को उत्तम बीज कहते है।
58- प्रश्न- बुवाई के लिए कौन से बीज का प्रयोग करें।
उत्तर- प्रमाणित बीज बुवाई के लिए उपयुक्त होता है। किसान भाई आधारीय बीज-1 एवं आधारीय बीज-2 से भी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
59- प्रश्न- बीज शोधन कैसे करें तथा क्या लाभ है।
उत्तर- प्रमाणित बीज शोधित बीज होता है, किन्तु जिन बीजों का शोधन नहीं हुआ हो उन्हें थीरम अथवा कार्बेन्डाजिम से शोधित करें, जिससे बीमारियों एवं रोगों से मुक्ति मिल सके।
60- प्रश्न- बीज उत्पादन में रोगिंग क्या है।
उत्तर- बीज उत्पादन की प्रक्रिया में नियत प्रजाति के उत्पादन में अन्य प्र्रजाति के पौधे को उखाड़कर खेत से बाहर करना रोगिंग कहलाता है, जिससे बीज/प्रजाति की शुद्धता बनी रहती है।
61- प्रश्न- क्या कई प्रकार के बीज होते है।
उत्तर- जी हॉं मुख्यतया चार प्रकार के बीज होते है। 1. प्रजनक बीज, 2. आधारीय बीज, 3. प्रमाणित बीज 4. सत्यापित बीज।
62- प्रश्न- बीजों की गुणवत्ता कहॉं जॉंची जाती है।
उत्तर- प्रदेश में 07 बीज विश्लेषण केन्द्र है जहॉं से बीजों की गुणवत्ता की जॉंच की जाती है। वाराणसी, आजमगढ़, बाराबंकी, हरदोई, मथुरा, मेरठ तथा झॉंसी।
63- प्रश्न- बीज खरीदते समय किस बात का ध्यान रखें।
उत्तर- बीज क्रय करते समय रसीद जरूर प्राप्त करें तथा बीज के बैग पर टैगिंग को जरूर देखें।
64- प्रश्न- बीजोत्पादन क्या किसान कर सकता है।
उत्तर- जी हॉं, सर्वप्रथम बीजोत्पादन हेतु पंजीकरण करायें तत्पश्चात बोये जाने वाली फसल की प्रजाति सुनिश्चित करते हुए बीज उत्पादन तकनीकी प्रक्रिया को अपनायें।
65- प्रश्न- हाइब्रिड बीज क्या है।
उत्तर- अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु शोध द्वारा बीजों के गुणो में विकास कर तैयार किये गये बीज को हाइब्रिड बीज या संकर बीज कहते है।
66- प्रश्न- हाइब्रिड बीज को अगले वर्ष के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
उत्तर- प्रयास करें कि हाइब्रिड का भण्डारण कृषक अपने स्तर पर न करें क्योंकि इनमें अंकुरण क्षमता वाहय कारणों के कारण प्रभावित हो जाता है, जिससे जमाव घट जाता है। अतः किसान भाई प्रत्येक वर्ष नये हाइब्रिड बीज का उपयोग करें।
67- प्रश्न- क्या सभी फसलों के हाइब्रिड बीज उपलब्ध है।
उत्तर- मुख्य रूप से धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, सरसों के हाइब्रिड बीज उपलब्ध है।
68- प्रश्न- संस्तुत प्रजातियॉं क्या हैं।
उत्तर- शोध के उपरान्त सरकारी तन्त्र से अनुमोदित प्रजातियॉं ही संस्तुत प्रजातियॉं कहलाती है।
69- प्रश्न- सत्यापित बीज (टी0एल0) का प्रयोग लाभदायी है अथवा नहीं।
उत्तर- सत्यापित बीज अथवा टी0एल0 का उत्पादन भी प्रमाणित बीज की तरह किया जाता है तथा बीज के बैग पर संस्था का टैग लगा होता है, इसलिए सत्यापित बीज अथवा टी0एल0 का प्रयोग लाभदायी होता है।
70- प्रश्न- प्रदेश की बीज प्रमाणीकरण संस्था कहॉं स्थापित है।
उत्तर- उ0प्र0 बीज प्रमाणीकरण संस्था लखनऊ शहर के आलमबाग क्षेत्र में करियप्पा मार्ग पर स्थापित है।
71- प्रश्न- बीज का जमाव कम हो अथवा बीज खराब हो इसकी सूचना किसे दें।
उत्तर- जिला कृषि अधिकारी/उप कृषि निदेशक को खराब बीज की सूचना अवश्य दें, जिससे उचित कार्यवाही की जा सके।
उर्वरक
72- प्रश्न- जैव उर्वरक क्या है ?
उत्तर- कल्चर ही जैव उर्वरक है। यह जीवित सूक्ष्म जीवाणुओं से बना हुआ एक प्रकार का टीका है जैसे राइजोबियम, पी0एस0बी0 तथा एजैटोबैक्टर।
73- प्रश्न- पोटाश की खाद (म्यूरेट आफ पोटाश) का प्रयोग कब और कैसे करें ?
उत्तर- हल्की मृदा में (बलुअर, बलुअर दोमट) में पोटाश का प्रयोग दो या तीन बार में लाभदायी होता है, क्योंकि हल्की मृदा में पोटाश पानी में घुलकर जड़ों के काफी नीचे चला जाता है।
74- प्रश्न- विभिन्न प्रकार की खाद एवं उर्वरक मौजूद है इन सबके प्रयोग का समय बतायें ?
उत्तर- हरी खाद बुवाई से डेढ़ माह पूर्व, कम्पोस्ट/वर्मी बुवाई से एक माह पहले खेत में भली भॉंति मिला देना चाहिए। उर्वरकों (नत्रजनधारी, फास्फेटिक एवं पोटाश) का प्रयोग बुवाई के समय इस प्रकार करना चाहिए कि नत्रजनधारी की आधी मात्रा फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में डाले तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा टाप ड्रेसिंग के रूप में खड़ी फसल में डाले। सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली उर्वरक का प्रयोग मिट्टी जॉंच के आधार पर बुवाई के समय खेत में डालना चाहिए।
75- प्रश्न- धान के खेतों में नील हरित शैवाल के प्रयोग से क्या लाभ है ?
उत्तर- यूरिया की आधी बचत होती है तथा खेत ऊसर होने से बचा रहता है।
76- प्रश्न- जैव उर्वरक के प्रयोग के बारे में बताएं ?
उत्तर- दलहन वाली फसलों में राइजोबियम कल्चर का प्रयोग, धान्य फसलों में एजटोबैक्टर का प्रयोग तथा सभी फसलों में फास्फेट की उपलब्धता हेतु पी0एस0बी0 का प्रयोग लाभदायी है। 10 किग्रा बीज के शोधन हेतु 1 पैकेट (200 ग्राम) तथा भूमि उपचार में प्रति एकड़ 20 पैकेट (04 किग्रा) कल्चर 40 किग्रा छनी मिट्टी में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
77- प्रश्न- खेती में रासायनिक खादों के लगातार डालने से जो उर्वरा शक्ति कमजोर हुई है उसके समाधान का उपाय बताएं
उत्तर- मिट्टी परीक्षण के आधार पर रासायनिक खादों के साथ खेत में जैविक खाद जैसे गोबर, वर्मीकम्पोस्ट, हरीखाद, जैव उर्वरक तथा फसलों के अवशेष आदि का प्रयोग अवश्य करें।
78- प्रश्न- ऊसरीली मिट्टी बनने का कारण बताएं ?
उत्तर- ऊसर बनने के लिए मुख्य रूप से सिंचाई जल तथा मृदा प्रोफाइल में कड़ी परत के होने से सिंचाई करने पर यह समस्या आती है तथा जीवॉंश की कमी भी ऊसर बनने में सहयोग देता है।
79- प्रश्न- क्या कारण है कि उर्वरकों के प्रयोग के बावजूद भी उपज नहीं बढ़ रही है।
उत्तर- उर्वरक उपयोग द्वारा उपज में वृद्धि न होने के प्रमुख कारण है - उर्वरकों का असन्तुलित उपयोग, द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, अनुचित जल प्रबन्धन तथा उर्वरकों की संदिग्ध गुणवत्ता है।
80- प्रश्न- उर्वरकों के प्रयोग से अधिकतम लाभ कैसे मिले?
उत्तर- 1. मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग किया जाए। 2. फास्फोरसधारी उर्वरकों को कूॅंड में ही डालना चाहिए। 3. दलहनी फसलों में राइजोवियम कल्चर का प्रयोग अवश्य किया जाए। 4. गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में सिंगल सुपर फास्फेट तथा अमोनियम सल्फेट को वरीयता के आधार पर दिया जाए। 5. नाइट्रोजनधारी उर्वरकों की टाप ड्रेसिंग में सावधानी बरती जाए अर्थात दोपहर बाद टाप ड्रेसिंग उर्वरक को यथा संभव मिट्टी में मिला देना चाहिए। 6. उन्नत खेती की संस्तुतियों का अनुपालन किया जाए।
81- प्रश्न- फसलों में मुख्य पोषक तत्वों की कमी के क्या लक्षण है मौटे तौर पर बतायें ?
उत्तर- नत्रजन की कमी होने पर पौधे बौने रह जाते है, पुरानी पत्तियॉं पहले पीली तथा बाद में सूखने लगती है तथा उत्पादन घट जाता है।
82- प्रश्न- सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का उपचार कैसे करें ?
उत्तर- 1. जिंक की कमी होने पर - जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत अथवा 33 प्रतिशत का प्रयोग करें। 2. लोहा की कमी के लिए - फेरस सल्फेट 19 प्रतिशत। 3. तॉंबा की कमी के लिए - कॉंपर सल्फेट 25 प्रतिशत। 4. बोरान की कमी के लिए -बोरेक्स सल्फेट 11 प्रतिशत। 5. मैगनीज की कमी के लिए -मैगनीज सल्फेट 26 प्रतिशत। 6. मालिब्डेनम की कमी के लिए -अमोनियम मालिब्डेट 54 प्रतिशत का प्रयोग करें।
83- प्रश्न- डी0ए0पी0 में कितना प्रतिशत नत्रजन एवं फास्फेट होता है।
उत्तर- डी0ए0पी0 में 18 प्रतिशत नत्रजन एवं 46 प्रतिशत फास्फेट की मात्रा उपलब्ध होती है।
84- प्रश्न- एन0पी0के0 कई तरह के बाजार में उपलब्ध है। उनमें बेहतर कौन है।
उत्तर- प्रदेश में एन0पी0के0 12:32:16, 20:20:0, 10:26:26, 19:19:19 के मिश्रण उपलब्ध है। सभी के प्रयोग लाभदायी होते है ध्यान रखे मृदा परीक्षण के आधार पर ही इनका प्रयोग करें।
85- प्रश्न- जिंक सल्फेट कई ग्रेड के है कौन सा उपयोगी है।
उत्तर- जिंक मुख्य रूप से 21 प्रतिशत तथा 33 प्रतिशत के उपलब्ध हैं। 21 प्रतिशत का जिंक ज्यादा कारगर है। इसका प्रयोग आसान है क्योंकि यह रवेदार होता है, जबकि 33 प्रतिशत का जिंक पाउडर के रूप में होता है।
86- प्रश्न- कई बार उर्वरकों के प्रयोग का असर फसलों पर नहीं दिखता है। क्या करें।
उत्तर- गुणवत्ता विहीन उर्वरक तथा प्रयोग विधि उचित न होने पर उर्वरकों का असर फसलों पर नहीं आता है। इसलिए आवश्यक है कि गुणवत्तायुक्त उर्वरक हीं खरीदें तथा दुकान से रसीद अवश्य प्राप्त करें। असर न होने पर इसकी शिकायत जिला कृषि अधिकारी को अवश्य करें।
87- प्रश्न- उर्वरकों का प्रयोग बेहतर ढंग से कैसे हो ?
उत्तर- उर्वरकों के प्रकार के अनुसार ही प्रयोग किया जाना चाहिए। ध्यान रखें कि डी0ए0पी0 एवं म्यूरेट आफ पोटाश बुवाई के समय कूॅंड में ही बो देना चाहिए जबकि यूरिया का प्रयोग खड़ी फसल में छिड़ककर (टाप ड्रेंिसंग) के रूप में करने से बेहतर लाभ प्राप्त होता है।
88- प्रश्न- अक्सर वैज्ञानिकों/ अधिकारियों द्वारा कहा गया है 150:60:40 (एन0पी0के0) किग्रा/हे0 का प्रयोग करें। इस अनुपात की मात्रा बतायें ?
उत्तर- 150:60:40 के अनुपात पर 270 किग्रा0 यूरिया, 130 किग्रा डी0ए0पी0 तथा 70 किग्रा0 म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की मात्रा आती है।
89- प्रश्न- संस्तुत खाद की मात्रा किस उर्वरक से आपूर्ति करें ?
उत्तर- फास्फेट की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट से पोटाश को म्यूरेट आफ पोटाश तथा नत्रजन को यूरिया से देना चाहिए। यदि फास्फेट की पूर्ति डी0ए0पी0 से की जा रही है तो बुवाई के समय 200-250 किग्रा0/हेक्टेयर जिप्सम देना लाभदायी होता है।
90- प्रश्न- जिंक सल्फेट की खाद पर क्या कोई सरकार द्वारा कोई छूट है।
उत्तर- जिंक सल्फेट पर वर्तमान में 90 प्रतिशत की छूट प्रदान की गयी है, जिसे राजकीय बिक्री केन्द्रो से प्राप्त किया जा सकता है।
91- प्रश्न- बायो फर्टीलाइजर के क्रय पर कितनी छूट अनुमन्य हैं।
उत्तर- वर्तमान में 90 प्रतिशत की छूट प्रदान की गयी है।
92- प्रश्न- एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन क्या हैं।
उत्तर- इसे आई0पी0एन0एम0 से भी जाना जाता है। इस विधा में संतुलित उर्वरकों का प्रयोग फसल की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। जिसमें जैविक खाद का प्रयोग आवश्यक होता है। जिससे मृदा का स्वास्थ्य टिकाऊ रह सके।
93- प्रश्न- खेतों में फसलों के अवशेष को जलाना हानिकारक है अथवा लाभदायी है।
उत्तर- फसलों के अवशेषों को खेत में ही मिला देना लाभदायी है। अवशेषों को खेत में कभी भी न जलायें। यह एक हानिकारक प्रक्रिया है।
94- प्रश्न- उर्वरकों की गुणवत्ता खराब होने पर बिक्री केन्द्र/दुकान पर क्या कार्यवाही होती है।
उत्तर- बिक्री केन्द्र का लाइसेन्स निरस्त किया जाता है तथा एफ0आई0आर0 जैसी कानूनी कार्यवाही भी सम्भावित रहती है।
95- प्रश्न- जिंक सल्फेट का प्रयोग डी0ए0पी0 के साथ या एस0एस0पी0 के साथ कर सकते है।
उत्तर- जी नहीं, इसका प्रयोग एक साथ करने से लाभ नहीं मिल पाता है।
96- प्रश्न- नाडेप कम्पोस्ट में कितना पोषक तत्व रहता है।
उत्तर- यह अन्य कम्पोस्ट की तुलना में जल्दी तैयार हो जाता है तथा लगभग 1.0 प्रतिशत नत्रजन, 1.5 प्रतिशत फास्फोरस तथा 1.0 प्रतिशत पोटाश के साथ अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते है।
97- प्रश्न- वर्मीकम्पोस्ट की कितनी मात्रा उपयोगी होती है।
उत्तर- सामान्य तौर पर 3 से 5 टन प्रति हेक्टेयर वर्मीकम्पोस्ट खेती के लिए उपयोगी होता है।
98- प्रश्न- काऊ पैटपिट क्या है।
उत्तर- यह एक प्रकार की जीवॉंश खाद है, जिसे गाय के सींग द्वारा तैयार किया जाता है। जैविक खेती के लिए सर्वोत्तम है।
99- प्रश्न- बायोडायनिमिक कम्पोस्ट क्या है।
उत्तर- जानवरों के गोबर, सूखी पत्तियॉं, हरी पत्तियॉं तथा फसलों के बिछावन आदि को मिलाकर सूक्ष्म जीवाणुओं के प्रयोग से सड़ाकर तैयार किया गया कम्पोस्ट बायोडायनिमिक कम्पोस्ट कहलाता है। इसे वैज्ञानिक विधि द्वारा तैयार किया जाता है।
फसल
100- प्रश्न- सिंचाई क्यों आवश्यक है।
उत्तर- फसलों के जीवन को पूर्ण करने के लिए तथा खेत से पोषक तत्वों को पौधों में पहुंचाने के लिए सिंचाई आवश्यक है।
101- प्रश्न- बौछारी सिंचाई क्या है।
उत्तर- वर्षा जल की भॉंति जल को छिड़ककर देने के क्रिया को बौछारी सिंचाई कहते है। जिसे स्प्रिंकलर द्वारा किया जाता है।
102- प्रश्न- स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से क्या लाभ है।
उत्तर- पानी के कमी होने पर भी अधिक क्षेत्र में जल की उपलब्धता की जा सकती है तथा समय से सिंचाई को पूरा किया जाता है।
103- प्रश्न- सिंचाई की विधियॉं बतायें।
उत्तर- मुख्य रूप से प्रदेश में सतही विधि, भूमिगत विधि, स्प्रिंकलर विधि एवं थोड़े से क्षेत्रफल में ड्रिप विधि से सिंचाई की जाती है।
104- प्रश्न- सिंचाई महॅंगी होती जा रही है इसे कम करने का उपाय बतायें।
उत्तर- सिंचाई की स्प्रिंकलर विधि एवं ड्रिप विधि को अपनायें इसमें कम खर्च आता है तथा सतही विधि में नाली तथा कुलाबे की सफाई पर ध्यान रखें।
105- प्रश्न- पम्पसेट लगवाने हेतु कितना अनुदान अनुमन्य है।
उत्तर- पम्पसेट लगवाने हेतु राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत चयनित जनपदों में डीजल पम्प पर 50 प्रतिशत अथवा रू0 10,000/- जो भी कम हो का अनुदान अनुमन्य है।
106- प्रश्न- डीजल पम्प क्या विभाग द्वारा मिल सकता हैं।
उत्तर- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, जो विभाग द्वारा संचालित है, में चयनित जनपदों में डीजल पम्प की उपलब्धता सुनिश्चित करायी गयी है।
107- प्रश्न- सिंचाई हेतु पाइप की आवश्यकता है कौन सी प्रयोग करें।
उत्तर- एच0डी0पी0ई0 पाइप जो कुशल जल प्रबन्धन योजना के अन्तर्गत प्रदान किया जाना है, पर 50 प्रतिशत का अनुदान अनुमन्य है।
108- प्रश्न- जल निकास क्यों आवश्यक है।
उत्तर- मृदा की रचना एवं संरचना बिगड़ने न पायें तथा जल प्लावन की स्थिति न हो इसके लिए जल निकास आवश्यक है।
109- प्रश्न- सिंचाई व्यवस्था न होने पर खेती कैसे करें।
उत्तर- सिंचाई की व्यवस्था न होने पर वर्षा आधारित खेती जिसमें मुख्य रूप से मोटे अनाज की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। वर्तमान में औषधियुक्त पौधों की खेती भी प्रचलित हो रही है।
110- प्रश्न- सिंचाई की कम व्यवस्था होने पर कब सिंचाई आवश्यक होती है।
उत्तर- फसलों की क्रान्तिक अवस्था पर ही सिंचाई करे जैसे गेहूॅं में 22 दिन पर सिंचाई आवश्यक है। यदि दो सिंचाई उपलब्ध है तो पहली सिंचाई 22 दिन पर तथा दूसरी सिंचाई फूल आने पर करें। यदि तीन सिंचाई उपलब्ध है तो कल्ले आते समय सिंचाई करें।
111- प्रश्न- सिंचाई जल बहकर नष्ट न हो इसके लिए उपाए बतायें।
उत्तर- खेत समतल रखें तथा विभिन्न प्रकार की भूमि में ढाल की प्रतिशतता सुनिश्चित करें जैसे दोमट मिट्टी में 0.2 से 0.4 प्रतिशत तक का ही ढाल रखें।
112- प्रश्न- बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिए सिंचाई की कोई विशेष योजना है।
उत्तर- जी हॉं, बुन्देलखण्ड क्षेत्र में वर्षा जल संचयन एवं सिचाई की विशिष्ठ परियोजना संचालित है, जिसके अन्तर्गत स्पिंकलर सिंचाई प्रणाली एवं ड्रिप सिचांई प्रणाली पर विशेष अनुदान अनुमन्य है। योजनान्तर्गत लघु एवं सीमान्त तथा अनुसूचित जाति के कृषकों को शतप्रतिशत तथा अन्य कृषकों को 75 प्रतिशत अनुदान अनुमन्य है।
कृषि रक्षा
113- प्रश्न- आई0पी0एम0 क्या हैं
उत्तर- एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन में रोगं, खरपतवार एवं कीटनाशियों के नियंत्रण हेतु समन्वित प्रयास की एक विधा है। जिसमें गर्मी की जुताई से लेकर जैव कीटनाशियों का प्रयोग किया जाता है।
114- प्रश्न- कीटनाशियों के प्रयोग पर क्या छूट अनुमन्य है।
उत्तर- विभिन्न परिस्थिति योजना अन्तर्गत जैव रसायनों एवं इकोफ्रेन्डली रसायनों पर 50 प्रतिशत तक अनुदान अनुमन्य है।
115- प्रश्न- एल्डरिंग एक प्रभावी दवा है, किन्तु उपलब्ध नहीं हो रही है।
उत्तर- कुछ रसायनों का दुष्प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है, उनमें से एल्उरिंग भी एक है। इसलिए इसे प्रतिबन्धित कर दिया गया हैं
116- प्रश्न- क्या फसलवार आई0एन0एम0 होता है।
उत्तर- जी हॉं, मुख्य फसलों के आई0एन0एम0 तैयार है। उसी क्रम में प्रयोग करना चाहिए।
117- प्रश्न- कीटनाशी रसायनों के प्रयोग को कैसे प्रभावी बनायें।
उत्तर- कीटनाशी रसायनों की प्रयोग मात्रा एवं प्रयोग विधि पर विशेष ध्यान देकर प्रभावी बनाया जा सकता है।
118- प्रश्न- कीटनाशी रसायनों के दुष्प्रभाव से कैसे बचें।
उत्तर- खास तौर से सब्जियों, फलों तथा अनाजों की कटाई के समय कीटनाशी रसायनों का प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। सब्जियों की तुड़ाई के एक सप्ताह पहले प्रयोग बन्द कर देना चाहिए।
119- प्रश्न- कीटनाशी रसायनों के नये नये मिश्रण बाजार में उपलब्ध है। क्या यह लाभदायी है।
उत्तर- जी हॉं, कीटनाशी रसायनों के मिश्रण ज्यादा प्रभावी होते है। इनके प्रयोग से कई प्रकार के रोगों की एक साथ रोकथाम हो जाती है।
120- प्रश्न- कीटनाशी रसायनों की गुणवत्ता जॉंच कैसे करें।
उत्तर- सरकार द्वारा कीटनाशी रसायनों की गुणवत्ता की जॉंच हेतु किसानों को सीधे अधिकृत किया है कि वे नमूने लेकर गुणनियंत्रण प्रयोगशाला को सीधे प्रेषित कर सकते है तथा परिणाम के आधार पर जिला कृषि रक्षा अधिकारी को सूचित करें। इसमें दण्ड का भी प्राविधान है।
121- प्रश्न- कीटनाशी रसायनों का प्रयाग किस उपकरण द्वारा ज्यादा प्रभावी है।
उत्तर- फ्लैट फैन नाजिल स्प्रेयर का प्रयोग अत्यधिक प्रभावी होता है।
122- प्रश्न- कीटनाशियों का प्रयोग कब नहीं करना चाहिए।
उत्तर- तेज धूप में तथा हवा चलते समय, बारिस की सम्भावना होने के समय कीटनाशियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
123- प्रश्न- बीज शोधन में किस रसायन का प्रयोग उचित होता है।
उत्तर- थीरम तथा कार्बेन्डाजिम रसायन का प्रयोग उपयुक्त होता है तथा जैव रसायन के रूप में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग बीज शोधन के लिए उपयुक्त है।
124- प्रश्न- दीमक को नियंत्रित करने हेतु क्या करें।
उत्तर- बवेरिया बेसियाना बायो पेस्टीसाइड का पयोग सबसे अधिक प्रभावी है। इसके अतिरिक्त क्लोरोपायरीफास के प्रयोग से दीमक को नियंत्रित किया जा सकता है।
125- प्रश्न- ट्राइकोडर्मा एवं बवेरिया बेसियाना कहॉं से प्राप्त करें।
उत्तर- राजकीय कृषि बिक्री केन्द्रों/कृषि रक्षा केन्द्रो पर ट्राइकोडर्मा एवं बवेरिया बेसियाना 90 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध है।
अनुदान
126- प्रश्न- रोटावेटर किस कार्य में प्रयोग किया जाता है तथा इस पर अनुदान क्या है।
उत्तर- रोटावेटर द्वारा एक ही बार में खेत की तैयारी अच्छी प्रकार हो जाती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन अन्तर्गत 50 प्रतिशत अथवा रू0 30,000.00 जो भी कम हो तथा मैक्रोमोड योजना में मूल्य का 40 प्रतिशत अथवा रू0 20,000.00 में से जो भी कम हो ।
127- प्रश्न- लेजर लेवलर क्या है। क्या प्रदेश में उपलब्ध है।
उत्तर- खेत को समतल करने हेतु आधुनिक कृषि यन्त्र है। जो प्रदेश की समस्त भूमि संरक्षण इकाईयों पर उपलब्ध है।
128- प्रश्न- कोनोवीडर क्या है।
उत्तर- एस0आर0आई0 पद्धति से धान की खेती में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जाने वाला यह कृषि यन्त्र है।
129- प्रश्न- सीड कम फर्टीड्रिल से क्या क्या कर सकते है तथा इस पर क्या अनुदान है।
उत्तर- सीड कम फर्टीड्रिल से एक साथ खाद एवं बीज की बुवाई निश्चित गहराई पर कर सकते है तथा इस पर 50 प्रतिशत अथवा रू0 15000.00 में से जो भी कम हो का अनुदान अनुमन्य है।
130- प्रश्न- रोटावेटर चलाने के लिए कितने हार्स पावर ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।
उत्तर- 40 हार्स पावर ट्रैक्टर की आवश्यकता होती हैं।
131- प्रश्न- राष्टीय खाद्य सुरक्षा मिशन अन्तर्गत किन कृषि यन्त्रों पर अनुदान अनुमन्य है।
उत्तर- उक्त यन्त्रों के मूल्य का 50 प्रतिशत या निम्न निर्धारित मूल्य में से जो भी कम हो का अनुदान अनुमन्य है। अ-जीरो टिल - 15000.00 ब-सीड ड्रिल - 15000.00 स-रोटावेटर - 30000.00 द-स्प्रिंकलर सेट - 7500.00 य-नैपसैक स्प्रेयर - 400.00 र-डीजल पम्पसेट - 10000.00 ल-कोनोवीडर - 3000.00 व-पावर वीडर - 15000.00
फसल
132- प्रश्न- गन्ने में दीमक लगा है क्या करें।
उत्तर- 5.00 ली. प्रति हे0 की दर से क्लोरोपाइरीफास सिचाई के पानी के साथ प्रयोग करें
133- प्रश्न- गन्ने में कितना उर्वरक प्रयोग करें।
उत्तर- गन्ने में 330 कि0ग्रा0 यूरिया 12:32:16 एन0पी0के0 तथा पोटाश 40 किग्रा/हे0 प्रयोग करें।
134- प्रश्न- गन्ने में कीड़ा लगा है एक फिट ऊपर से सूख जाता है।
उत्तर- गन्ने में इण्डोसल्फान 35 ई.सी. 3.5 ली0 या रोगोर 30 ई.सी0 700 मि.ली. प्रति हे0 की दर से छिड़काव करें।
135- प्रश्न- गन्ने में चूहे लग रहे है क्या करें।
उत्तर- जिंक सल्फाइड या अल्यूमिनियम फास्फाइड की गोली बना कर खेत या मेड़ पर रखे।
136- प्रश्न- गन्ने में काली सूंडी का प्रकोप है।
उत्तर- गन्ने में गामा बी.एच.सी 20 प्रतिशत 1.25 ली0 या इण्डोसल्फान 35 ई0सी0 700 मि0ली0 या रोगार 30 प्रतिशत 700 मि0ली प्रति हे0 की दर से डालें।
137- प्रश्न- गन्ने में पत्ती काटने वाला कीट लगा है।
उत्तर- गन्ने में गामा बी.एच.सी. 20 प्रतिशत घोल 1.25 ली0 प्रति हे0 अथवा मैलाथियान 10 प्रतिशत चूर्ण प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें।
138- प्रश्न- गन्ने की पत्तियों पर काले-काले धब्बे पड़ रहे है क्या करें।
उत्तर- यह रोग पाइरिला के कारण होता है इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत या लिण्डेन धूल 1.3 प्रतिशत 25 किग्रा0/हे0 की दर से प्रयोग करें।
139- प्रश्न- गांव में पुआल ज्यादा है क्या गन्ने में फैलाकर सिचाई कर दे तो लाभ होगा।
उत्तर- जी हॉ फायदा होगा इससे पानी गर्मी में कम उड़ेगा तथा पुआल सड़कर खाद का भी काम करेगा।
140- प्रश्न- गन्ने में टिड्डा लगा है पत्तियॉ खा रहा है।
उत्तर- 2.5 ली0 क्लोरोपाइरीफास को 500 ली0 पानी में घोलकर प्रति हे0 की दर से शाम को छिड़काव करें।
141- प्रश्न- गन्ने में रोग है बीच से चीरने पर पूरा पौधा लाल दिखता है। 25 प्रतिशत फसल बची है शेष सूख गयी है।
उत्तर- रोग लगने के बाद कुछ नहीं किया जा सकता, आगे से इस खेत में कम से कम 3 वर्ष तक गन्ने की फसल न लें।
142- प्रश्न- गन्ने में कण्डुआ रोग लगा है क्या करें।
उत्तर- इसके लिए बीज उपचार बेहतर उपाय है 50 डिग्री तक गर्म पानी में 4 घंटे बीज को डुबोकर उपचारित करें। अब ब्लाइटाक्स दवा का छिड़काव करें।
अन्य
143- प्रश्न- ढैचा बोना है प्रति है. बीज की मात्रा क्या होगी।
उत्तर- हरी खाद हेतु बीज की मात्रा 45-50 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है। इसी प्रकार ढैंचा बीज उत्पादन हेतु 20-25 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से बीज पर्र्याप्त होता है। ऊसर भूमि में बीज की मात्रा बढ़ाकर सवा गुना कर लें।
144- प्रश्न- ढैंचा में उर्वरक की मात्रा क्या होगी।
उत्तर- उर्वरक 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें।
145- प्रश्न- सूरजमुखी की खेती करनी है कब बुवाई करे व बीज की मात्रा बता दें।
उत्तर- बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी का दूसरा पखवारा है। संकुल प्रजाति 12-15 कि0ग्रा0 बीज तथा संकर प्रजाति का 5-6 कि0ग्रा0 बीज प्रति हे0 पर्याप्त है।
146- प्रश्न- सूरजमुखी में उर्वरक कितना डालें।
उत्तर- 80 किग्रा0 नत्रजन, 60 किग्रा0 फास्फोरस एवं 40 किग्रा0 पोटाश प्रेति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। सूरजमुखी की खेती में 200 किग्रा जिप्सम तथा 3 से 4 टन गोबर की कम्पोस्ट खाद प्रेति हेक्टेयर की दर से प्रयोग लाभप्रद पाया गया है।
147- प्रश्न- सूरजमुखी में सिंचाई कब-कब महत्वपूर्ण है।
उत्तर- पहली सिंचाई बोने के 20 से 25 दिन बाद आवश्यक है। फूल निकलते समय तथा दाना भरते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
148- प्रश्न- सूरजमुखी को नीलगाय ने खा लिया है क्या दोबारा कल्ले देगी।
उत्तर- मुश्किल है कहीं-कही कल्ले आ सकते है।
149- प्रश्न- सूरजमुखी में कीड़ा लगा है क्या करें?
उत्तर- मिथाइल ओ डिमेटान 25 ई.सी. 1 ली0 अथवा इण्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.25 ली. प्रति हे0 की दर से 600-800 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें।
150- प्रश्न- जायद में मूंग की किस प्रजाति की बुवाई करें।
उत्तर- टा0-44, पन्त मूंग-1, पन्त मूंग-2, नरेन्द्र मूंग-1, सम्राट, मालवीय जागृति, मेहा तथा एच0यू0एम0-16 अच्छी प्रजातियॉं है।
151- प्रश्न- जायद में उर्द की किस प्रजाति की बुवाई करें।
उत्तर- पन्त उर्द-19, पन्त उर्द-35, टाइप-9, नरेन्द्र उर्द-1, आजाद उर्द-1, आजाद उर्द-2, शेखर-1 तथा शेखर-2 अच्छी प्रजातियॉं है।
152- प्रश्न- जायद में उर्द, मूंग की कितनी मात्रा बीज का प्रयोग करें। इनकी बुवाई का उपयुक्त समय क्या है।
उत्तर- उर्द तथा मूंग दोनों फसलों में लगभग 30 किग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है। मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक है तथा उर्द की बुवाई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक है।
153- प्रश्न- जायद में उर्द, मूंग की कितनी मात्रा उर्वरक का प्रयोग करें।
उत्तर- उर्द तथा मूंग में 15-20 किग्रा0 नत्रजन, 40 किग्रा0 फास्फोरस तथा 20 किग्रा0 गन्धक प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। यदि सुपर फास्फेट उपलब्ध न हो तो 2 कुन्तल जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करें।
154- प्रश्न- उर्द तथा मूंग में प्रायः पीले चित्रवर्ण (मोजैक) रोग का प्रकोप होता है। इससे बचने के उपाय क्या है।
उत्तर- इससे बचने के लिए मोजैक अवरोधी प्रजातियों की बुवाई करें। रोग का प्रकोप दिखायी देने पर मिथाइल ओ डिमिटान 25 ई.सी. अथवा डाइमोथेएट 30 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।
155- प्रश्न- कपास की खेती के लिए अच्छी प्रजातियॉं कौन सी है।
उत्तर- आर0जी0-8, लोहित देसी प्रजाति तथा एच0एस0-6, विकास, एच0-777, एफ-846, आर0एस0-810 अमेरिकन प्रजातियॉं अच्छी पैदावार देती है।
156- प्रश्न- कपास की खेती में बीज की कितनी मात्रा प्रयोग करें।
उत्तर- देसी प्रजाति के लिए 15 किग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा अमेरिकन प्रजाति के लिए 20 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर रेशा रहित बीज प्रयोग करें।
157- प्रश्न- कपास की बुवाई का उपयुक्त समय क्या है।
उत्तर- देसी कपास की बुवाई के लिए अप्रैल का प्रथम पखवारा तथा अमेरिकन कपास की बुवाई के लिए मध्य अप्रैल से मध्य मई बुवाई के लिए उपयुक्त समय है।
158- प्रश्न- कपास की खेती में उर्वरक का प्रयोग कितना करें।
उत्तर- कपास में केवल नत्रजन व फास्फोरस उर्वरक ही दिया जाना चाहिए। देसी व अमेरिकन दोनों प्रजाति के लिए 60 किग्रा0 नत्रजन तथा 30 किग्रा0 फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से तत्व की आवश्यकता होती है। डी0ए0पी0 एवं युरिया का प्रयोग करने पर 67 किग्रा0 डी0ए0पी0 एवं 105 किग्रा0 यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। सुपर फास्फेट एवं यूरिया का प्रयोग करने पर 188 किग्रा0 सिंगल सुपर फास्फेट तथा 130 किग्रा0 यूरिया का प्रयोग करना चाहिए।
159- प्रश्न- कपास गेलर बेधक कीट का प्रकोप अत्यधिक होता है। बचाव कैसे करें।
उत्तर- इनके प्रकोप से 80 प्रतिशत तक फसल का नुकसान होता है। यदि 5 प्रतिशत से अधिक क्षति हो तो नैपसैक मशीन से क्यूनाल फॉस 25 सी0सी0 2 लीटर, मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 1.25 लीटर अथवा इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.5 लीटर को आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
160- प्रश्न- जूट की अच्छी प्रजातियॉं कौन कौन सी है।
उत्तर- जे0आर0सी0-321, जे0आर0सी0-212, यू0पी0सी0-94, जे0आर0सी0-698, जे0आर0ओ0-632, जे0आर0ओ0-878, जे0आर0ओ0-524 तथा 66 जूट की अच्छी प्रजातियॉं है।
161- प्रश्न- जूट की बुवाई के लिए कितनी बीज की आवश्यकता होगी।
उत्तर- पंक्तियों में बुवाई करने पर 4 से 6 किग्रा. तथा छिड़कवा बोने पर 6 से 8 किग्रा0 बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
162- प्रश्न- जूट की बुवाई का उपयुक्त समय क्या है।
उत्तर- फरवरी से मार्च तक उपयुक्त समय है।
163- प्रश्न- जूट की खेती में उर्वरक की कितनी मात्रा का प्रयोग करें।
उत्तर- कैप्सफलोरिस किस्मों के लिए 60:30:30 और औलिटेरियस के लिए 40:20:20 किग्रा0 नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व प्रयोग करना चाहिए। यदि बुवाई के 15 दिन पूर्व 100 कुन्तल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने से पैदावार अच्छी मिलती है।
164- प्रश्न- जूट की फसल में पौधों से पौधों की दूरी क्या रखे।
उत्तर- जूट की खेती में लाइन से लाइन 30 सेमी0 तथा पौधे से पौधे की दूरी 6 से 8 सेमी0 रखनी चाहिए। इसके लिए बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए और बिरलीकरण करके पौधे से पौाधे की दूरी 6 से 8 सेमी0 कर देनी चाहिए।
165- प्रश्न- जूट की फसल में जड़, तना सड़न से काफी नुकसान होता है। बचाव के उपाए बतायें।
उत्तर- बचाव के लिए बीज को शोधित करके ही बोना चाहिए। बीज को थीरम 3 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज शोधित करके बोना चाहिए।
166- प्रश्न- जूट की फसल को कीड़ों के प्रकोप से कैसे बचाएं।
उत्तर- जूट की फसल पर कभी कभी सेमी लेपर एपियन, स्टेम बीविल कीटों का प्रकोप होता है। इनके नियंत्रण हेतु इन्डोसल्फान 35 ई0सी0 के 1.250 लीटर को 700 लीटर पानी में घोलकर फसल की 40 से 45, 60 से 65 तथा 100 से 105 दिन की अवस्थाओं पर छिड़काव किया जा सकता है।
167- प्रश्न- जैविक खाद कहॉ मिल सकती है।
उत्तर- क्षेत्रीय मृदा परीक्षण प्रयोगशाला, आलमबाग, निकटतम सहकारी समिति और किसी अच्छे बीज विक्रेता के पास मिल जायेगी। साथ ही इफको किसान सेवा केन्द्रों से सम्पर्क कर सकते हैं।
168- प्रश्न- डव्च् में पोटाश कितना प्रतिशत होता है।
उत्तर- 60 प्रतिशत।
169- प्रश्न- कल्चर एवं दवा से बीज कैसे उपचारित करें।
उत्तर- पहले दवा से उपचारित करें उसके बाद कल्चर की दोगुनी मात्रा से उपचारित करें।
170- प्रश्न- क्।च् खाद ज्यादा रेट पर बेच रहे है
उत्तर- जिला स्तर पर एक हैल्प लाइन है या फिर सीधे जिला कृषि अधिकारी से सम्पर्क करें।
171- प्रश्न- फसलों में पाले से बचाव के लिए क्या कर सकते है।
उत्तर- गन्धक के अम्ल की एक ली0 मात्रा को 1000 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव लाभप्रद होगा।
172- प्रश्न- सल्फर व जिंक का कल का घोल रखा है वह खराब तो नहीं हुआ होगा।
उत्तर- जी नहीं।
173- प्रश्न- मिट्टी की जॉच के लिए क्या करे, कहॉ होगी।
उत्तर- खाली खेत से 5-6 जगहों से नमूना लेकर, उसको अच्छी तरह से मिलाकर आधा किग्रा मिट्टी का नमूना आप अपने जनपद के मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में भेजें।
174- प्रश्न- खेत खाली है जुताई करके छोड दें। उसमें कुछ मिलाना तो नहीं है।
उत्तर- जी हॉ गहरी जुताई करके खेत को खाली छोड दें अभी कुछ मिलाने की आवश्यकता नहीं है।
175- प्रश्न- नीलगाय के लिए क्या उपाय ?
उत्तर- नीलगाय से अपनी फसल को बचाने के लिए 3-4 ली0 चार-पॉच दिन का सड़ा हुआ मठ्ठा लेकर उसमें 750 ग्रा0 बालू एवं 400 ग्रा0 लहसुन अच्छी तरह पीस कर भलीभाति मिला लें तथा इस मिश्रण को पुनः 4-5 दिन रखकर 10-11 वें दिन 25 लीटर पानी में घोल बनाकर नीम की टहनी से प्रति एकड़ छिड़क दें।
176- प्रश्न- वर्मी कम्पोस्ट गोबर के एक फिट पर कितना कूडा व मिट्टी की तह लगाये। यह कितने दिन में तैयार होती है। कौन सा केचुआ वर्मीकम्पोस्ट के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
उत्तर- कूडे व मिट्टी के 6-6 इंच की तह लगाये व गढ्ढे में नमी बनाये रखे। वर्मीकम्पोस्ट लगभग 45-50 दिन में तैयार हो जाती है। वर्मीकम्पोस्ट बनाने में आइसीनिया फोटिडा प्रजाति का केचुआ सर्वोत्तम होता है।
177- प्रश्न- प्रतिबन्धित रसायन कौन कौन से है?
उत्तर- आल्ड्रिन, बी.एच.सी., कैल्शियम साइनाइड, क्लोरोडेन, हेप्टाक्लोर, नाइट्रोफेन, इथिलीन डाइब्रोमाइड तथा निकोटीन सल्फेट आदि प्रतिबन्धित दवायें है।
178- प्रश्न- किसान काल सेन्टर का निःशुल्क नम्बर क्या है तथा यह किन दूरसंचार सेवाओं पर कब से कब तक उपलब्ध है।
उत्तर- 1551 निःशुल्क नम्बर है। यह सुविधा बी0एस0एल0एल0, वोडाफोन, रिलायन्स तथा एयरटेल पर निःशुल्क है। यह सुविधा प्रातः 6.00 बजे से रात 10.00 बजे तक किसानों को मुफ्त में उपलब्ध है।
179- प्रश्न- किसान काल सेन्टर का निःशुल्क नम्बर क्या है तथा यह किन दूरसंचार सेवाओं पर कब से कब तक उपलब्ध है।
उत्तर- 1552 निःशुल्क नम्बर है। यह सुविधा बी0एस0एल0एल0, वोडाफोन, रिलायन्स तथा एयरटेल पर निःशुल्क है। यह सुविधा प्रातः 6.00 बजे से रात 10.00 बजे तक किसानों को मुफ्त में उपलब्ध है।
योजना
180- प्रश्न- किसान हित योजना क्या प्रदेश के सभी जिलों में चलायी जा रही है अथवा कुछ ही जनपदों में?
उत्तर- किसान हित योजना प्रदेश के सभी 70 जनपदों में चलायी जा रही है।
181- प्रश्न- योजना का क्या उद्देश्श्य है?
उत्तर- किसान हित योजना का मुख्य उद्देश्य भू-आवंटी लघु एवं सीमांत कृषकों की ऊसर, बीहड़ बंजर एवं जल भराव आदि समस्याग्रत भूमि का लाभार्थियों भूमि सैनिकों द्वारा ही उपचार कराकर उनकी आय में वृद्धि करना एवं उनके परिवार को खाद्यान उपलब्ध कराना है।
182- प्रश्न- किसान हित योजना में कौन-कौन से कार्य कराये जाते है?
उत्तर- योजना में भूमि एवं जल संरक्षण के समस्त कार्य कराये जाते है जैसे समोच्च रेखीय बांध बन्धी निर्माण समतलीकरण, तालाब निर्माण, जल निकास नली निर्माण, उद्यानीकरण कृषि वानिकी आदि।
183- प्रश्न- यह भूमि सनिक कौन है?
उत्तर- किसान हित योजना के अंतर्गत दो प्रकार के लाभार्थियों को भूमि सैनिक माना गया है एक ऐसे लघु एवं सीमांत कृषक जिसमें भूमि आवंटी भी सम्मिलित है, जिनमें भूखण्ड समस्याग्रत होने के कारण कम उपजाऊ है तथा दो ऐसे भूमिहीन खेतीहर मजदूर जो इस प्रकार की भूमि प्र मजदूरी कर सकते है एवं भू-आवंटन के पात्र है।
184- प्रश्न- योजना के क्या लाभ है?
उत्तर- ग्रामीण अंचलों में बेकार पड़ी भूमि को कृषि के अंतर्गत लाया जा रहा है। जिससे अतिरिक्त क्षेत्रफल कृषि के अंतर्गत आ रहा है तथा भूमि की उपयोगिता के अनुसार उन्हें ठीक कर कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है तथा स्थानीय रूप से भूमिहीन मजदूरों एवं खेतिहर मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।
185- प्रश्न- योजना के अंतर्गत क्या क्या सुविधायें उपलब्ध करायी जाती है?
उत्तर- किसान हित योजना राज्य पोषित योजना है तथा लगभग 90: राज्यांश एवं 10: कृषक अंश है। मात्र सुधार के अंतर्गत जिप्सम पर कृषक अंश 25: है। योजना के अंतर्गत समस्त कार्य एवं मजदूरी का भुगतान भुमि सनिको द्वारा गठित स्थल क्रियांवयन समिति द्वारा किया जाता है।
186- प्रश्न- अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु उर्वरकों का प्रयोग किस प्रकार करें?
उत्तर- मृदा परीक्षण के पश्चात बोई जाने वाली फसल की तत्वों की आवश्यकता के लिए संस्तुत मात्रा में संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। उर्वरकों का सही समय पर सही विधि द्वारा प्रयोग करें, जिससे पोषक तत्वों का ह्रास न हो तथा न्यूनतम उत्पादन लागत से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सके।
अन्य
187- प्रश्न- 2.5 साल की पड़िया को गलाघोटू रोग हो गया है
उत्तर- म्गबमचज 1 ग्रा0 इन्जेक्शन 3 दिन लगायें स्वज 30 मि.ली. इन्जेक्शन 15 मि.ली. सुबह व 15 मि.ली. शाम को टमजसवह 5 मि.ली. इन्जेक्शन एक बार। अमरबेल उबालकर सिकाई करें।
188- प्रश्न- गाय चारा कम खा रही है पेट कुछ गडबड है।
उत्तर- हिमालयन बतीसा दे, साफ पानी पिलाये और बासी चारे को न खिलायें। यदि बुखार आदि है तो समीप के पशुचिकित्सालय में दिखा ले।
189- प्रश्न- 3 साल की पडिया है वो गर्म नहीं हो रही है
उत्तर- 12 प्रजना कैप्सूल लें 6 पहले दिन, 4 दूसरे दिन, व 2 तीसरे दिन दें 10 दिन में गर्मी में न आये तो फिर से 11 वें दिन 6, 12 वे दिन 4 तथा 13 वे दिन 2 कैप्सूल दें साथ ही काफीक्यू की 20 टेबलेट ले और 20 दिन तक प्रतिदिन एक टेबलेट दें।
.190- प्रश्न- बैलों के खुर पक रहे है क्या करें ?
उत्तर- फिनाइल के घोल से पैर धोकर लाल दवा लगायें।
191- प्रश्न- गाय को थनैला रोग हुआ है चारों थनों में सूजन है, उपचार के उपाए बताएं।
उत्तर- यूट्रोटोन 900 मि.ली. ले, 200 मि.ली. पहले दिन तथा 150 मि.ली. 3-4 दिन तक दें। मैस्टीप 16 कैप्सूल ले 2 सुबह व 2 शाम को दे मेस्टीलेप ट्यूब लेले सुबह, शाम को दूध निकालकर थन तथा अयन पर लगा दें। कोस्टल इंरजे0 4 ड्रम ले 2 पहले दिन व 2 दूसरे दिन लगवा दें तथा नेवलजीन 30 मि.ली. खिलाएं।
Sunday, 27 September 2015
भारतीय कृषि का इतिहास
भारत में ९००० ईसापूर्व तक पौधे उगाने, फसलें उगाने तथा पशु-पालने और कृषि
करने का काम शुरू हो गया था। शीघ्र यहाँ के मानव ने व्यवस्थित जीवन जीना
शूरू किया और कृषि के लिए औजार तथा तकनीकें विकसित कर लीं। दोहरा मानसून
होने के कारण एक ही वर्ष में दो फसलें ली जाने लगीं। इसके फलस्वरूप भारतीय
कृषि उत्पाद तत्कालीन वाणिज्य व्यवस्था के द्वारा विश्व बाजार में पहुँचना
शुरू हो गया। दूसरे देशों से भी कुछ फसलें भारत में आयीं। पादप एवं पशु की
पूजा भी की जाने लगी क्योंकि जीवन के लिए उनका महत्व समझा गया।
परिचय
भारत में पाषाण युग में कृषि का विकास कितना और किस प्रकार हुआ था इसकी संप्रति कोई जानकारी नहीं है। किंतु सिंधुनदी के काँठे के पुरावशेषों के उत्खनन के इस बात के प्रचुर प्रमाण मिले है कि आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व कृषि अत्युन्नत अवस्था में थी और लोग राजस्व अनाज के रूप में चुकाते थे, ऐसा अनुमान पुरातत्वविद् मुहैंजोदडो में मिले बडे बडे कोठरों के आधार पर करते हैं। वहाँ से उत्खनन में मिले गेहूँ और जौ के नमूनों से उस प्रदेश में उन दिनों इनके बोए जाने का प्रमाण मिलता है। वहाँ से मिले गेहुँ के दाने ट्रिटिकम कंपैक्टम (Triticum Compactum) अथवा ट्रिटिकम स्फीरौकोकम (Triticum sphaerococcum) जाति के हैं। इन दोनो ही जाति के गेहूँ की खेती आज भी पंजाब में होती है। यहाँ से मिला जौ हाडियम बलगेयर (Hordeum Vulgare) जाति का है। उसी जाति के जौ मिश्र के पिरामिडो में भी मिलते है। कपास जिसके लिए सिंध की आज भी ख्याति है उन दिनों भी प्रचुर मात्रा में पैदा होता था।भारत के निवासी आर्य कृषिकार्य से पूर्णतया परिचित थे, यह वैदिक साहित्य से स्पष्ट परिलक्षित होता है। ऋगवेद और अर्थर्ववेद में कृषि संबंधी अनेक ऋचाएँ है जिनमे कृषि संबंधी उपकरणों का उल्लेख तथा कृषि विधा का परिचय है। ऋग्वेद में क्षेत्रपति, सीता और शुनासीर को लक्ष्यकर रची गई एक ऋचा (४.५७-८) है जिससे वैदिक आर्यों के कृषिविषयक ज्ञान का बोध होता है-
- शुनं वाहा: शुनं नर: शुनं कृषतु लाङ्गलम्।
- शनुं वरत्रा बध्यंतां शुनमष्ट्रामुदिङ्गय।।
- शुनासीराविमां वाचं जुषेथां यद् दिवि चक्रयु: पय:।
- तेने मामुप सिंचतं।
- अर्वाची सभुगे भव सीते वंदामहे त्वा।
- यथा न: सुभगाससि यथा न: सुफलाससि।।
- इन्द्र: सीतां नि गृह् णातु तां पूषानु यच्छत।
- सा न: पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समाम्।।
- शुनं न: फाला वि कृषन्तु भूमिं।।
- शुनं कीनाशा अभि यन्तु वाहै:।।
- शुनं पर्जन्यो मधुना पयोभि:।
- शुनासीरा शुनमस्मासु धत्तम्
- एवं वृकेणश्विना वपन्तेषं
- दुहंता मनुषाय दस्त्रा।
- अभिदस्युं वकुरेणा धमन्तोरू
- ज्योतिश्चक्रथुरार्याय।।
- व्राहीमतं यव मत्त मथो
- माषमथों विलम्।
- एष वां भागो निहितो रन्नधेयाय
- दन्तौ माहिसिष्टं पितरं मातरंच।।
- संजग्माना अबिभ्युषीरस्मिन्
- गोष्ठं करिषिणी।
- बिभ्रंती सोभ्यं।
- मध्वनमीवा उपेतन।।
भारत में ऋग्वैदिक काल से ही कृषि पारिवारिक उद्योग रहा है और बहुत कुछ आज भी उसका रूप है। लोगों को कृषि संबंधी जो अनुभव होते रहें हैं उन्हें वे अपने बच्चों को बताते रहे हैं और उनके अनुभव लोगों में प्रचलित होते रहे। उन अनुभवों ने कालांतर में लोकोक्तियों और कहावतों का रूप धारण कर लिया जो विविध भाषाभाषियों के बीच किसी न किसी कृषि पंडित के नाम प्रचलित है और किसानों जिह्वा पर बने हुए हैं। हिंदी भाषाभाषियों के बीच ये घाघ और भड्डरी के नाम से प्रसिद्ध है। उनके ये अनुभव आघुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के परिप्रेक्ष्य मे खरे उतरे हैं।
प्राचीन कृषि ग्रन्थ
वृक्षायुर्वेद
एक संस्कृत ग्रन्थ है जिसमें वृक्षों के स्वास्थ्यपूर्ण विकास एवं पर्यावरण की सुरक्षा से समन्धित चिन्तन है। यह सुरपाल की रचना मानी जाती है जिनके बारे में बहुत कम ज्ञात है।सन् १९९६ में डॉ वाय एल नेने (एशियन एग्रो-हिस्ट्री फाउन्डेशन, भारत) ने यूके के बोल्डियन पुस्तकालय (आक्सफोर्ड) से इसकी पाण्डुलिपि प्राप्त की। डॉ नलिनी साधले ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया।
वृक्षायुर्वेद की पाण्दुलिपि देवनागरी के प्राचीन रूप वाली लिपि में लिखी गयी है। ६० पृष्ठों में ३२५ परस्पर सुगठित श्लोक हैं जिनमें अन्य बातों के अलावा १७० पौधों की विशेषताएँ दी गयीं हैं। इसमें बीज खरीदने, उनका संरक्षण, उनका संस्कार (ट्रीटमेन्ट) करने, रोपने के लिये गड्ढ़ा खोदने, भूमि का चुनाव, सींचने की विधियाँ, खाद एवं पोषण, पौधों के रोग, आन्तरिक एवं वाह्य रोगों से पौधों की सुरक्षा, चिकित्सा, बाग का विन्यास (ले-आउट) आदि का वर्नन है। इस प्रकार यह वृक्षों के जीवन से सम्बन्धित सभी मुद्दों पर ज्ञान का भण्डार है।
कृषिगीता
एक मलयालम ग्रन्थ है जिसमें उन्नत कृषि के विषय में परशुराम और ब्राह्मणों के बीच चर्चा है। इसके मूल लेखक एवं रचनाकाल के बारे में कुछ भी पता नहीं है। किन्तु ऐसा लगता है कि इसकी रचना लगभग १५०० ई में हुई होगी।लोकोपकार
धर्मार्थ सहायता या दान द्वारा मानवता के कल्याण में वृद्धि का प्रयास या उसके प्रति झुकाव है।कृषि क्रांति और औद्योगिक क्रांति
कृषि के क्षेत्र में अलग-अलग युगों में और अलग-अलग देशों में क्रान्तियाँ हुईं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरजस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी।
अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं।
अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी।
16वीं तथा 17वीं शताब्दियों में यूरोप
के कुछ देशों ने अपनी नौ-शक्ति के आधार पर दूसरे महाद्वीपों में आधिपत्य
जमा लिया। उन्होंने वहाँ पर धर्म तथा व्यापार का प्रसार किया। उस युग में
मशीनों का आविष्कार बहुत कम हुआ था। जहाज
लकड़ी के ही बनते थे। जिन वस्तुओं का भार कम परंतु मूल्य अधिक होता उनकी
बिक्री सात समुद्र पार भी हो सकती थी। उस युग में नए व्यापार से धनोपार्जन
का एक नया प्रबल साधन प्राप्त किया और कृषि का महत्व कम होने लगा। व्यक्तियों में किसी सामंत की प्रजा के रूप में रहने की भावना का अंत होने लगा। अमरीका के स्वाधीन होने तथा फ्रांस
में "भ्रातृत्व, समानता और स्वतंत्रता" के आधार पर होनेवाली क्रांति ने नए
विचारों का सूत्रपात किया। प्राचीन शृंखलाओं को तोड़कर नई स्वतंत्रता की
ओर अग्रसर होने की भावना का आर्थिक क्षेत्र में यह प्रभाव हुआ कि गाँव के
किसानों में अपना भाग्य स्वयं निर्माण करने की तत्परता जाग्रत हुई। वे कृषि
का व्यवसाय त्याग कर नए अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। यह विचारधारा 18वीं
शताब्दी के अंत में समस्त यूरोप में व्याप्त हो गई। इंग्लैंड में उन दिनों
कुछ नए यांत्रिक आविष्कार हुए। जेम्स के फ़्लाइंग शटल (1733), हारग्रीव्ज़
की स्पिनिंग जेनी (1770), आर्कराइट के वाटर पावर स्पिनिंग फ़्रेम (1769),
क्रांपटन के म्यूल (1779) और कार्टराइट के पावर लूम (1785) से
वस्त्रोत्पादन में पर्याप्त गति आई। जेम्स वाट के भाप के इंजन (1789) का
उपयोग गहरी खानों से पानी को बाहर फेंकने के लिए किया गया। जल और वाष्प
शक्ति का धीरे-धीरे उपयोग बढ़ा और एक नए युग का सूत्रपात हुआ। भाप के इंजन
में सर्दी, गर्मी, वर्षा सहने की शक्ति थी, उससे कहीं भी 24 घंटे काम लिया
जा सकता था। इस नई शक्ति का उपयोग यातायात के साधनों में करने से भौगोलिक
दूरियाँ कम होने लगीं। लोहे और कोयले की खानों का विशेष महत्व प्रकट हुआ और वस्त्रों के उत्पादन में मशीनों का काम स्पष्ट झलक उठा।
इंग्लैंड में नए स्थानों पर जंगलों में खनिज क्षेत्रों के निकट नगर बसे; नहरों तथा अच्छी सड़कों का निर्माण हुआ और ग्रामीण जनसंख्या अपने नए स्वतंत्र विचारों को क्रियान्वित करने के अवसर का लाभ उठाने लगी। देश में व्यापारिक पूँजी, साहस तथा अनुभव को नयाक्षेत्र मिला। व्यापार विश्वव्यापी हो सका। देश की मिलों को चलाने के लिए कच्चे माल की आवश्यकता हुई, उसे अमरीका तथा एशिया के देशों से प्राप्त करने के उद्देश्य से उपनिवेशों की स्थापना की गई। कच्चा माल प्राप्त करने और तैयार माल बेचने के साधन भी वे ही उपनिवेश हुए। नई व्यापारिक संस्थाओं, बैकों और कमीशन एजेंटों का प्रादुर्भाव हुआ। एक विशेष व्यापक अर्थ में दुनिया के विभिन्न हिस्से एक दूसरे से संबद्ध होने लगे। 18वीं सदी के अंतिम 20 वर्षों में आरंभ होकर 19वीं के मध्य तक चलती रहनेवाली इंग्लैंड की इस क्रांति का अनुसरण यूरोप के अन्य देशों ने भी किया। हॉलैंड तथा फ्रांस में शीघ्र ही, तथा जर्मनी, इटली आदि राष्ट्रों में बाद में, यह प्रभाव पहुँचा। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में व्यापारियों ने अपने-अपने राज्यों में धन की वृद्धि की और बदले में सरकारों से सैन्य सुविधाएँ तथा विशषाधिकार माँगे। इस प्रकार आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्यापार तथा सेना का यह सहयोग उपनिवेशवाद की नींव को सुदृढ़ करने में सहायक हुआ। राज्यों के बीच, अपने देशों की व्यापारनीति को प्रोत्साहन देने के प्रयास में, उपनिवेशों के लिए युद्ध भी हुए। उपनिवेशों का आर्थिक जीवन "मूल राष्ट्र" की औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति करनेवाला बन गया। स्वतंत्र अस्तित्व के स्थान पर परावलंबन उनकी विशेषता बन गई। जिन देशों में औद्योगिक परिवर्तन हुए वहाँ मानव बंधनों से मुक्त हुआ, नए स्थानों पर नए व्यवसायों की खोज में वह जा सका, धन का वह अधिक उत्पादन कर सका। किंतु इस विकसित संपत्ति का श्रेय किसी हो और उसक प्रतिफल कौन प्राप्त करे, ये प्रश्न उठने लगे। 24 घंटे चलनेवाली मशीनों को सँभालनेवाले मजदूर भी कितना काम करें, कब और किस वेतन पर करें, इन प्रश्नों पर मानवता की दृष्टि से विचार किया जाने लगा। मालिक-मजदूर-संबंधों को सहानुभूतिपूर्ण बनाने की चेष्टाएँ होने लगीं। मानव मुक्त तो हुआ, पर वह मुक्त हुआ धनी या निर्धन होने के लिए, भरपेट भोजन पाने या भूखा रहने के लिए, वस्त्रों का उत्पादन कर स्वयं वस्त्रविहीन रहने के लिए। अतएव दूसरे पहलू पर ध्यान देने के लिए शासन की ओर से नए नियमों की आवश्यकता पड़ी, जिनकी दिशा सदा मजदूरों की कठिनाइयाँ कम करने, उनका वेतन तथा सुविधाएँ बढ़ाने तथा उन्हें उत्पादन में भागीदार बनाने की ओर रही।
इस प्रकार 18वीं शताब्दी के अंतिम 20 वर्षों में फ्रांस की राज्यक्रांति से प्रेरणा प्राप्त कर इंग्लैंड में 19वीं शताब्दी में विकसित मशीनों का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। उत्पादन की नई विधियों और पैमानों का जन्म हुआ। यातायात के नए साधनों द्वारा विश्वव्यापी बाजार का जन्म हुआ। इन्ही सबसे संबंधित आर्थिक एवं सामाजिक परिणामों का 50 वर्षों तक व्याप्त रहना क्रांति की संज्ञा इसलिए पा सका कि परिवर्तनों की वह मिश्रित श्रृंखला आर्थिक-सामाजिक-व्यवस्था में आधारभूत परिवर्तन की जन्मदायिनी थी।
संसार के दूसरे देशों तथा उपनिवेशों के स्वतंत्र होकर आगे बढने से इस क्रांति के प्रभाव धीरे-धीरे दृष्टिगत होने लगे। उनके समक्ष 20वीं शताब्दी में कृषि के स्थान पर उद्योगों को विकसित करने का प्रश्न है; किंतु उनके पास न तो गत दो शताब्दियों के व्यापार की एमत्रित पूँजी तथा अनुभव है और न उनमें यातायात तथा मूल उद्योगों का विकास ही हुआ है। ये राष्ट्र स्वाधीन होने के पश्चात् अन्य संपन्न राष्ट्रों से सीमित रूप में पूँजी तथा यांत्रिक सहायता प्राप्त करने की चेष्टाओं में लगे हैं, किंतु इस प्रकार की सहायता के बदले में वे किसी राजनीतिक बंधन में नहीं पड़ना चाहते। इन राष्ट्रों का मूलभूत उद्देश्य अपने यहाँ उसी प्रकार के परिवर्तन करना है जैसे परिवर्तन औद्योगिक क्रांति के साथ यूरोप में हुए। पर यह स्पष्ट है कि मूलत: इन नए राष्ट्रों को अपने लिए कच्चा माल प्राप्त करने तथा पक्के माल का विक्रय करने के साधन अपनी सीमाओं के अनुसार ही विकसित करना है। इसके लिए चार्लिन चेल्प्लिन की फिल्म "मोदेर्ण टाइम" एक अच्छा उदाहरण है जो सन 1936 में पहली बार दिखाई गयी वैसे तो ये गूंगी फिल्म है लेकिन इसमें औद्योगिक क्रांति, मशीन और इंसान का सम्बन्ध बताया गया है
- नवपाषाण कृषि क्रांति (लगभग 10,000 ईसापूर्व) - प्रथम कृषि क्रान्ति
- अरब कृषि क्रान्ति (8वीं–13वीं शताब्दी)
- ब्रिटिश कृषि क्रान्ति (1750–19वीं शताब्दी) - इससे औद्योगिक क्रान्ति का जन्म हुआ।
- स्कॉटलैण्ड की कृषि क्रान्ति (18वीं–19वीं शताब्दी)
- हरित क्रांति (1943 – 1970 के दशक का उत्तरार्ध)
हरित क्रांति:
सन् १९४०-६० के मध्य कृषि क्षेत्र में हुए शोध विकास, तकनीकि परिवर्तन एवं अन्य कदमों की श्रृंखला को संदर्भित करता है जिसके परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इसने हरित क्रांति के पिता कहे जाने वाले नौरमन बोरलोग के नेतृत्व में संपूर्ण विश्व तथा खासकर विकासशील देशों को खादान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। उच्च उत्पादक क्षमता वाले प्रसंसाधित बीजों का प्रयोग, आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल, सिंचाई की व्यवस्था, कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग आदि के कारण संभव हुई इस क्रांति को लाखों लोगों की भुखमरी से रक्षा करने का श्रेय दिया जाता है। हरित क्रांति का पारिभाषिक शब्द के रूप में सर्वप्रथम प्रयोग १९६८ ई. में पूर्व संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के निदेशक विलियम गौड द्वारा किया गया जिन्होंने इस नई तकनीक के प्रभाव को चिन्हित कियाउर्वरक:
कृषि में उपज बढ़ाने के लिए प्रयुक्त रसायन हैं जो पेड-पौधों की वृद्धि में सहायता के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। पानी में शीघ्र घुलने वाले ये रसायन मिट्टी में या पत्तियों पर छिड़काव करके प्रयुक्त किये जाते हैं। पौधे मिट्टी से जड़ों द्वारा एवं ऊपरी छिड़काव करने पर पत्तियों द्वारा उर्वरकों को अवशोषित कर लेते हैं। उर्वरक, पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की तत्काल पूर्ति के साधन हैं लेकिन इनके प्रयोग के कुछ दुष्परिणाम भी हैं। ये लंबे समय तक मिट्टी में बने नहीं रहते हैं। सिंचाई के बाद जल के साथ ये रसायन जमीन के नीचे भौम जलस्तर तक पहुँचकर उसे दूषित करते हैं। मिट्टी में उपस्थित जीवाणुओं और सुक्ष्मजीवों के लिए भी ये घातक साबित होते हैं। इसलिए उर्वरक के विकल्प के रूप में जैविक खाद का प्रयोग तेजी से लोकप्रीय हो रहा है। भारत में रासायनिक खाद का सर्वाधिक प्रयोग पंजाब में होता है।औद्योगिक क्रांति
मुख्य तत्व
1.नाइट्रोजन
एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक N है। इसका परमाणु क्रमांक 7 है। सामान्य ताप और दाब पर यह गैस है तथा पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 78% नाइट्रोजन ही है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और प्रायः अक्रिय गैस है। इसकी खोज 1772 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञनिक डेनियल रदरफोर्ड ने की थी।
आवर्त सारणी के पंचम समूह का प्रथम तत्व है। नाइट्रोजन का रसायन अत्यंत मनोरंजक विषय है, क्योंकि समस्त जैव पदार्थों में इस तत्व का आवश्यक स्थान है। इसके दो स्थायी समस्थानिक, द्रव्यमान संख्या 14, 15 ज्ञात हैं तथा तीन अस्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 13, 16, 17) भी बनाए गए हैं।
नाइट्रोजन तत्व की पहचान सर्वप्रथम 1772 ई. में रदरफोर्ड और शेले ने स्वतंत्र रूप से की। शेले ने उसी वर्ष यह स्थापित किया कि वायु में मुख्यत: दो गैसें उपस्थित हैं, जिसमें एक सक्रिय तथा दूसरी निष्क्रिय है। तभी प्रसिद्ध फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाव्वाज़्ये ने नाइट्रोजन गैस को ऑक्सीजन (सक्रिय अंश) से अलग कर इसका नाम 'ऐजोट' रखा। 1790 में शाप्टाल (Chaptal) ने इसे नाइट्रोजन नाम दिया।
भास्वर (फ़ॉस्फ़ोरस)
एक रासायनिक तत्व है जिसका संकेत या P है तथा परमाणु संख्या 15। यह शब्द ग्रीक (यूनानी) भाषा के फॉस (प्रकाश) तथा फोरस (धारक) से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ प्रकाश का धारक। ये फॉस्फेट चट्टानों में पाया जाता है। इसकी संयोजकता 1, 3 और 5 होती है। तत्वों की आवर्त सारणी में ये भूयाति के समूह में आता है।
फ़ॉस्फ़ोरस एक अभिक्रियाशील तत्व है इसकारण ये मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता है। कुछ खनिजों में धातुओं के फॉस्फेट मिलते हैं। पशुओं की हड्डियों में 56% कैल्शियम फॉस्फेट पाया जाता है। जन्तुओं तथा पौधों के लिए यह एक अनिवार्य तत्व है। इसका अस्तित्व कई जैव अवयवों में मिलता है।
पोटैशियम (Potassium)
एक रासायनिक तत्व है। इसका प्रतीक 'K' है। यह आर्वत सारणी के प्रथम मुख्य समूह का तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३९ और ४१) ज्ञात हैं। एक अस्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ४०) प्रकृति में न्यून मात्रा में पाया जाता है। इनके अतिरिक्त तीन अन्य समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ३८, ४२ और ४३) कृत्रिम रूप से निर्मित हुए हैं।
द्वितीयक पोषक तत्व
कैल्शियम
एक भौतिक तत्त्व है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारिणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘सीए’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्शियम क्लोराइड से अलग किया था। कैल्शियम चूना पत्थर का एक बड़ी मात्र है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है।[1]
अपने शुद्ध रूप में कैल्शियम चमकीले रंग का होता है। यह अपने अन्य साथी तत्वों के बजाय कम क्रियाशील होता है। जलाने पर इसमें से पीला और लाल धुआं उठता है। इसे आज भी कैल्शियम क्लोराइड से उसी प्रक्रिया से अलग किया जाता है जो सर हम्फ्री डैवी ने 1808 में इस्तेमाल की थी। कैल्शियम से जुड़े ही एक अन्य यौगिक, कैल्शियम काबरेनोट को कंक्रीट, सीमेंट, चूना इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य कैल्शियम कंपाउंड अयस्कों, कीटनाशक, दुर्गन्धहर, खाद, कपड़ा उत्पादन, कॉस्मेटिक्स, लाइटिंग इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है। जीवित प्राणियों में कैल्शियम हड्डियों, दांतों और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। यह रक्त में भी होता है और शरीर की अंदरूनी देखभाल में इसकी विशेष भूमिका होती है।
गंधक
बहुत प्राचीन काल से यह ज्ञात है। तब औषधों और युद्धों में यह प्रयुक्त होता था। मध्ययुग के कोमियागरों को भी गंधक मालूम था और अनेक रासायनिक प्रक्रियाओं में प्रयुक्त होता था। वे गंधक को जलनीय वायु का सार समझते थे। फ्लाजिस्टन सिद्धांत से इसका घनिष्ठ संबंध रहा। लावाजिए ने पहले-पहल इसको रासायनिक तत्व की संज्ञा दी थी। गे लूसाक (Gay Lussac) और लुई थेनार्ड (Louis Thenard) ने 1809 ई. में इसकी पुष्टि की।
मैग्नेशियम
एक रासायनिक तत्त्व है, जिसका चिह्न है Mg, परमाणु संख्या १२ एवं सामान्य ऑक्सीडेशन संख्या +२ है। है। यह कैल्शियम और बेरियम की तरह एक एल्केलाइन अर्थ धातु है एवं पृथ्वी पर आठवाँ बहुल उपलब्ध तत्त्व है तथा भार के अनुपात में २% है, और पूरे ब्रह्माण्ड में नौंवा बहुल तत्त्व है। इसके बाहुल्य का संबंध ये तथ्य है, कि ये सुपरनोवा तारों में तीन हीलियम नाभिकों के कार्बन में शृंखलागत तरीके से जुड़ने पर मैग्नेशियम का निर्माण होता है। मैग्नेशियम आयन की जल में उच्च घुलनशीलता इसे सागर के जल में तीसरा बहुल घुला तत्त्व बनाती है। मैग्नीशियम सभी जीव जंतुओं के साथ मनुष्य के लिए भी उपयोगी तत्त्व है। यह प्रकाश का स्नोत है और जलने पर श्वेत प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह मानव शरीर में पाए जाने वाले पांच प्रमुख रासायनिक तत्वों में से एक है। मानव शरीर में उपस्थित ५०% मैग्नीशियम अस्थियों और हड्डियों में होता है जबकि शेष भाग शरीर में हाने वाली जैविक कियाओं में सहयोगी रहता है।
मैग्नेशियम का अग्नि-उत्पादन में प्रयोग
प्रमुख रासायनिक उर्वरक
यूरिया
पहचान विधि :
- सफेद चमकदार, लगभग समान आकार के गोल दाने।
- पानी में पूर्णतया घुल जाना तथा घोल छूने पर शीतल अनुभूति।
- गर्म तवे पर रखने से पिघल जाता है और आंच तेज करने पर कोई अवशेष नही बचता।
डाई अमोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.)
पहचान विधि :- सख्त, दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग नाखूनों से आसानी से नहीं छूटता।
- डी.ए.पी. के कुछ दानों को लेकर तम्बाकू की तरह उसमें चूना मिलाकर मलने पर तीक्ष्ण गन्ध निकलती है, जिसे सूंघना असह्य हो जाता है।
- तवे पर धीमी आंच में गर्म करने पर दाने फूल जाते है।
सुपर फास्फेट
पहचान विधि :- यह सख्त दानेदार, भूरा काला बादामी रंगों से युक्त तथा नाखूनों से आसानी से न टूटने वाला उर्वरक है। यह चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध होता है। इस दानेदार उर्वरक की मिलावट बहुधा डी.ए.पी. व एन.पी.के. मिक्चर उर्वरकों के साथ की जाने की सम्भावना बनी रहती है।
जिंक सल्फेट
पहचान विधि :- जिंक सल्फेट में मैंग्नीशिम सल्फेट प्रमुख मिलावटी रसायन है। भौतिक रूप से समानता के कारण नकली असली की पहचान कठिन होती है।
- डी.ए.पी. के घोल में जिंक सल्फेट के घोल को मिलाने पर थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है। मैग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता।
- जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक का घोल मिलाने पर सफेद, मटमैला मांड़ जैसा अवक्षेप बनता है, जिसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूर्णतया घुल जाता है। यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैंग्नीशिम सल्फेट है तो अवक्षेप नहीं घुलेगा।
पोटाश खाद
पहचान विधि :- सफेद कणाकार, पिसे नमक तथा लाल मिर्च जैसा मिश्रण।
- ये कण नम करने पर आपस में चिपकते नहीं।
- पानी में घोलने पर खाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरता है।
खाद डालने की मुख्य विधियाँ
- (१) तौलिए या थाला में डालना : तौलिए में छोटे पौधों में आधा व बड़े पौधों में एक फुट की तने से दूरी रखते हुये खादें डाल दी जाती है। खादें पौधों की टहनियों के फैलाव के नीचे बिखेर कर डालने के बाद मिट्टी में मिला दी जातीहै। मिट्टी में खादें मिलाना अति आवश्यक होता है। जब बहुत ज्यादा नमी हो या बहुत ज्यादा सूखा पड़ रहा हो तो खादें न डालें।
- (२) पट्टी में खाद डालना : टहनियों के फैलाव के बाहरी घेरे में 20-25 सेंटीमीटर पट्टी में खादें डाल दी जाती है और ऊपर से ढक दिया जाता है। ऐसे विधि वहीं प्रयोग में लाई जाती है जहां ज्यादा बरसात होती है।
- (३) छिड़काव विधि : पत्तों के ऊपर छिड़काव किया जाता है। ज्यादात्तर यूरियाखाद को पानी में घोल कर उसे छिड़काव द्वारा पत्तों पर डाला जाता है।
- (४) बिखेर कर डालना : पौधों की दो पंक्तियों के बीच में पौधों से उचितदूरी बनाते हुये खेत में बिखेर कर खादें डाल दी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में इस विधि को कम ही प्रयोग किया जाता है और उन सेब के बागीचों में प्रयोग किया जाता है जहां तौलिए के बदले पूरा खेत ही साफ रखा हो।
औद्योगिक क्रांति
अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बडा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया।औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरजस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी।
अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं।
अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी।
इतिहास
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सन् १८६८ में जर्मनी कारखाने का मशीन-हाल |
इंग्लैंड में नए स्थानों पर जंगलों में खनिज क्षेत्रों के निकट नगर बसे; नहरों तथा अच्छी सड़कों का निर्माण हुआ और ग्रामीण जनसंख्या अपने नए स्वतंत्र विचारों को क्रियान्वित करने के अवसर का लाभ उठाने लगी। देश में व्यापारिक पूँजी, साहस तथा अनुभव को नयाक्षेत्र मिला। व्यापार विश्वव्यापी हो सका। देश की मिलों को चलाने के लिए कच्चे माल की आवश्यकता हुई, उसे अमरीका तथा एशिया के देशों से प्राप्त करने के उद्देश्य से उपनिवेशों की स्थापना की गई। कच्चा माल प्राप्त करने और तैयार माल बेचने के साधन भी वे ही उपनिवेश हुए। नई व्यापारिक संस्थाओं, बैकों और कमीशन एजेंटों का प्रादुर्भाव हुआ। एक विशेष व्यापक अर्थ में दुनिया के विभिन्न हिस्से एक दूसरे से संबद्ध होने लगे। 18वीं सदी के अंतिम 20 वर्षों में आरंभ होकर 19वीं के मध्य तक चलती रहनेवाली इंग्लैंड की इस क्रांति का अनुसरण यूरोप के अन्य देशों ने भी किया। हॉलैंड तथा फ्रांस में शीघ्र ही, तथा जर्मनी, इटली आदि राष्ट्रों में बाद में, यह प्रभाव पहुँचा। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में व्यापारियों ने अपने-अपने राज्यों में धन की वृद्धि की और बदले में सरकारों से सैन्य सुविधाएँ तथा विशषाधिकार माँगे। इस प्रकार आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्यापार तथा सेना का यह सहयोग उपनिवेशवाद की नींव को सुदृढ़ करने में सहायक हुआ। राज्यों के बीच, अपने देशों की व्यापारनीति को प्रोत्साहन देने के प्रयास में, उपनिवेशों के लिए युद्ध भी हुए। उपनिवेशों का आर्थिक जीवन "मूल राष्ट्र" की औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति करनेवाला बन गया। स्वतंत्र अस्तित्व के स्थान पर परावलंबन उनकी विशेषता बन गई। जिन देशों में औद्योगिक परिवर्तन हुए वहाँ मानव बंधनों से मुक्त हुआ, नए स्थानों पर नए व्यवसायों की खोज में वह जा सका, धन का वह अधिक उत्पादन कर सका। किंतु इस विकसित संपत्ति का श्रेय किसी हो और उसक प्रतिफल कौन प्राप्त करे, ये प्रश्न उठने लगे। 24 घंटे चलनेवाली मशीनों को सँभालनेवाले मजदूर भी कितना काम करें, कब और किस वेतन पर करें, इन प्रश्नों पर मानवता की दृष्टि से विचार किया जाने लगा। मालिक-मजदूर-संबंधों को सहानुभूतिपूर्ण बनाने की चेष्टाएँ होने लगीं। मानव मुक्त तो हुआ, पर वह मुक्त हुआ धनी या निर्धन होने के लिए, भरपेट भोजन पाने या भूखा रहने के लिए, वस्त्रों का उत्पादन कर स्वयं वस्त्रविहीन रहने के लिए। अतएव दूसरे पहलू पर ध्यान देने के लिए शासन की ओर से नए नियमों की आवश्यकता पड़ी, जिनकी दिशा सदा मजदूरों की कठिनाइयाँ कम करने, उनका वेतन तथा सुविधाएँ बढ़ाने तथा उन्हें उत्पादन में भागीदार बनाने की ओर रही।
इस प्रकार 18वीं शताब्दी के अंतिम 20 वर्षों में फ्रांस की राज्यक्रांति से प्रेरणा प्राप्त कर इंग्लैंड में 19वीं शताब्दी में विकसित मशीनों का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। उत्पादन की नई विधियों और पैमानों का जन्म हुआ। यातायात के नए साधनों द्वारा विश्वव्यापी बाजार का जन्म हुआ। इन्ही सबसे संबंधित आर्थिक एवं सामाजिक परिणामों का 50 वर्षों तक व्याप्त रहना क्रांति की संज्ञा इसलिए पा सका कि परिवर्तनों की वह मिश्रित श्रृंखला आर्थिक-सामाजिक-व्यवस्था में आधारभूत परिवर्तन की जन्मदायिनी थी।
संसार के दूसरे देशों तथा उपनिवेशों के स्वतंत्र होकर आगे बढने से इस क्रांति के प्रभाव धीरे-धीरे दृष्टिगत होने लगे। उनके समक्ष 20वीं शताब्दी में कृषि के स्थान पर उद्योगों को विकसित करने का प्रश्न है; किंतु उनके पास न तो गत दो शताब्दियों के व्यापार की एमत्रित पूँजी तथा अनुभव है और न उनमें यातायात तथा मूल उद्योगों का विकास ही हुआ है। ये राष्ट्र स्वाधीन होने के पश्चात् अन्य संपन्न राष्ट्रों से सीमित रूप में पूँजी तथा यांत्रिक सहायता प्राप्त करने की चेष्टाओं में लगे हैं, किंतु इस प्रकार की सहायता के बदले में वे किसी राजनीतिक बंधन में नहीं पड़ना चाहते। इन राष्ट्रों का मूलभूत उद्देश्य अपने यहाँ उसी प्रकार के परिवर्तन करना है जैसे परिवर्तन औद्योगिक क्रांति के साथ यूरोप में हुए। पर यह स्पष्ट है कि मूलत: इन नए राष्ट्रों को अपने लिए कच्चा माल प्राप्त करने तथा पक्के माल का विक्रय करने के साधन अपनी सीमाओं के अनुसार ही विकसित करना है। इसके लिए चार्लिन चेल्प्लिन की फिल्म "मोदेर्ण टाइम" एक अच्छा उदाहरण है जो सन 1936 में पहली बार दिखाई गयी वैसे तो ये गूंगी फिल्म है लेकिन इसमें औद्योगिक क्रांति, मशीन और इंसान का सम्बन्ध बताया गया है
Saturday, 26 September 2015
आइज़क न्यूटन
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आइज़क न्यूटन के चित्र (आयु 46) |
इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया।
यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यवहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रृंखला के अध्ययन में योगदान दिया।
वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में 2005 में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया। न्यूटन अत्यधिक धार्मिक भी थे, हालाँकि वे एक अपरंपरागत ईसाई थे, उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान, जिसके लिए उन्हें आज याद किया जाता है, की तुलना में बाइबिल हेर्मेनेयुटिक्स पर अधिक लिखा
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1702 में न्यूटन का एक चित्र |
प्रारंभिक वर्ष
आइजैक न्यूटन का जन्म 4 जनवरी 1643 को पुरानी शैली और नई शैली की तिथियां |OS]]:</nowiki> 25 दिसम्बर 1642]लिनकोलनशायर के काउंटी में एक हेमलेट, वूल्स्थोर्पे-बाय-कोल्स्तेर्वोर्थ में वूलस्थ्रोप मेनर में हुआ। न्यूटन के जन्म के समय, इंग्लैंड ने ग्रिगोरियन केलेंडर को नहीं अपनाया था और इसलिए उनके जन्म की तिथि को क्रिसमस दिवस 25 दिसंबर1642 के रूप में दर्ज किया गया।न्यूटन का जन्म उनके पिता की मृत्यु के तीन माह बाद हुआ, वे एक समृद्ध किसान थे उनका नाम भी आइजैक न्यूटन था। पूर्व परिपक्व अवस्था में पैदा होने वाला वह एक छोटा बालक था; उनकी माता हन्ना ऐस्क्फ़ का कहना था कि वह एक चौथाई गेलन जैसे छोटे से मग में समा सकता था।
जब न्यूटन तीन वर्ष के थे, उनकी मां ने दुबारा शादी कर ली और अपने नए पति रेवरंड बर्नाबुस स्मिथ के साथ रहने चली गई और अपने पुत्र को उसकी नानी मर्गेरी ऐस्क्फ़ की देखभाल में छोड दिया.छोटा आइजैक अपने सौतेले पिता को पसंद नहीं करता था और उसके साथ शादी करने के कारण अपनी मां के साथ दुश्मनी का भाव रखता था। जैसा कि 19 वर्ष तक की आयु में उनके द्वारा किये गए अपराधों की सूची में प्रदर्शित होता है: "मैंने माता और पिता स्मिथ के घर को जलाने की धमकी दी."
बारह वर्ष से सत्रह वर्ष की आयु तक उन्होंने दी किंग्स स्कूल, ग्रान्थम में शिक्षा प्राप्त की (जहां पुस्तकालय की एक खिड़की पर उनके हस्ताक्षर आज भी देखे जा सकते हैं) उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और अक्टूबर 1659 वे वूल्स्थोर्पे-बाय-कोल्स्तेर्वोर्थ आ गए, जहाँ उनकी माँ, जो दूसरी बार विधवा हो चुकी थी, ने उन्हें किसान बनाने पर जोर दिया। वह खेती से नफरत करते थे।किंग्स स्कूल के मास्टर हेनरी स्टोक्स ने उनकी मां से कहा कि वे उन्हें फिर से स्कूल भेज दें ताकि वे अपनी शिक्षा को पूरा कर सकें। स्कूल के एक लड़के के खिलाफ बदला लेने की इच्छा से प्रेरित होने की वजह से वे एक शीर्ष क्रम के छात्र बन गए। जून 1661 में, उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक सिजर-एक प्रकार की कार्य-अध्ययन भूमिका, के रूप में भर्ती किया गया।उस समय कॉलेज की शिक्षाएं अरस्तु पर आधारित थीं। लेकिन न्यूटन अधिक आधुनिक दार्शनिकों जैसे डेसकार्टेस और खगोलविदों जैसे कोपरनिकस, गैलीलियो और केपलर के विचारों को पढना चाहता था।
1665 में उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय की खोज की और एक गणितीय सिद्धांत विकसित करना शुरू किया जो बाद में अत्यल्प कलन के नाम से जाना गया। अगस्त 1665 में जैसे ही न्यूटन ने अपनी डिग्री प्राप्त की, उसके ठीक बाद प्लेग की भीषण महामारी से बचने के लिए एहतियात के रूप में विश्वविद्यालय को बंद कर दिया.यद्यपि वे एक कैम्ब्रिज विद्यार्थी के रूप में प्रतिष्ठित नहीं थे, इसके बाद के दो वर्षों तक उन्होंने वूल्स्थोर्पे में अपने घर पर निजी अध्ययन किया और कलन, प्रकाशिकी और गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर अपने सिद्धांतों का विकास किया।
1667 में वह ट्रिनिटी के एक फेलो के रूप में कैम्ब्रिज लौट आए।
बीच के वर्ष
अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि न्यूटन और लीबनीज ने अत्यल्प कलन का विकास अपने अपने अद्वितीय संकेतनों का उपयोग करते हुए स्वतंत्र रूप से किया।न्यूटन के आंतरिक चक्र के अनुसार, न्यूटन ने अपनी इस विधि को लीबनीज से कई साल पहले ही विकसित कर दिया था, लेकिन उन्होंने लगभग 1693 तक अपने किसी भी कार्य को प्रकाशित नहीं किया और 1704 तक अपने कार्य का पूरा लेखा जोखा नहीं दिया. इस बीच, लीबनीज ने 1684 में अपनी विधियों का पूरा लेखा जोखा प्रकाशित करना शुरू कर दिया. इसके अलावा, लीबनीज के संकेतनों तथा "अवकलन की विधियों" को महाद्वीप पर सार्वत्रिक रूप से अपनाया गया और १८२० के बाद, ब्रिटिश साम्राज्य में भी इसे अपनाया गया। जबकि लीबनीज की पुस्तिकाएं प्रारंभिक अवस्थाओं से परिपक्वता तक विचारों के आधुनिकीकरण को दर्शाती हैं, न्यूटन के ज्ञात नोट्स में केवल अंतिम परिणाम ही है।
न्यूटन ने कहा कि वे अपने कलन को प्रकाशित नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें डर था वे उपहास का पात्र बन जायेंगे.
न्यूटन का स्विस गणितज्ञ निकोलस फतियो डे दुइलिअर के साथ बहुत करीबी रिश्ता था, जो प्रारम्भ से ही न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे। 1691 में दुइलिअर ने न्यूटन के फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका के एक नए संस्करण को तैयार करने की योजना बनायी, लेकिन इसे कभी पूरा नहीं कर पाए.बहरहाल, इन दोनों पुरुषों के बीच सम्बन्ध 1693 में बदल गया। इस समय, दुइलिअर ने भी लीबनीज के साथ कई पत्रों का आदान प्रदान किया था।
1699 की शुरुआत में, रोयल सोसाइटी (जिसके न्यूटन भी एक सदस्य थे) के अन्य सदस्यों ने लीबनीज पर साहित्यिक चोरी के आरोप लगाये और यह विवाद 1711 में पूर्ण रूप से सामने आया।
न्यूटन की रॉयल सोसाइटी ने एक अध्ययन द्वारा घोषणा की कि न्यूटन ही सच्चे आविष्कारक थे और लीबनीज ने धोखाधड़ी की थी। यह अध्ययन संदेह के घेरे में आ गया, जब बाद पाया गया कि न्यूटन ने खुद लीबनीज पर अध्ययन के निष्कर्ष की टिप्पणी लिखी।
इस प्रकार कड़वा न्यूटन बनाम लीबनीज विवाद शुरू हो गया, जो बाद में न्यूटन और लीबनीज दोनों के जीवन में 1716 में लीबनीज की मृत्यु तक जारी रहा।
न्यूटन को आम तौर पर सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का श्रेय दिया जाता है, जो किसी भी घात के लिए मान्य है। उन्होंने न्यूटन की सर्वसमिकाओं, न्यूटन की विधि, वर्गीकृत घन समतल वक्र (दो चरों में तीन के बहुआयामी पद) की खोज की, परिमित अंतरों के सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भिन्नात्मक सूचकांक का प्रयोग किया और डायोफेनताइन समीकरणों के हल को व्युत्पन्न करने के लिए निर्देशांक ज्यामिति का उपयोग किया।
उन्होंने लघुगणक के द्वारा हरात्मक श्रेढि के आंशिक योग का सन्निकटन किया, (यूलर के समेशन सूत्र का एक पूर्वगामी) और वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आत्मविश्वास के साथ घात श्रृंखला का प्रयोग किया और घात श्रृंखला का विलोम किया।
उन्हें 1669 में गणित का ल्युकेसियन प्रोफेसर चुना गया। उन दिनों, कैंब्रिज या ऑक्सफ़ोर्ड के किसी भी सदस्य को एक निर्दिष्ट अंग्रेजी पुजारी होना आवश्यक था। हालाँकि, ल्युकेसियन प्रोफेसर के लिए जरुरी था कि वह चर्च में सक्रिय न हो।(ताकि वह विज्ञान के लिए और अधिक समय दे सके)
न्यूटन ने तर्क दिया कि समन्वय की आवश्यकता से उन्हें मुक्त रखना चाहिए और चार्ल्स द्वितीय, जिसकी अनुमति अनिवार्य थी, ने इस तर्क को स्वीकार किया। इस प्रकार से न्यूटन के धार्मिक विचारों और अंग्रेजी रूढ़ीवादियों के बीच संघर्ष टल गया।
प्रकाशिकी
न्यूटन के दूसरे परावर्ती दूरदर्शी की एक प्रतिकृति जो उन्होंने 1672 में रॉयल सोसाइटी को भेंट किया।
उन्होंने यह भी दिखाया कि रंगीन प्रकाश को अलग करने और भिन्न वस्तुओं पर चमकाने से रगीन प्रकाश के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं आता है। न्यूटन ने वर्णित किया कि चाहे यह परावर्तित हो, या विकिरित हो या संचरित हो, यह समान रंग का बना रहता है।
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1672 में रॉयल सोसाइटी को भेंट किया।n |
यह न्यूटन के रंग सिद्धांत के रूप में जाना जाता है
इस कार्य से उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि, किसी भी अपवर्ती दूरदर्शी का लेंस प्रकाश के रंगों में विसरण (रंगीन विपथन) का अनुभव करेगा और इस अवधारणा को सिद्ध करने के लिए उन्होंने अभिदृश्यक के रूप में एक दर्पण का उपयोग करते हुए, एक दूरदर्शी का निर्माण किया, ताकि इस समस्या को हल किया जा सके. दरअसल डिजाइन के निर्माण के अनुसार, पहला ज्ञात क्रियात्मक परावर्ती दूरदर्शी, आज एक न्यूटोनियन दूरबीन के रूप में जाना जाता है, इसमें तकनीक को आकार देना तथा एक उपयुक्त दर्पण पदार्थ की समस्या को हल करना शामिल है। न्यूटन ने अत्यधिक परावर्तक वीक्षक धातु के एक कस्टम संगठन से, अपने दर्पण को आधार दिया, इसके लिए उनके दूरदर्शी हेतु प्रकाशिकी कि गुणवत्ता की जाँच के लिए न्यूटन के छल्लों का प्रयोग किया गया।
फरवरी 1669 तक वे रंगीन विपथन के बिना एक उपकरण का उत्पादन करने में सक्षम हो गए। 1671 में रॉयल सोसाइटी ने उन्हें उनके परावर्ती दूरदर्शी को प्रर्दशित करने के लिए कहा। उन लोगों की रूचि ने उन्हें अपनी टिप्पणियों ओन कलर के प्रकाशन हेतु प्रोत्साहित किया, जिसे बाद में उन्होंने अपनी ऑप्टिक्स के रूप में विस्तृत कर दिया।
जब रॉबर्ट हुक ने न्युटन के कुछ विचारों की आलोचना की, न्यूटन इतना नाराज हुए कि वे सार्वजनिक बहस से बाहर हो गए। हुक की मृत्यु तक दोनों दुश्मन बने रहे।
न्यूटन ने तर्क दिया कि प्रकाश कणों या अतिसूक्षम कणों से बना है, जो सघन माध्यम की और जाते समय अपवर्तित हो जाते हैं, लेकिन प्रकाश के विवर्तन को स्पष्ट करने के लिए इसे तरंगों के साथ सम्बंधित करना जरुरी था। (ऑप्टिक्स बीके।
II, प्रोप्स. XII-L). बाद में भौतिकविदों ने प्रकाश के विवर्तन के लिए शुद्ध तरंग जैसे स्पष्टीकरण का समर्थन किया। आज की क्वाण्टम यांत्रिकी, फोटोन और तरंग-कण युग्मता के विचार, न्यूटन की प्रकाश के बारे में समझ के साथ बहुत कम समानता रखते हैं।
1675 की उनकी प्रकाश की परिकल्पना में न्यूटन ने कणों के बीच बल के स्थानान्तरण हेतु, ईथर की उपस्थिति को मंजूर किया।
ब्रह्म विद्यावादी हेनरी मोर के संपर्क में आने से रसायन विद्या में उनकी रुचि पुनर्जीवित हो गयी। उन्होंने ईथर को कणों के बीच आकर्षण और प्रतिकर्षण के वायुरुद्ध विचारों पर आधारित गुप्त बलों से प्रतिस्थापित कर दिया. जॉन मेनार्ड केनेज, जिन्होंने रसायन विद्या पर न्यूटन के कई लेखों को स्वीकार किया, कहते हैं कि "न्युटन कारण के युग के पहले व्यक्ति नहीं थे: वे जादूगरों में आखिरी नंबर पर थे।"रसायन विद्या में न्यूटन की रूचि उनके विज्ञान में योगदान से अलग नहीं की जा सकती है। (यह उस समय हुआ जब रसायन विद्या और विज्ञान के बीच कोई स्पष्ट भेद नहीं था।)
यदि उन्होंने एक निर्वात में से होकर एक दूरी पर क्रिया के गुप्त विचार पर भरोसा नहीं किया होता तो वे गुरुत्व का अपना सिद्धांत विकसित नहीं कर पाते।
(आइजैक न्यूटन के गुप्त अध्ययन भी देखें)
1704 में न्यूटन ने आप्टिक्स को प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने अपने प्रकाश के अतिसूक्ष्म कणों के सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या की.उन्होंने प्रकाश को बहुत ही सूक्ष्म कणों से बना हुआ माना, जबकि साधारण द्रव्य बड़े कणों से बना होता है और उन्होंने कहा कि एक प्रकार के रासायनिक रूपांतरण के माध्यम से "सकल निकाय और प्रकाश एक दूसरे में रूपांतरित नहीं हो सकते हैं,....... और निकाय, प्रकाश के कणों से अपनी गतिविधि के अधिकांश भाग को प्राप्त नहीं कर सकते, जो उनके संगठन में प्रवेश करती है?" न्यूटन ने एक कांच के ग्लोब का प्रयोग करते हुए, (ऑप्टिक्स, 8 वां प्रश्न) एक घर्षण विद्युत स्थैतिक जनरेटर के एक आद्य रूप का निर्माण किया।
यांत्रिकी और गुरुत्वाकर्षण
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न्यूटन की अपनी प्रिन्सिपिया की प्रतिलिपि |
फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका (जिसे अब प्रिन्सिपिया के रूप में जाना जाता है) का प्रकाशन एडमंड हेली की वित्तीय मदद और प्रोत्साहन से 5 जुलाई 1687 को हुआ। इस कार्य में न्यूटन ने गति के तीन सार्वभौमिक नियम दिए जिनमें 200 से भी अधिक वर्षों तक कोई सुधार नहीं किया गया है। उन्होंने उस प्रभाव के लिए लैटिन शब्द ग्रेविटास (भार) का इस्तेमाल किया जिसे गुरुत्व के नाम से जाना जाता है और सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम को परिभाषित किया। इसी कार्य में उन्होंने वायु में ध्वनि की गति के, बॉयल के नियम पर आधारित पहले विश्लेषात्मक प्रमाण को प्रस्तुत किया। बहुत अधिक दूरी पर क्रिया कर सकने वाले एक अदृश्य बल की न्यूटन की अवधारणा की वजह से उनकी आलोचना हुई, क्योंकि उन्होंने विज्ञान में "गुप्त एजेंसियों" को मिला दिया था।
प्रिन्सिपिया के साथ, न्यूटन को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली.उन्हें काफी प्रशंसाएं मिलीं, उनके एक प्रशंसक थे, स्विटजरलैण्ड में जन्मे निकोलस फतियो दे दयुलीयर, जिनके साथ उनका एक गहरा रिश्ता बन गया, जो 1693 में तब समाप्त हुआ जब न्यूटन तंत्रिका अवरोध से पीड़ित हो गए।
बाद का जीवन
1690 के दशक में, न्यूटन ने कई धार्मिक शोध लिखे जो बाइबल की साहित्यिक व्याख्या से सम्बंधित थे। हेनरी मोर के ब्रह्मांड में विश्वास और कार्तीय द्वैतवाद के लिए अस्वीकृति ने शायद न्यूटन के धार्मिक विचारों को प्रभावित किया। उन्होंने एक पांडुलिपि जॉन लोके को भेजी जिसमें उन्होंने ट्रिनिटी के अस्तित्व को विवादित माना था, जिसे कभी प्रकाशित नहीं किया गया। बाद के कार्य – [39]दी क्रोनोलोजी ऑफ़ एनशियेंट किंगडेम्स अमेनडेड (1728) और ओब्सरवेशन्स अपोन दी प्रोफिसिज ऑफ़ डेनियल एंड दी एपोकेलिप्स ऑफ़ सेंट जॉन (1733) – [40] का प्रकाशन उनकी मृत्यु के बाद हुआ। उन्होंने रसायन विद्या के लिए भी अपना बहुत अधिक समय दिया (ऊपर देखें)।न्यूटन 1689 से 1690 तक और 1701 में इंग्लैंड की संसद के सदस्य भी रहे. लेकिन कुछ विवरणों के अनुसार उनकी टिप्पणियाँ हमेशा कोष्ठ में एक ठंडे सूखे को लेकर ही होती थीं और वे खिड़की को बंद करने का अनुरोध करते थे।
1696 में न्यूटन शाही टकसाल के वार्डन का पद संभालने के लिए लन्दन चले गए, यह पद उन्हें राजकोष के तत्कालीन कुलाधिपति, हैलिफ़ैक्स के पहले अर्ल, चार्ल्स मोंतागु के संरक्षण के माध्यम से प्राप्त हुआ। उन्होंने इंग्लैंड का प्रमुख मुद्रा ढल्लाई का कार्य संभाल लिया, किसी तरह मास्टर लुकास के इशारों पर नाचने लगे (और एडमंड हेली के लिए अस्थाई टकसाल शाखा के उप नियंता का पद हासिल किया)
1699 में लुकास की मृत्यु न्यूटन शायद टकसाल के सबसे प्रसिद्ध मास्टर बने, इस पद पर न्यूटन अपनी मृत्यु तक बने रहे.ये नियुक्तियां दायित्वहीन पद के रूप में ली गयीं थीं, लेकिन न्यूटन ने उन्हें गंभीरता से लिया, 1701 में अपने कैम्ब्रिज के कर्तव्यों से सेवानिवृत हो गए और मुद्रा में सुधार लाने का प्रयास किया तथा कतरनों तथा नकली मुद्रा बनाने वालों को अपनी शक्ति का प्रयोग करके सजा दी.
1717 में टकसाल के मास्टर के रूप में "ला ऑफ़ क्वीन एने" में न्यूटन ने अनजाने में सोने के पक्ष में चांदी के पैसे और सोने के सिक्के के बीच द्वि धात्विक सम्बन्ध स्थापित करते हुए, पौंड स्टर्लिंग को चांदी के मानक से सोने के मानक में बदल दिया।
इस कारण से चांदी स्टर्लिंग सिक्के को पिघला कर ब्रिटेन से बाहर भेज दिया गया। न्यूटन को 1703 में रोयल सोसाइटी का अध्यक्ष और फ्रेंच एकेडमिक डेस साइंसेज का एक सहयोगी बना दिया गया। रॉयल सोसायटी में अपने पद पर रहते हुए, न्यूटन ने रोयल खगोलविद जॉन फ्लेमस्टीड को शत्रु बना लिया, उन्होंने फ्लेमस्टीड की हिस्टोरिका कोलेस्तिस ब्रिटेनिका को समय से पहले ही प्रकाशित करवा दिया, जिसे न्यूटन ने अपने अध्ययन में काम में लिया था।
अप्रैल 1705 में क्वीन ऐनी ने न्यूटन को ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक शाही यात्रा के दौरान नाइट की उपाधि दी। यह नाइट की पदवी न्यूटन को टकसाल के मास्टर के रूप में अपनी सेवाओ के लिए नहीं दी गयी थी और न ही उनके वैज्ञानिक कार्य के लिए दी गयी थी बल्कि उन्हें यह उपाधि मई 1705 में संसदीय चुनाव के दौरान उनके राजनितिक योगदान के लिए दी गयी थी।
न्यूटन की मृत्यु लंदन में 31 मार्च 1727 को हुई, [पुरानी शैली 20 मार्च 1726] और उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया था। उनकी आधी-भतीजी, कैथरीन बार्टन कोनदुइत, ने लन्दन में जर्मीन स्ट्रीट में उनके घर पर सामाजिक मामलों में उनकी परिचारिका का काम किया; वे उसके "बहुत प्यारे अंकल" थेऐसा जिक्र उनके उस पत्र में किया गया है जो न्यूटन के द्वारा उसे तब लिखा गया जब वह चेचक की बीमारी से उबर रही थी।
न्यूटन, जिनके कोई बच्चे नहीं थे, उनके अंतिम वर्षों में उनके रिश्तदारों ने उनकी अधिकांश संपत्ति पर अधिकार कर लिया और निर्वसीयत ही उनकी मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु के बाद, न्यूटन के शरीर में भारी मात्रा में पारा पाया गया, जो शायद उनके रासायनिक व्यवसाय का परिणाम था। पारे की विषाक्तता न्यूटन के अंतिम जीवन में सनकीपन को स्पष्ट कर सकती है।
मृत्यु के बाद
प्रसिद्धि
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न्यूटन की मूर्ति का प्रदर्शन |
न्यूटन अपनी उपलब्धियों का बताने में खुद संकोच करते थे, फरवरी 1676 में उन्होंने रॉबर्ट हुक को एक पत्र में लिखा:
हालांकि आमतौर पर इतिहासकारों का मानना है कि उपरोक्त पंक्तियां, नम्रता के साथ कहे गए एक कथन के अलावा या बजाय हुक पर एक हमला थीं (जो कम ऊंचाई का और कुबडा था) उस समय प्रकाशिकीय खोजों को लेकर दोनों के बीच एक विवाद चल रहा था।
बाद की व्याख्या उसकी खोजों पर कई अन्य विवादों के साथ भी उपयुक्त है, जैसा कि यह प्रश्न कि कलन की खोज किसने की, जैसा कि ऊपर बताया गया है।
बाद में एक इतिहास में, न्यूटन ने लिखा:
मैं नहीं जानता कि में दुनिया को किस रूप में दिखाई दूंगा लेकिन अपने आप के लिए में एक ऐसा लड़का हूँ जो समुद्र के किनारे पर खेल रहा है और अपने ध्यान को अब और तब में लगा रहा है, एक अधिक चिकना पत्थर या एक अधिक सुन्दर खोल ढूँढने की कोशिश कर रहा है, सच्चाई का यह इतना बड़ा समुद्र मेरे सामने अब तक खोजा नहीं गया है।
स्मारक
इसे मूर्तिकार माइकल रिज्ब्रेक ने (1694-1770) सफ़ेद और धूसर संगमरमर में बनाया है, जिसका डिजाइन वास्तुकार विलियम कैंट (1685-1748) द्वारा बनाया गया है। इस स्मारक में न्यूटन की आकृति पत्थर की बनी हुई कब्र के ऊपर टिकी हुई है, उनकी दाहिनी कोहनी उनकी कई महान पुस्तकों पर रखी है और उनका बायां हाथ एक गणीतिय डिजाइन से युक्त एक सूची की और इशारा कर रहा है।
उनके ऊपर एक पिरामिड है और एक खगोलीय ग्लोब राशि चक्र के संकेतों तथा 1680 के धूमकेतु का रास्ता दिखा रहा है।
एक राहत पैनल दूरदर्शी और प्रिज्म जैसे उपकरणों का प्रयोग करते हुए, पुट्टी का वर्णन कर रहा है। आधार पर दिए गए लेटिन शिलालेख का अनुवाद है:
यहाँ नाइट, आइजैक न्यूटन, को दफनाया गया, जो दिमागी ताकत से लगभग दिव्य थे, उनके अपने विचित्र गणितीय सिद्धांत हैं, उन्होंने ग्रहों की आकृतियों और पथ का वर्णन किया, धूमकेतु के मार्ग बताये, समुद्र में आने वाले ज्वार का वर्णन किया, प्रकाश की किरणों में असमानताओं को बताया और वो सब कुछ बताया जो किसी अन्य विद्वान ने पहले कल्पना भी नहीं की थी, रंगों के गुणों का वर्णन किया।1978 से 1988 तक, हेरी एकलेस्तन के द्वारा डिजाइन की गयी न्यूटन की एक छवि इंग्लेंड के बैंक के द्वारा जारी किये गए D £1 श्रृंखला के बैंक नोटों पर प्रदर्शित की गयी, (अंतिम £1 नोट जो इंग्लेंड के बैंक के द्वारा जारी किये गए).
वे मेहनती, मेधावी और विश्वासयोग्य थे, पुरातनता, पवित्र ग्रंथों और प्रकृति में विश्वास रखते थे, वे अपने दर्शन में अच्छाई और भगवान के पराक्रम की पुष्टि करते हैं और अपने व्यवहार में सुसमाचार की सादगी व्यक्त करते हैं।
मानव जाति में ऐसे महान आभूषण उपस्थित रह चुके हैं!
वह 25 दिसम्बर 1642 को जन्मे और 20 मार्च 1726/ 7 को उनकी मृत्यु हो गई।--जी एल स्मिथ के द्वारा अनुवाद, दी मोंयुमेंट्स एंड जेनिल ऑफ़ सेंट पॉल्स केथेड्रल, एंड ऑफ़ वेस्टमिंस्टर एब्बे (1826), ii, 703–4.
न्यूटन को नोट के पिछली ओर हाथ में एक पुस्तक पकडे हुए दर्शाया गया है, साथ ही एक दूरदर्शी, एक प्रिज्म और सौर तंत्र का एक मानचित्र भी है।
एक सेब पर खड़ी हुई आइजैक न्यूटन की एक मूर्ति, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में देखी जा सकती है।
धार्मिक विचार
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मुख्य लेख : Isaac Newton's religious views
वेस्टमिंस्टर एब्बे में न्यूटन की कब्र
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उनकी धार्मिक असहिष्णुता के लिए विख्यात एक युग में, न्यूटन के कट्टरपंथी विचारों के बारे में कुछ सार्वजनिक अभिव्यक्तियां हैं, सबसे खास है, पवित्र आदेशों का पालन करने के लिए उनके द्वारा इनकार किया जाना, ओर जब वे मरने वाले थे तब उन्हें पवित्र संस्कार लेने के लिए कहा गया ओर उन्होंने इनकार कर दिया।
स्नोबेलेन के द्वारा विवादित एक दृष्टिकोण में टीसी फ़ाइजनमेयर ने तर्क दिया कि न्यूटन ट्रिनिटी के पूर्वी रुढिवादी दृष्टिकोण को रखते थे, रोमन कैथोलिक, अंग्रेजवाद और अधिकांश प्रोटेसटेंटों का पश्चिमी दृष्टिकोण नहीं रखते थे।उनके अपने दिन में उन पर एक रोसीक्रुसियन होने का आरोप लगाया गया। (जैसा कि रॉयल सोसाइटी और चार्ल्स द्वितीय की अदालत में बहुत से लोगों पर लगाया गया था।)
यद्यपि गति और गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम न्यूटन के सबसे प्रसिद्ध अविष्कार बन गए, उन्हें ब्रह्माण्ड को देखने के लिए एक मशीन के तौर पर इनका उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी गयी, जैसे महान घडी के समान।
उन्होंने कहा, "गुरुत्व ग्रहों की गति का वर्णन करता है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि किसने ग्रहों को इस गति में स्थापित किया।
भगवान सब चीजों का नियंत्रण करते हैं और जानते हैं कि क्या है और क्या किया जा सकता है।"
उनकी वैज्ञानिक प्रसिद्धि उल्लेखनीय है, साथ ही उनका प्रारंभिक चर्च पादरियों व बाइबल का अध्ययन भी उल्लेखनीय है।
न्यूटन ने शाब्दिक आलोचना पर लिखा, सबसे विशेष है। एन हिस्टोरिकल अकाउंट ऑफ़ टू नोटेबल करप्शन ऑफ़ स्क्रिप्चर
उन्होंने 3 अप्रैल ई. 33 को यीशु मसीह का क्रूसारोपण भी किया, जो एक पारंपरिक रूप से स्वीकृत तारीख़ के साथ सहमत है।उन्होंने बाइबल के अन्दर छुपे हुए संदेशों को खोजने का असफल प्रयास किया।
उनके अपने जीवनकाल में, न्यूटन ने प्राकृतिक विज्ञान से अधिक धर्म के बारे में लिखा.वह तर्कयुक्त विश्वव्यापी दुनिया में विश्वास करते थे, लेकिन उन्होंने लीबनीज और बरुच स्पिनोजा में निहित हाइलोजोइज्म को अस्वीकार कर दिया.इस प्रकार, आदेशित और गतिशील रूप से सूचित ब्रह्माण्ड को समझा जा सकता था और इसे एक सक्रिय कारण के द्वारा समझा जाना चाहिए.उनके पत्राचार में, न्यूटन ने दावा किया कि प्रिन्सिपिया में लिखते समय "मैंने एक नजर ऐसे सिद्धांतों पर रखी, ताकि देवता में विश्वास रखते हुए मनुष्य पर विचार किया जा सके." उन्होंने दुनिया की प्रणाली में डिजाइन का प्रमाण देखा: ग्रहीय प्रणाली में ऐसी अद्भुत एकरूपता को पसंद के प्रभाव की अनुमति दी जानी चाहिए।"
लेकिन न्यूटन ने जोर दिया कि अस्थायित्व की धीमी वृद्धि के कारण दैवी हस्तक्षेप अंत में प्रणाली के सुधार के लिए आवश्यक होगा इसके लिए लीबनीज
ने उन पर निंदा लेख किया: "सर्वशक्तिमान ईश्वर समय समय पर अपनी घड़ी को समाप्त करना चाहता है: अन्यथा यह स्थानांतरित करने के लिए बंद कर दिया जायेगा. ऐसा लगता है कि उसके पास इसे एक सतत गति बनाने के लिए पर्याप्त दूरदर्शिता नहीं थी।"
न्यूटन की स्थिति को उनके अनुयायी शमूएल क्लार्क द्वारा एक प्रसिद्ध पत्राचार के द्वारा सख्ती से बचाने का प्रयास किया गया।
धार्मिक विचार पर प्रभाव
न्यूटन और रॉबर्ट बोयल के यांत्रिक दर्शन को बुद्धिजीवी क़लमघसीट द्वारा रूढ़ीवादियों और उत्साहियों के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पदोन्नत किया गया और इसे रूढ़िवादी प्रचारकों तथा असंतुष्ट प्रचारकों जैसे लेटीट्युडीनेरियन के द्वारा हिचकिचाकर स्वीकार किया गया। इस प्रकार, विज्ञान की स्पष्टता और सरलता को नास्तिकता के खतरे तथा अंधविश्वासी उत्साह दोनों की भावनात्मक और आध्यात्मिक अतिशयोक्ति का मुकाबला करने के लिए एक रास्ते के रूप में देखा गया,और उसी समय पर, अंग्रेजी देवत्व की एक दूसरी लहर ने न्यूटन की खोजों का उपयोग एक "प्राकृतिक धर्म" की संभावना को प्रर्दशित करने के लिए किया।पूर्व-आत्मज्ञान के खिलाफ किये गए हमले "जादुई सोच," और ईसाईयत के रहस्यमयी तत्व, को ब्रह्माण्ड के बारे में बोयल की यांत्रिक अवधारणा से नींव मिली. न्यूटन ने गणितीय प्रमाणों के माध्यम से बोयल के विचारों को पूर्ण बनाया और शायद अधिक महत्वपूर्ण रूप से वे उन्हें लोकप्रिय बनाने में बहुत अधिक सफल हुए. न्यूटन ने एक हस्तक्षेप भगवान द्वारा नियंत्रित दुनिया को एक ऐसी दुनिया में बदल डाला जो तर्कसंगत और सार्वभौमिक सिद्धांतों के साथ भगवान के द्वारा कलात्मक रूप से बनायीं गयी है। ये सिद्धांत सभी लोगों के लिए खोजने हेतु उपलब्ध हैं, ये लोगों को इसी जीवन में अपने उद्देश्यों को फलदायी रूप से पूरा करने की अनुमति देते हैं, अगले जीवन का इन्तजार नहीं करते हैं और उन्हें उनकी अपनी तर्कसंगत शक्तियों से पूर्ण बनाते हैं।
न्यूटन ने भगवान को मुख्य निर्माता के रूप में देखा, जिसके अस्तित्व को सभी निर्माणों की भव्यता के चेहरे में नकारा नहीं जा सकता है। उनके प्रवक्ता, क्लार्क, ने लीबनीज के धर्म विज्ञान को अस्वीकृत कर दिया, जिसने भगवान को "l'origine du mal " के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया, इसके लिए भगवान को उसके निर्माण में योगदान से हटा दिया, चूँकि जैसा कि क्लार्क ने कहा था ऐसा देवता केवल नाम से ही राजा होगा, लेकिन नास्तिकता से एक कदम दूर होगा.लेकिन अगली सदी में न्यूटन की प्रणाली की सफलता का अनदेखा धर्म विज्ञानी परिणाम, लीबनीज के द्वारा बताई गयी आस्तिकता की स्थिति को मजबूत बनाएगा.
दुनिया के बारे में समझ अब साधारण मानव के कारण के स्तर तक आ गयी और मानव, जैसा कि ओडो मर्कवार्ड ने तर्क दिया, बुराई के सुधार और उन्मूलन के लिए उत्तरदायी बन गया।
दूसरी ओर, लेटीट्युडीनेरियन और न्यूटोनियन के विचारों के परिणाम बहुत दूरगामी थे, एक धार्मिक गुट यांत्रिक ब्रह्मांड की अवधारणा को समर्पित हो गया, लेकिन इसमें उतना ही उत्साह और रहस्य था कि प्रबुद्धता को नष्ट करने के लिए कठिन संघर्ष किया गया।
दुनिया के अंत के बारे में दृष्टिकोण
एक पांडुलिपि जो उन्होंने 1704 में लिखी, जिसमे उन्होंने बाइबल से वैज्ञानिक जानकारी निकालने के अपने प्रयास का वर्णन किया है, उनका अनुमान था कि दुनिया 2060 से पहले समाप्त नहीं होगी।इस भविष्यवाणी में उहोने कहा कि, "इसमें में यह नहीं कह रहा कि अंतिम समय कौन सा होगा, लेकिन मैं इससे उन काल्पनिक व्यक्तियों के अटकलों को बंद करना चाहता हूँ जो अक्सर अंत समय के बारे में भविष्यवाणी करते हैं और इस भविष्यवाणी के असफल हो जाने पर पवित्र भविष्यद्वाणी बदनाम होती है।"
आत्मज्ञानी दार्शनिक
आत्मज्ञानी दार्शनिकों ने पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों के एक छोटे इतिहास को चुना-गैलिलियो, बोयल और मुख्य रूप से न्यूटन- यह चुनाव दिन के प्रत्येक भौतिक और सामाजिक क्षेत्र के लिए प्राकृतिक नियम और प्रकृति की एकल अवधारणा के उनके अनुप्रयोग के मार्गदर्शन और जमानत के रूप मैं किया गया।इस संबंध में, इस पर निर्मित सामाजिक संरंचनाओं और इतिहास के अध्याय त्यागे जा सकते थे।
प्राकृतिक और आत्मज्ञानी रूप से समझने योग्य नियमों पर आधारित ब्रह्माण्ड के बारे में यह न्यूटन की ही संकल्पना थी जिसने आत्मज्ञान विचारधारा के लिए एक बीज का काम किया।लोके और वॉलटैर ने आंतरिक अधिकारों की वकालत करते हुए प्राकृतिक नियमों की अवधारणा को राजनितिक प्रणाली पर लागू किया; फिजियोक्रेट और एडम स्मिथ ने आत्म-रूचि और मनोविज्ञान की प्राकृतिक अवधारणा को आर्थिक प्रणाली पर लागू किया तथा समाजशास्त्रियों ने प्रगति के प्राकृतिक नमूनों में इतिहास को फिट करने की कोशिश के लिए तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था की आलोचना की.
मोनबोडो और सेमयूल क्लार्क ने न्यूटन के कार्य के तत्वों का विरोध किया, लेकिन अंततः प्रकृति के बारे में उनके प्रबल धार्मिक विचारों को सुनिश्चित करने के लिए इसे युक्तिसंगत बनाया।
न्यूटन और जालसाजी
शाही टकसाल के प्रबंधक के रूप में, न्यूटन ने अनुमान लगाया कि दुबारा ढलाई किये जाने वाले सिक्कों में 20% जाली थे। जालसाजी एक बहुत बड़ा राजद्रोह था, जिसके लिए फांसी की सजा थी। इस के बावजूद, सबसे ज्वलंत अपराधियों को पकड़ना बहुत मुश्किल था; यद्यपि, न्यूटन इस कार्य के लिए सही साबित हुए भेष बदल कर शराबखाने और जेल में जाकर उन्होंने खुद बहुत से सबूत इकट्ठे किये।सरकार की शाखाओं को अलग करने और अभियोजन पक्ष के लिए स्थापित सभी बाधाओं हेतू, अंग्रेजी कानून में अभी भी सत्ता के प्राचीन और दुर्जेय रिवाज थे।न्यूटन को शांति का न्यायाधीश बनाया गया और जून 1698 और क्रिसमस 1699 के बीच उन्होंने गवाह, मुखबिरों और संदिग्धों के 200 परिक्षण करवाए।
न्यूटन ने अपनी प्रतिबद्धता को जीता और फरवरी 1699 में उनके पास दस कैदी रिहाई का इन्तजार कर रहे थे।
राजा के वकील के रूप में न्यूटन का एक मामला विलियम चलोनेर के खिलाफ था। चलोनेर की योजना थी कैथोलिक के जाली षड्यंत्र को तय करना और फिर अभागे षड़यंत्रकारी में बदल देना जिसको वह बंधक बना लेता था। चलोनेर ने अपने आप को पर्याप्त समृद्ध सज्जन बना लिया। संसद में अर्जी देते हुए चलोनर ने टकसाल में नकली सिक्के बनाने के लिए उपकरण भी उपलब्ध कराये. (ऐसा आरोप दूसरो ने उस पर लगाया) उसने प्रस्ताव दिया कि उसे टकसाल की प्रक्रियाओं का निरीक्षण करने की अनुमति दी जाए ताकि वह इसमें सुधार के लिए कुछ कर सके।
उसने संसद में अर्जी दी कि सिक्कों की ढलाई के लिए उसकी योजना को स्वीकार कर लिया जाये ताकि जालसाजी न की जा सके, जबकि उसी समय जाली सिक्के सामने आये। न्यूटन ने चलोनर पर जालसाजी का परीक्षण किया और सितम्बर 1697 में उसे न्यू गेट जेल में भेज दिया। लेकिन चलोनर के उच्च स्थानों पर मित्र थे, जिन्होंने उसे उसकी रिहाई के लिए मदद की।न्यूटन ने दूसरी बार निर्णायक सबूत के साथ उस पर परिक्षण किया।
चलोनेर को उच्च राजद्रोह का दोषी पाया गया था और उसे 23 मार्च 1699 को तिबुर्न गेलोज में फांसी दे कर दफना दिया गया।
न्यूटन के गति के नियम
गति के प्रसिद्द तीन नियम
न्यूटन के पहला नियम (जिसे जड़त्व के नियम भी कहा जाता है) के अनुसार एक वस्तु जो स्थिरवस्था में है वह स्थिर ही बनी रहेगी और एक वस्तु जो समान गति की अवस्था में है वह समान गति के साथ उसी दिशा में गति करती रहेगी जब तक उस पर कोई बाहरी बल कार्य नहीं करता है।न्यूटन के दूसरे नियम के अनुसार एक वस्तु पर लगाया गया बल


गणितीय रूप में इसे निम्नानुसार व्यक्त किया जा सकता है
वे राज्य में व्यवस्था की गति का एक उद्देश्य है राज्य बदलने के लिए है कि एक ही शक्ति की जरूरत है। न्यूटन के सम्मान में बल की SI इकाई का नाम न्यूटन रखा गया है।
न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। इसका अर्थ यह है कि जब भी एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर एक बल लगाती है तब दूसरी वस्तु विपरीत दिशा में पहली वस्तु पर उतना ही बल लगती है।
इसका एक सामान्य उदहारण है दो आइस स्केट्स एक दूसरे के विपरीत खिसकते हैं तो विपरीत दिशाओं में खिसकने लगते हैं।
एक अन्य उदाहरण है बंदूक का पीछे की और धक्का महसूस करना, जिसमें बन्दूक के द्वारा गोली को दागने के लिए उस पर लगाया गया बल, एक बराबर और विपरीत बल बंदूक पर लगाता है जिसे गोली चलाने वाला महसूस करता है।
चूंकि प्रश्न में जो वस्तुएं हैं, ऐसा जरुरी नहीं कि उनका द्रव्यमान बराबर हो, इसलिए दोनों वस्तुओं का परिणामी त्वरण अलग हो सकता है (जैसे बन्दूक से गोली दागने के मामले में)।
अरस्तू के विपरीत, न्यूटन की भौतिकी सार्वत्रिक हो गयी है। उदाहरण के लिए, दूसरा नियम ग्रहों तथा एक गिरते हुए पत्थर पर भी लागू होता है। दूसरे नियम की सदिश प्रकृति बल की दिशा और वस्तु के संवेग में परिवर्तन के प्रकार के बीच एक ज्यामितीय सम्बन्ध स्थापित करती है। न्यूटन से पहले, आम तौर पर यह माना जाता था कि सूर्य के चारों और घूर्णन कर रहे एक ग्रह के लिए एक अग्रगामी बल आवश्यक होता है जिसकी वजह से यह गति करता रहता है। न्यूटन ने दर्शाया कि इस के बजाय सूर्य का अन्दर की और एक आकर्षण बल आवश्यक होता है। (अभिकेन्द्री आकर्षण) यहाँ तक कि प्रिन्सिपिया के प्रकाशन के कई दशकों के बाद भी, यह विचार सार्वत्रिक रूप से स्वीकृत नहीं किया गया। और कई वैज्ञानिकों ने डेसकार्टेस के वोर्टिकेस के सिद्धांत को वरीयता दी.
न्यूटन का सेब
न्यूटन अक्सर खुद एक कहानी कहते थे कि एक पेड़ से एक गिरते हुए सेब को देख कर वे गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बनाने के लिए प्रेरित हो पाए।

1666 में वे कैम्ब्रिज से फिर से सेवानिवृत्त हो गए और अपनी मां के पास लिंकनशायर चले गए। जब वे एक बाग़ में घूम रहे थे तब उन्हें एक विचार आया कि गुरुत्व की शक्ति धरती से एक निश्चित दूरी तक सीमित नहीं है, (यह विचार उनके दिमाग में पेड़ से नीचे की और गिरते हुए एक सेब को देख कर आया) लेकिन यह शक्ति उससे कहीं ज्यादा आगे विस्तृत हो सकती है जितना कि पहले आम तौर पर सोचा जाता था। उन्होंने अपने आप से कहा कि क्या ऐसा उतना ऊपर भी होगा जितना ऊपर चाँद है और यदि ऐसा है तो, यह उसकी गति को प्रभावित करेगा और संभवतया उसे उसकी कक्षा में बनाये रखेगा, वे जो गणना कर रहे थे, इस तर्क का क्या प्रभाव हुआ।सवाल गुरुत्व के अस्तित्व का नहीं था बल्कि यह था कि क्या यह बल इतना विस्तृत है कि यह चाँद को अपनी कक्षा में बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है। न्यूटन ने दर्शाया कि यदि बल दूरी के वर्ग व्युत्क्रम में कम होता है तो, चंद्रमा की कक्षीय अवधि की गणना की जा सकती है और अच्छा परिणाम प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि यही बल अन्य कक्षीय गति के लिए जिम्मेदार है और इसीलिए इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नाम दे दिया।
एक समकालीन लेखक, विलियम स्तुकेले, सर आइजैक न्यूटन की ज़िंदगी को अपने स्मरण में रिकोर्ड करते हैं, वे 15 अप्रैल 1726 को केनसिंगटन में न्यूटन के साथ हुई बातचीत को याद करते हैं, जब न्यूटन ने जिक्र किया कि "उनके दिमाग में गुरुत्व का विचार पहले कब आया।
जब वह ध्यान की मुद्रा में बैठे थे उसी समय एक सेब के गिरने के कारण ऐसा हुआ। क्यों यह सेब हमेशा भूमि के सापेक्ष लम्बवत में ही क्यों गिरता है? ऐसा उन्होंने अपने आप में सोचा। यह बगल में या ऊपर की ओर क्यों नहीं जाता है, बल्कि हमेशा पृथ्वी के केंद्र की ओर ही गिरता है।" इसी प्रकार के शब्दों में, वोल्टेर महाकाव्य कविता पर निबंध (1727) में लिखा, "सर आइजैक न्यूटन का अपने बागानों में घूम रहे थे, पेड़ से गिरते हुए एक सेब को देख कर, उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की प्रणाली के बारे में पहली बार सोचा।
विभिन्न पेड़ों को "वह" सेब के पेड़ होने का दावा किया जाता है जिसका न्यूटन ने वर्णन किया है। दी किंग्स स्कूल, ग्रान्थम दावा करता है कि यह पेड़ स्कूल के द्वारा खरीद लिया गया था, कुछ सालों बाद इसे जड़ सहित लाकर प्रधानाध्यापक के बगीचे में लगा दिया गया। नेशनल ट्रस्ट जो वूलस्थ्रोप मेनर का मालिक है, का वर्तमान स्टाफ इस पर विवाद करता है, ओर दावा करता है कि वह पेड़ उनके बगीचे में उपस्थित है जिस के बारे में न्यूटन ने बात की।
मूल वृक्ष का वंशज ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के मुख्य द्वार के बाहर उगा हुआ देखा जा सकता है, यह उस कमरे के नीचे है जिसमें न्यूटन पढाई के समय रहता था।
ब्रोग्डेल में राष्ट्रीय फलों का संग्रह उन पेड़ों से ग्राफ्ट की आपूर्ति कर सकता है, जो फ्लॉवर ऑफ़ केंट के समान दिखाई देता है, जो एक मोटे गूदे की पकाने की किस्म है।
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