कीट प्रबंधन के सांस्कृतिक तरीकों में ऐसे समाधान शामिल हैं जिनमें कीट प्रबंधन के लिए नियमित रूप से की जाने वाली खेती के दौरान या तो कीटों को नष्ट कर दिया जाता था या उनसे फसल को होने वाले आर्थिक नुकसान से बचा जाता था। इन विभिन्न सांस्कृतिक तरीकों को निम्नानुसार प्रयोग किया जाता था:
- नर्सरी तैयार करना या खरपतवार को खेतों से हटाकर, बांधों को छोटा करने से, मिट्टी को बेहतर बना कर और हल से गहराई तक खुदाई करने से भी कीटों का सफाया किया जा सकता है। खेतों में नालियों की उचित व्यवस्था भी अपनाई जानी चाहिए।
- मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी की जांच करना ताकि उसके हिसाब से उर्वरकों का प्रयोग किया जा सके। बुआई से पहले साफ और प्रमाणित बीजों का चुनाव करना और उन्हें फंगीसाइड या बायोपेस्टिसाइड्स द्वारा बुआई के अनुकूल बनाना जिससे की बीजों द्वारा उत्पन्न होने वाले रोगों पर नियंत्रण पाया जा सके।कीट प्रतिरोधी बीजों को चुनाव करना जिनसे कीटों प्रबंधन में काफी सहायता मिलती है। जिन मौसमों में कीटों का अधिक खतरा रहता है, उन मौसमों में बीज बोने या और समय में फेरबदल कर उस समय खेती करने से बचना। फसलों को बोने के क्रम में गैर-मेजबान फसलों को शामिल करना। इससे मिट्टी जनित रोगों को कम करने में सहायता मिलती है। पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखना जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और कीटों के लिए आसान शिकार नहीं बन पाते। उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग किया जाना चाहिए। एफवाईएम और बायोफर्टीलाइजर के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
- उचित जल प्रबंधन (पानी के ठहराव से बचने के लिए वैकल्पिक रूप से गीला करना व सुखाना) करना क्योंकि मिट्टी में अधिक समय तक रहने वाली नमी कीटों के विकास में सहायक होती है, विशेषकर मिट्टी से होने वाले रोगों के लिए।
- जंगली घास को हटाने का उपयुक्त प्रबंध किया जाना चाहिए। यह जाना-माना तथ्य है कि जंगली घास फसलों के माइक्रोन्यूट्रीयंट्स को तो कम करती ही है, साथ ही कई कीटों का अच्छा ठिकाना भी होती है।
- सफेद मक्खियों और अपहाइड्स के लिए येलो पैन स्टीकी ट्रैप को ऊंचाई पर लगाना।
- उचित क्रम से बुआई करना। यहां, समुदाय की कोशिश यह होती है कि फसलों की बुआई एक बड़े क्षेत्र में एक ही समय पर की जाए जिससे कि कीटों को विकास के लिए विभिन्न तरीके से उगी हुई (staged) फसलें न मिल सकें। यदि कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हुए दिखाई देते हैं तो सारे खेतों में नियंत्रण की कार्रवाई की जा सकती है।
- खेतों के मुहानों और किनारों पर ग्रोइंग ट्रैप फसलें यानि ऐसी फसले लगाना जो कीटों को खेतों के किनारों पर ही पकड़ लें। ऐसी कई फसलें है जिन्हें किन्हीं खास कीटों से नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। इन्हीं पर कीट सबसे अधिक हमला बोलते हैं। ऐसी फसलों को खेतों के किनारे लगा कर कीटों को वहीं पर रोका जा सकता है और उन्हें समाप्त किया जा सकता है। उन्हें या तो कीटनाशकों द्वारा मारा जा सकता है यावे अपने प्राकृतिक दुश्मनों के शिकार बन सकते हैं।
- कीट प्रभावित क्षेत्र में रूट डिप या सीडलिंग उपचार करना।
- जहां भी संभव हो वहां पर इंटर-क्रॉपिंग या मल्टीपल क्रॉपिंग करना। कोई भी एक कीट सभी प्रकार की फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाता और ऐसी फसलें निरोधक का काम भी करती हैं, इस प्रकार कीटों को उनकी पंसदीदा फसलों से दूर रखने से भी कीटों पर काबू पाया जा सकता है।
- भूमि स्तर के अत्यधिक करीब तक कटाई करना। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कुछ कीटों के विकास अधिकतर पौधे के ऊपरी हिस्से पर ही होता है, जिससे कि अगली फसल में भी कीटों के विकास की संभावना बढ़ जाती है। इस प्रकार यदि पौधे के उस हिस्से को काट दिया जाएगा तो अगली फसल में कीटों के विकास को रोका जा सकेगा।
- पौधे लगाने से पहले नर्सरी पौधो पर छिड़काव किया जा सकता हैI उन्हें कॉपर फंगीसाइड या बायोपेस्टीसाइड में भिगोया जा सकता है। इससे पौधों को मिट्टी से होने वाले रोगों से बचाया जा सकेगा।
- फलों के पेड़ों की छंटाई करते समय घनी/मृत/टूटी हुई/बीमार शाखाओं को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। उन्हें बाग में इकट्ठा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से कीटों को अपना एक ठिकाना मिल जाएगा।
- यदि छंटाई के समय पेड़ को अधिक नुकसान हुआ है और उस टूटे हुए हिस्से को बोरडिओक्स पेस्ट या पेंट से ढक देना चाहिए, ताकि पौधों को कीटों के आक्रमण से बचाया जा सके।
- फलों की उत्कृष्ट फसल के लिए, पॉलिनाइजर कल्टीवर्स को बगीचों में सही अनुपात पर बोना चाहिए।
- मधुमक्खी के छत्तों या पॉलिनाइजर कल्टीवर्स के बुके को रखने से बेहतर पॉलिनेशन और फलों का उत्पदन होता है।
- अंडों, लार्वा, संक्रामक कीटों के प्यूपा और व्यस्कों और जहां भी संभव पौधों के रोगग्रस्त हिस्सों को नष्ट कर देना।
- खेतों में बांस के पिंजरे और चिडि़यों के बैठने की जगह बनाना और उनके अंदर पैरासीटाइज्ड अंडों को डालना, जिससे की प्राकृतिक दुश्मनों का जन्म हो सके और जहां भी संभव हो सके कीटों पर काबू पाया जा सके।
- लाइट ट्रैप्स का प्रयोग करना और उसमें फंसने वाले कीटों को नष्ट करना।
- पत्तों को खाने वाले लार्वा को दूर करने के लिए रस्सी का इस्तेमाल, जैसे केसवर्म और लीफ फोल्डर।
- जहां तक संभव हो, खेतों में चिडि़याओं को डराने के लिए पुतला लगाना।
- खेतों में चिडि़याओं के बैठने के लिए स्थान बनाना और वहां पर उनके खाने के लिए कीड़े और उनके अविकसित अंडे, लार्वा और प्यूपा रखना।
- कीड़ों के जन्म की प्रक्रिया में रुकावट डालने, कीटों के स्तर पर निगरानी रखने और मास ट्रैपिंग के लिए फेरोमोन का प्रयोग करना।
उचित उपज दर के साथ अपेक्षाकृत कीट प्रतिरोधी / सहनशील किस्मों का चुनाव करना।
नियामक कार्रवाई
इस प्रक्रिया में, नियामक नियम सरकार द्वारा तैयार किए गए है। इनके अंतर्गत बीजों और रोग वाले पौधों का देश में आना या देश के एक भाग से दूसरे भाग में ले जाना निषेध है। इन्हें संगरोध तरीके कहा जाता है और ये दो प्रकार के होते हैं - एक घरेलू और दूसरा विदेशी संगरोध।
जैविक तरीके
कीटों और रोग का नियंत्रण जैविक तरीको से करने का अर्थ है आईपीएम का सबसे महत्वपूर्ण अवयव। व्यापक अर्थ में, बायोकंट्रोल का अर्थ है जीवित जीवों को प्रयोग कर फसलों को कीटों से नुकसान होने से बचाना।
कुछ बायोकंट्रोल एंजेट्स इस प्रकार हैं
पैरासिटॉइड्स
ये ऐसे जीव हैं जो अपने अंडे उनके होस्ट्स के शरीर में या उनके ऊपर रखते हैं और होस्ट के शरीर में ही अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं । परिणामस्वरूप, होस्ट की मृत्यु हो जाती है। एक पैरासिटॉइड्स दूसरे प्रकार का हो सकता है, यह होस्ट के विकास चक्र पर निर्भर करता है, जिसके आधार पर वह अपना जीवन चक्र पूरा करता है। उदाहरण के लिए, अंडा, लार्वा, प्यूपा, अंडों को लार्वल और लार्वल प्यूपल पैरासिटॉइड्स। उदाहरण ट्राइकोगर्मा, अपेंटल्स, बैराकॉन, चेलनस, ब्राकैमेरिया, सूडोगॉनोटोपस आदि की विभिन्न प्रजातियां हैं।
प्रीडेटर्स
ये स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीव होते हैं जो कि भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर करते हैं। उदाहरण: मकड़ियों, ड्रेगन मक्खियां, डेमसेल मक्खी, लेडी बर्ड, भृंग, क्रायसोपा प्रजातियां, पक्षी आदि।
रोगाणु
ये माइक्रो-जीव होते है जो दूसरे जीवों में रोग का संचार कर देते हैं, परिणामस्वरूप दूसरे जीव मर जाते हैं। रोगाणु के बड़े समूह, फंगी, वायरस और बैक्टिरियां होते हैं। कुछ संक्रामक कीटों में कुछ नेमाटोड्स रोग पैदा कर देते हैं।
- फंगी के महत्वपूर्ण उदाहरण: हरसुटेला, ब्यूवेरिया, नोम्यूरेन और मेटारहीजीअम।
- वायरसों में सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण न्यूक्लियर पॉलिहेड्रोसिस वायरस (एनपीवी) और ग्रेनुओलोसिस वायरस हैं।
- बैक्टिरिया में सबसे सामान्य उदाहरण बेसीलस थरिंगीनसिस (बी.टी.) बी. पॉपीले हैं।
बायोकंट्रोल के तरीके
कीटों में बीमारी पैदा करने वाले एजेंट को प्रयोगशाला में कम लागत पर द्रव्य या पाउडर फॉर्मुलेशन में बढ़ाया जा सकता है। इन घोलों को बायोपेसस्टिसाइड्स कहा जाता है। इन्हें किसी भी सामान्य रसायन कीटनाशक की तरह छिड़का जा सकता है। बायोकंट्रोल के तरीकों के अन्य प्रकार निम्नानुसार हैं:
परिचय
इस प्रक्रिया में, एक नई प्रजाति के बायोएजेंट को उसके क्षेत्र में उसके होस्ट के सामने विकसित करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। यह गहन प्रयोगशाला परीक्षण के बाद किया जाता है और संतुष्टि के लिए खेतों में इसका प्रयोग भी किया जाता है।
विस्तार
इस प्रक्रिया में, क्षेत्र में पहले से मौजूद प्राकृतिक विरोधियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है। ऐसा या तो प्रयोगशाला में पाले गए बायोएंजेट्स द्वारा किया जाता है या क्षेत्र से जमा किया गए बायोएजेंट्स द्वारा। छोड़े गए बायोएजेंट्स इतनी संख्या में छोड़े जाते हैं जितने कि उस क्षेत्र के कीटों को समाप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं।
संरक्षण
- यह जैविक नियंत्रण का बेहद महत्वपूर्ण अवयव है और यह कीट प्रबंधन में मुख्य भूमिका निभाता है। इस प्रक्रिया में, प्रकृति में मौजूद प्राकृतिक दुश्मनों को मरने से बचाया जाता है। इन्हें मरने से बचाने के लिए जो विभिन्न प्रक्रियाएं आवश्यक होती हैं वे इस नीचे दी गई हैं।
- पैरासिटाइज्ड अंडों को एकत्र करना और उन्हें बांस के पिंजरों व चिडि़यों के बैठने की जगह में डालना, जिससे कि पैरासिटॉइड्स का बचाव किया जा सके और कीट लार्वा पर रोक लगाई जा सके।
- विभिन्न कीटों और प्रतिरक्षकों में पहचान करने के लिए जागरूकता फैलाना और खेत में छिड़काव करते समय प्रतिरक्षकों को बचाना।
- रसायन स्प्रे को एक अंतिम उपाय की तरह प्रयोग करना चाहिए, वह भी तब जब कीट प्रतिरक्षक अनुपात और इकोनॉमिक थ्रेशोल्ड लेवल (ईटीएल) का अवलोकन कर लिया जाए।
- जहां तक संभव हो कीटनाशकों को उन्हीं स्थानों पर अधिक इस्तेमाल करने का प्रयास करना चाहिए जहां पर वे दिखाई दें।
- बुआई के समय में फेरबदल की जा सकती है और कीटों के आक्रमण के अनुकूल मौसम में उनसे बचा जा सकता है।
- मूल फसल की बुआई से पहले खेतों के किनारों पर ऐसी फसलें लगाना जिनसे कीट वहीं किनारों पर उलझ कर रह जाएं और उनकी संख्या में बढ़ोतरी न हो पाए।
- गाल मिज प्रवण क्षेत्र में रूट डिप/सीडलिंग ट्रीटमेंट का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- फसलों को बोने की बारी और इंटर क्रॉपिंग से प्रतिरक्षकों के संरक्षण में सहायता मिलती है।
- यदि कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है तो सिर्फ सुझाई गई मात्रा का प्रयोग करना चाहिए वह भी घोल बना कर।
जब कीड़ों को समाप्त करने के सारे उपाय खत्म हो जाते हैं तो रसायनिक कीटनाशक ही अंतिम उपाय नजर आता है। कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यकतानुसार, सावधानी से और इकोनॉमिक थेशोल्ड लेवल (ईटीएल) के मुताबिक होना चाहिए। इस प्रकार न सिर्फ कीमत में कमी आती है बल्कि समस्याएं भी कम होती है। जब रसायनिक नियंत्रण की बात आती है तो हमें निम्न बातों का ध्यान रखते हुए अच्छी तरह पता होना चाहिए कि किसका छिड़काव करना है, कितना छिड़काव करना है, कहाँ और कैसे छिड़काव करना है।
- ईटीएल और कीट प्रतिरक्षक अनुपात का ध्यान रखना चाहिए।
- सुरक्षित कीटनाशकों को इस्तेमाल करना चाहिए, उदाहरण के तौर पर नीम आधारित और जैवकीटनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- अगर कीट कुछ भागों में ही मौजूद हैं तो सारे खेत में छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए।
भिंडी के लिए एकीकृत कीट प्रबन्धन रणनीतियां
विभिन्न सब्जियों के बीच ओकरा जिसे आम तौर पर भिंडी के नाम से जाना जाता है, और देश भर में बड़े पैमाने पर पैदा की जाती है। इसके उत्पादन में एक प्रमुख पहचान की कमी, कीटों, रोगों और सूत्रक्रमि में वृद्धि के रूप में की गयी है, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी उपज में बहुत घाटा होता है। इसकी नरम और कोमल प्रकृति तथा उच्च नमी और लागत के क्षेत्रों के अधीन इसकी खेती के कारण, भिंडी पर कीट हमले का खतरा अधिक होता है और एक अनुमान के अनुसार कम से कम 35-40% का नुकसान होता है।
कीटनाशकों के अधिक उपयोग से संबंधित समस्याएं
इन कीटों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, भिंडी पर कीटनाशक की एक बड़ी मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
जो सब्जियां कम अंतराल पर काटी जाती हैं उनमें टाले ने जा सकने वाले कीटनाशक के अवशेष उच्च स्तर पर बाकी रह सकते हैं जो उपभोक्ताओं के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं। रसायनों पर अत्यधिक निर्भरता से प्रतिरोध, पुनरुत्थान, पर्यावरण प्रदूषण और उपयोगी पशुवर्ग और वनस्पति की तबाही की समस्या जनित हुई है।
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