फूलगोभी एक लोकपिय सब्जी है। उत्त्पति स्थान साइप्रस या इटली का भूमध्यसागरीय क्षेत्र माना जाता है। भारत में इसका आगमन मुगल काल में हुआ माना जाता है।
भारत में इसकी कृषि के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल लगभग 3000 हेक्टर है, जिससे तकरीबन 6,85,000 टन उत्पादन होता है। उत्तर प्रदेश
तथा अन्य शीतल स्थानों में इसका उत्पादन व्यपाक पैमाने पर किया जाता है।
वर्तमान में इसे सभी स्थानों पर उगाया जाता है। फूलगोभी, जिसे हम सब्जी के
रूप में उपयोग करते है, के पुष्प छोटे तथा घने हो जाते हैं और एक कोमल ठोस
रूप निर्मित करते हैं। फूल गोभी में प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस,
विटामिन ‘ए’, ‘सी’ तथा निकोटीनिक एसिड जैसे पोषक तत्व होते है। गोभी को
पकाकर खाया जाता है और अचार आदि भी तैयार किया जाता है। पौध रोपण के 3 से
3½ माह में सब्जी योग्य फूल तैयार हो जाते है। फ़सल की अवधि 60 से 120 दिन
की होती है। प्रति हेक्टेयर 100 से 250 क्विंटल फुल प्राप्त हो जाते है।
उपज पौधे लगने के समय के ऊपर निर्भर करती है।
जलवायु-भूमि
शीतल तथा नम जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। उच्च तापकृम या निम्न तापकृम
तथा कम वायुमण्डलीय आद्रर्ता फूलगोभी की फसल के लिए हानिकारक सिद्ध होती
है। 50 से 75º तापकृम पर फूल अच्छे विकसित होते हैं। उपजाऊ भूमि फूल गोभी
के लिए उपयुक्त होती है। बलुई-दुमट-मिट्टी,जो कि उत्तम जलनिकास वाली होती
है, उत्त्तम है। भूमि का पीएच मान 5.5 से 6.8 होना उपयुक्त होता है।
सिंचाई

सामान्य रूप से 10-15 दिन के अन्तर से सिंचाई की आवश्यकता होती है।
सिंचाई का अन्तर भूमि के अनुसार कम या अधिक हो सकता है। अगेती किस्मों की
अपेक्षा पिछेती किस्मों को अधिक जल की वश्यकता होती है। सिंचाई प्रात:काल
करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक

शीघ्र तैयार होने वाली किस्म गोबर की खाद/कम्पोस्ट – 250क्विंटल,
नाइट्रोजन 100 किलो, फास्फोरस – 75 किलो तथा पोटाश – 40 किलो हेक्टर आवश्यक
होता है। मध्यम एवं देर से तैयार होने वाली किस्म – गोबर की खाद/ कम्पोस्ट
– 250 क्विंटल, नाइट्रोजन 125 किलो, स्फुर – 75 किलो तथा पोटाश – 40 किलो
प्रति हेक्टर आवश्यक होता है। गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत तैयार करते समय
फास्फोरस तथा पोटाश पौध रोपण के पहले तथा नाइट्रोजन दो भागों में कृमश:
रोपाई के 10-15 दिन तथा 25-30 दिन बाद देना चाहिए। गोबर की खाद, स्फुर तथा
पोटाश छिड़काव विधि में तथा नाइट्रोजन खड़ी फसल में उर्वरक देना या टॉप
ड्रेसिंग विधि से दना चाहिए। स्फुर, पोटाश तथा नाइट्रोजन किसी भी संयुक्त
या स्वतंन्त्र उर्वरक के रूप में दिये जा सकते है। सामान्य रूप से एक
हेक्टर फूलगोभी की फसल 50 किलो नाइट्रोजन, 18 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो
पोटाश एक बार में भूमि में लेती है।
अल्प तत्वों का उपयोग
फूलगोभी की फसल में अल्प तत्व-बोरान एवं मॉलीब्लेडिनम की कमी के लक्षण
स्पष्ट होते है। जिसे भूरापन या ब्राउनिंग कहते है। अत: बोरान की कमी को
दूर करने के लिए 10-15 किलो का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए। प्रथम छिड़काव
पौध रोपण के दो सप्ताह पश्चात् और दूसरा छिड़काव फूल बनने से दो सप्ताह
पहले करना चाहिये। मॉलीब्लेडिनम की कमी अम्लीय भूमि में हो जाती है अर्थात्
मॉलीब्लेडिनम अनुपलब्ध रूप में हो जाता है, जिससे पौधे इस तत्व का अवशोषण
नहीं कर पाते हैं और व्हिपटेल के लक्षण दिखलाई देते हैं। अत: अम्लीयता कम
करने के उद्देश्य से 50-78 क्विंटल बुझा चूना प्रति हेक्टर खेत की तैयारी
के समय भूमि में मिला देना चाहिए। इसके साथ ही पौध रोपण के पहले 2.5 से 5
किलो सोडियम मॉलीब्डेट प्रति हेक्टर भूमि में मिला देना चाहिए अथवा खड़ी
फसल में 0.05 प्रतिशत घोल का पौधों पर छिड़काव करन चाहिए।
उद्यानिक क्रियाएं
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रोपाई के लिये नर्सरी में तैयार किये गये फूलगोभी के पौधे |
बीज विवरण
प्रति हेक्टर बीज की मात्रा – 675-750 ग्रा. – शीघ्र तैयार होने वाली
450-500 ग्रा. – मध्यम या देर से तैयार होने वाली प्रति 100 ग्रा. बीज की
संख्या – 18,000
अंकुरण
80-85 प्रतिशत अंकुरण तापकृम 20-25º
अंकुरण क्षमता
3-4 वर्ष
बीजोपचार
गर्म जल में, जिसका तापकृम 50º हो, बीज को आधा घण्टा डूबोकर रखना चाहिए।
पौध तैयार करना
उचित आकार की सामान्यतया 2 * 1 मी. आकार की 6-10 सेमी. ऊँची क्यारी
बनाकर बीज कतारों में बोना चाहिए। प्रतिदिन हल्की सिंचाई आवश्यक है।
पौध रोपण
समय – शीघ्र – मई-जून मध्यम – मध्य जून-मध्य जुलाई देर – अन्तिम
जुलाई-मध्य अगस्त पौधे क्यारियों में जब 4 से 6 सप्ताह के हो जायें तब खेत
में लगाना चाहिए। खेत में लगाने से पहले खेत की जुताई कर तथा पाटा चलाकर
समतल कर लेना चाहिए। सिंचाई की सुविधानुसार लम्बी पट्टियों वाली क्यारिया 5
* 2 मी. या 4 * 2 मी. बनाना चाहिए। सिंचाई नालिया¡ प्रत्येक क्यारी से
जुड़ी होनी चाहिए। पौधे लगाने के पश्चात् तुरन्त ही सिंचाई करें।
मिट्टी चढ़ाना
पौध रोपण के 4 से 6 सप्ताह पश्चात् पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें जिससे फूलों के भार से पौधे टेढ़े न हो जायें।
ब्लांचिंग
फूल का रंग आकर्षक सफेद बनाने के लिए, पौधे की चारों ओर फैली हुई
पत्तियों को फूल के ऊपर समेटकर बांध देने को ब्लांचिंग कहते है। धूप से फूल
का रंग पीला हो जाता है। यह -क्रिया फूल तैयार हो जाने के 8-10 दिन पूर्व
की जानी चाहिए।
कटाई
जब फल पूर्ण रूप से विकसित हो जाय तब काट लेना चाहिए। काटते समय यह
ध्यान रखें। कि फूल में खरोंच या रगड़ न लगने पाये। काटने के पश्चात् शीघ्र
ही विक्रय का प्रबन्ध करना चाहिए।
पौधे में बीमारियाँ
बटनिंग
फलों का विकसित न होकर छोटा रह जाना बटनिंग कहलाता है। समय के अनुसार
उचित किस्मों को न लगाने से ऐसा हो जाता है। अत: अगेती या पिछेती किस्में
उनके अनुशंसित समय पर की लगायें। पौधों की वृद्धि चाहे वह नर्सरी में हो या
खेत में, नहीं रूकनी चाहिए। अधिक सिंचाई न करें। जो पौधे नर्सरी में अधिक
दिन के हो गये हो, उन्हें खेत में न लगायें।
अन्धता
पौधे की मुख्य कलिका के क्षतिग्रस्त हो जाने की क्रिया को अन्धता कहते
हैं। अन्य पत्ते बड़े, चमड़े जैसे मोटे और गहरे रंग के हो जाते हैं। कीड़ों
के आक्रमण के फलस्वरूप ऐसा होता है।
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