खरपतवार नियंत्रण
संकरी पट्टी वाले खरपतवारों जैसे गेहूँसा व जंगली जई की रोकथाम के लिए आई सोप्रोटयूरान (75 फीसदी) की 1 किलोग्राम या पैंदीमैथिलीन (30 फीसदी) की 3.3 लीटर या फिनाक्सिप्राप (10 ईसी) की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पहली सिंचाई के 1 हफ्ते बाद (बोआई के 30 से 35 दिनों के अंदर) 1000 लीटर पानी में घोल कर इस्तेमाल करना चाहिए|
जहाँ चौड़ी पत्ती वाले व संकरी पत्ती वाले यानीं दोनों तरह के खरपतवार हों, वहाँ 2-4 डी और आइसोप्रोटयूरान मिलकर प्रयोग करें| पैंडीमैथिलिन का प्रयोग बोआई के बाद लेकिन जमाव से पहले करें|
बीज शोधन
गेहूं की फसल में दुर्गन्धयुक्त कंदूवा, करनाल बंट, अनावृत कंडूआ और गेहूं रोगों का प्रारंभिक संक्रमण बीज या भूमि या दोनों के माध्यम से होआ है| रोग कारक फफूंदी, जीवाणू व सूत्रकृमि बीज की सतह पर, सतह के नीचे या बीज के अंदर प्रसूप्तावस्था में मौजूद रहते हैं| इसलिए बीज उत्पादन के लिए शोधन किए उपचारित बीज ही इस्तेमाल करने चाहिए| यदि उपचारित बीज की उपलब्धता न हो, तो निम्न प्रकार से बीजोपचार कर के ही बोआई करें-करनाल बंट दूषित बीज और जमीन से फैलता है| इस की रोकथाम के लिए ढाई ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल करें|
अनावृत कंडूआ रोग में बालियों में दानों के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है और बाद में रोग जनक के तमाम बीजाणु (काला चूर्ण) हवा में फैलते हैं और स्वस्थ बालियों में फूल आते समय उन का संक्रमण करतें हैं| इस की रोकथाम के लिए कर्बडाजिम (50 फीसदी) या कार्बाक्सिन (75 फीसदी) की ढाई ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज दर की दर से ले कर बीज को शोधित कर के बोआई करनी चाहिए|
बीमार पौधों को देखते ही सावधानी से उखाड़ने के बाद जला कर खत्म कर देना चाहिए| मई जून के महीनों में कड़ी धुप वाले दिन में बीजों को 4 घंटे ठंडे पानी में भिगो कर पक्के फर्श पर अच्छी तरह सुखा कर अगले साल बोने के लिए भंडारित कर लेना चाहिए|
गेहूं का ईयर कौकिल रोग (सेंहू रोग) ‘एग्विना ट्रिटीसाई’ नामक सूत्रकृमि द्वारा होता है| इस रोग से पौधों की पत्तियों मूड़ कर सिकुड़ जाती हैं| इस रोग से पौधों की पत्तियाँ मुड़ कर सिकुड़ जाती हैं| इस के असर वाले पौधे छोटे रह जाते हैं और उन में स्वस्थ पौधों के मुकाबले ज्यादा टहनियां निकलती हैं| रोगग्रस्त बालियाँ ज्यादा टहनियां निकलती हैं| रोगग्रस्त गलियां छोटी और फैली हुई होती हैं और इन में दानों की जगह भूरे या काले रंग की गांठे बन जाती हैं, जिन में सूत्रकृमि रहते हैं| इस रोग की रोकथाम के लिए ईयर कौकिल गांठमुक्त बीज का इस्तेमाल करें| ईयर कौकिल गांठ मिश्रित बीज को कुछ समय के लिए 2 फीसदी नमक के घोल में डूबोएँ (200 ग्राम नमक को 10 लीटर पानी में मिलाकर) ताकि सूत्रकृमि ग्रसित काली गांठे हल्की होने को निकाल कर खत्म कर दें| बीज को साफ पानी से 2-3 बार धो कर सुखा लेने के बाद ही बोआई में प्रयोग करें|
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